ट्रंप प्रशासन ने भारत के इस दावे को खारिज कर दिया है कि स्टील और एल्युमीनियम पर अमेरिकी टैरिफ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के तहत सुरक्षा उपाय हैं। अमेरिका ने 23 मई को डब्ल्यूटीओ को भेजे अपने जवाब में कहा कि ये टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से धारा 232 के तहत लगाए गए थे।
अमेरिका ने कहा उसकी ओर से लगाए टैरिफ सुरक्षा उपाय के अंतर्गत नहीं आते हैं। इन उपायों के संबंध में सुरक्षा समझौते के (एक प्रावधान) के तहत रियायतों या अन्य दायित्वों को निलंबित करने के भारत के प्रस्ताव का कोई आधार नहीं है। अमेरिका ने यह भी दावा किया कि भारत ने इस समझौते के तहत दायित्वों का पालन नहीं किया है। अमेरिका सुरक्षा उपायों पर समझौते के तहत धारा 232 टैरिफ पर चर्चा नहीं करेगा, क्योंकि हम शुल्क को सुरक्षा उपाय के रूप में नहीं देखते हैं।
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भारत का तर्क, रियायतें वापस लेने अधिकार
दरअसल, भारत ने 9 मई को सुरक्षा समझौते के अनुच्छेद 12.5 के तहत डब्ल्यूटीओ को एक सूचना दी थी। इसमें कहा गया था कि वह स्टील, एल्युमीनियम और उनसे बने उत्पादों पर अमेरिकी टैरिफ के जवाब में सुरक्षा समझौते के अनुच्छेद 8.2 के तहत दी जा रही रियायतों को निलंबित करना चाहता है। भारत के अनुसार, अमेरिका ने 1962 के व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232 के तहत ये शुल्क लगाए हैं, इसलिए भारत को रियायतें वापस लेने का अधिकार है।
इस पर आर्थिक विश्लेषक संगठन ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा कि अमेरिका की यह दलील की उसने टैरिफ (आयात शुल्क) राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लगाए हैं, भारत की ओऱ से दी गई रियायतें वापस लेने या जवाबी टैरिफ लगाने की योजना को कानूनी रूप से अमान्य बना देता है।
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जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत के पास डब्ल्यूटीओ में विवाद उठाने, खुद से जवाबी टैरिफ लगाने या अन्य देशो के साथ मिलकर दबाव बनाने जैसे कई रास्ते हैं। लेकिन व्यावहारिक रूप से भारत इस मुद्दे को भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते के जरिए हल करना चाहेगा और कोशिश करेगा कि अमेरिका ये टैरिफ हटा दे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक सख्त रुख अपना सकता है और डब्ल्यूटीओ की इजाजत के बिना भी कुछ अमेरिकी सामानों पर जवाबी टैरिफ लगा सकता है।
अमेरिका के धारा 232 टैरिफ के जवाब में यूरोपीय संघ (ईयू), कनाडा और चीन जैसे देशों ने पहले ही जवाबी टैरिफ लगाए हैं। जीटीआरआई ने सुझाव दिया कि भारत के पास भले ही कई कानूनी और राजनयिक विकल्प मौजूद हैं, लेकिन भारत तुरंत कोई कदम उठाने से बच सकता है और सही समय का इंतजार कर सकता है।