The three-year-long initiative has paid off | तीन साल से चल रही पहल रंग लाई: अब शहर में भी मिलेगी गोकाष्ठ, आज से शुरू होगा उत्पादन, अंत्येष्टि में लकड़ी की जगह होगा उपयोग – Udaipur News

शहर में गोकाष्ठ के लिए तीन साल से चल रहे प्रयासों के बीच आखिर सफलता मिल ही गई। इसके लिए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और शिवशंकर गोशाला ने पहल की। शुक्रवार को निर्जला एकादशी पर कलड़वास स्थित गोशाला में गो काष्ठ की मशीन लगा दी गई।
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मंत्रोच्चार और विधिवत पूजा-अर्चना के बीच इसे स्थापित किया गया। इसके जरिये सोमवार से गो काष्ठ बनाना शुरू कर दिया जाएगा। यह मशीन पॉल्यूशन बोर्ड की ओर से उपलब्ध कराई गई है। इसका संचालन और गो काष्ठ बनाने का काम राहड़ा फाउंडेशन की ओर से किया जाएगा। इस फाउंडेशन को जगह व गोबर उपलब्ध कराने का काम शिवशंकर गोशाला करेगी। राहड़ा फाउंडेशन की निदेशक अर्चना सिंह चारण ने बताया कि गोशाला में मशीन स्थापित कर दी गई है।
यह मशीन पॉल्यूशन बोर्ड के निदेशक शरद सक्सेना की पहल पर उपलब्ध हुई है। बता दें कि गोकाष्ठ का धार्मिक महत्व तो है ही। यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अहम है। इससे किए जाने वाले अंतिम संस्कार के दौरान प्रदूषण न के बराबर होता है, लकड़ी से इसके मुकाबले औसतन 16 गुना अधिक प्रदूषण बढ़ता है। किसानों की आमदनी में भी इजाफा हाेगा।
फायदा…पेड़ों की कटाई कम होगी, लकड़ी के मुकाबले कीमत भी कम
गोकाष्ठ के लिए मशीन लगाने से दोहरे लाभ होंगे। इससे पेड़ों की कटाई भी कम होगी और लकड़ी के मुकाबले प्रदूषण भी कम होगा। गोकाष्ठ को ट्रेंड में लाने के लिए संचालकों को नवाचार भी करने होंगे। क्योंकि, लोगों को लकड़ी का उपयोग करने की आदत हाे चुकी है। प्रचार-प्रसार करना, हवन-पूजा में गोकाष्ठ का उपयोग, अंत्येष्टी के लिए गोकाष्ठ की उपलब्धता हो ऐसी व्यवस्था करनी होगी।
एक क्विंटल लकड़ी 600 रुपए किलो मिलती है। एक शव के लिए 6 क्विंटल से ज्यादा लकड़ी की जरूरत होती है। ऐसे में एक अंत्येष्टी पर औसतन 3600 से 4000 रुपए तक खर्च आता है। दूसरी ओर, गोकाष्ठ की कीमत 300 से 400 रुपए प्रति क्विंटल है। एक शव के लिए 4 क्विंटल तक गोकाष्ठ और करीब 50 किलो तक लकड़ी की जरूरत होती है। ऐसे में इस विधि से अंत्येष्टि पर करीब 1500 से 1900 रुपए का खर्च आएगा।
धार्मिक मान्यता…अंत्येष्टी में गोकाष्ठ जरूरी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोकाष्ठ अंत्येष्टी के लिए जरूरी माना गया है। हालांकि वर्तमान में गो काष्ठ उपलब्ध नहीं होने के चलते पेड़ों की लकड़ी से ही शव जलाया जाता है। एक शव को जलाने के लिए औसत 6 क्विंटल लकड़ी की जरूरत होती है, जबकि गो काष्ठ 3 से 4 क्विंटल ही काफी होता है। ज्योतिषविद् डॉ. भगवतीशंकर व्यास बताते हैं कि गाय में हम 33 कोटी देवी-देवताओं का वास मानते हैं। ऐसे में गाय के गोबर से शव जलाने से अधिक कोई पवित्रता नहीं हो सकती है।
विभाग ने पोर्टल बंद होने की बात कर खींच लिए थे हाथ गोकाष्ठ के लिए राहड़ा फाउंडेशन की ओर से तीन साल पहले प्रयास शुरू किए गए थे। टीएडी विभाग के माध्यम से केंद्रीय जनजाति मंत्रालय को फाइल भेजी गई थी। लेकिन कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाई। अब ऑनलाइन पोर्टल बंद होने की बात कहते हुए विभाग ने हाथ खींच लिए। इसलिए यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया। अब पॉल्यूशन बोर्ड की पहल के बाद मशीन लग पाई।
नो लॉस नो प्रोफिट पर काम करेगी संस्थाएं
राहड़ा फाउंडेशन की अर्चना सिंह ने बताया कि संस्था नो लॉस और नो प्रोफिट पर काम करेगी। शंकर गोशाला में करीब 300 गायें हैं। इनसे रोज 1800 से 2000 किलो तक गोबर उपलब्ध होगा। एक गो काष्ठ औसतन 7 से 8 किलो तक होता है। इस हिसाब से रोज 225 गोकाष्ठ का उत्पादन किया जा सकेगा। आगे चलकर उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेंगे।