Published On: Tue, Jun 10th, 2025

This 80-year-old woman doing amazing work for 26 years


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बुजुर्ग महिला रोजाना घर पर जाने से पहले प्याऊ पर सभी मटके भरकर जाती है, ताकि सुबह तक पानी ठंडा हो जाए. महिला की निस्वार्थ सेवा को देखकर कई लोग मटके देते हैं, तो कई मटकों में पानी भरकर चले जाते हैं.

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80 वर्षीय बुजुर्ग महिला

हाइलाइट्स

  • 80 वर्षीय जमपु देवी 26 सालों से राहगीरों को पानी पिला रही हैं.
  • रोजाना 4 किलोमीटर चलकर प्याऊ पर मटके भरती हैं.
  • स्थानीय लोग उनकी सेवा भावना से प्रभावित होकर मदद करते हैं.

अजमेर:- तपती धूप और गर्मी में जहां लोग घर से बाहर निकलने से भी कतराते हैं. ऐसे मौसम में भी अजमेर जिले के नसीराबाद में रहने वाली 80 साल बुजुर्ग महिला पिछले 26 बरसों से रोजाना 4 किलोमीटर दूर से चलकर प्याऊ पर आकर राहगीरों को पानी पिलाती है. बुजुर्ग महिला रोजाना घर पर जाने से पहले प्याऊ पर सभी मटके भरकर जाती है, ताकि सुबह तक पानी ठंडा हो जाए. महिला की निस्वार्थ सेवा को देखकर कई लोग मटके देते हैं, तो कई मटकों में पानी भरकर चले जाते हैं.

शाम को घर लौटने से पहले मटकों में भरकर जाती है पानी
बुजुर्ग महिला जमपु देवी ने लोकल 18 को बताया कि वह रोजाना सुबह सूरज निकलने से पहले ही अपने घर से निकल जाती है, ताकि समय पर प्याऊ पर पहुंचकर मटकों में पानी भर सके. दिनभर वहां रूककर आने-जाने वाले मुसाफिरों को पानी पिलाती है और जब घर लौटने का समय होता है, तो जाते-जाते सभी मटकों को फिर से पानी से भरकर जाती है, ताकि अगली सुबह तक पानी ठंडा बना रहे और किसी को प्यासा न लौटना पड़े. बुजुर्ग महिला ने आगे बताया कि बचपन में घर के सब बड़े मुझे लाड-प्यार में जमपु कहकर बुलाते थे, तभी से मेरा नाम जमपु पड़ गया. वैसे उनका नाम कविता है.

पानी पिलाना पुण्य का काम
बुजुर्ग महिला Local 18 को बताती हैं कि कई लोग उनकी इस सेवा को देखकर पानी पीने के बदले 5, 10 रुपए देकर चले जाते हैं. इन पैसों से वह कभी चाय पीती है, तो कभी घर आने-जाने का किराया दे देती है. उन्होंने आगे कहा कि उनको सेवा करना अच्छा लगता है. महिला का मानना है कि प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम है.

साधन नहीं मिलता तो पैदल चलकर आती
स्थानीय निवासी किशन लाल फुलवानी ने बताया कि 26, 27 सालों से  80 वर्षीय बुजुर्ग महिला जमपु देवी रोजाना 4 किलोमीटर दूर राताखेड़ा गांव से प्याऊ पर आती है. कभी टेंपो या कोई साधन नहीं मिलता है, तो 5 किलोमीटर दूर से पैदल ही आ जाती है. इनकी सेवा भावना को देखकर स्थानीय लोग भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते.

उनकी सेवा भाव को देखकर कोई उन्हें नए मटके भेंट करता है, तो कई लोग स्वयं मटकों में पानी भरने में सहयोग करते हैं. उनकी सेवा में स्वार्थ का कोई नामोनिशान नहीं है, केवल मानवता और परोपकार का भाव है.

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