Published On: Sun, Jul 21st, 2024

Study: गाद से बनेगी खाद, IPU के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग ने दिल्ली के 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों पर किया अध्ययन


Fertilizer will be made from silt, IPU conducted study on 12 sewage treatment plants of Delhi.

रिसर्च।
– फोटो : अमर उजाला।

विस्तार


 दिल्ली की गाद को शोधित कर खाद बनाई जा सकती है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकली गाद में 90 फीसदी तक नाइट्रेट, 95 फीसदी फास्फेट, व 73 फीसदी अमोनिया पाई गई है। इसको रासायनिक खाद के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। गाद से तैयार खाद रियायती दरों पर किसानों को भी मुहैया कराई जा सकती है। गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ संस्थान (आईपीयू) के बॉयोटेक्नॉलॉजी विभाग की एक स्टडी में इसका खुलासा हुआ है।

यूएनईपी (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) के सहयोग से किए गए अध्ययन का मकसद यह पता करना था कि दिल्ली के सीवेज ट्रीटमेंट प्लॉट से निकलने वाले गाद में पोषक तत्वों की मात्रा कितनी होती है। अध्ययन में दिलचस्प नतीजे सामने आए हैं। इस रिपोर्ट को संस्थान ने दिल्ली जल बोर्ड के साथ साझा किया गया है। अध्ययन दिल्ली के 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का किया गया है। इसमें छह अलग-अलग तकनीक से गंदे पानी का शोधन होता है। अध्ययन के मुताबिक, ट्रीटमेंट प्लांट से निकली गाद में 50-90 फीसदी के बीच नाइट्रेट, 43-95 फीसदी फास्फेट और 35-73 फीसदी अमोनिया पाई गई। इन तत्वों की मात्रा में अंतर एसटीपी में इस्तेमाल की गई से आया है। सबसे बेहतर तकनीक जल बोर्ड के अक्षरधाम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की है। इसी तरह की दूसरी बेहतर तकनीक भी मौजूद हैं। अगर उच्च गुणवत्ता देने वाली तकनीकों का इस्तेमाल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में किया गया तो गाद का अधिकतम दोहन किया जा सकेगा।

बायोटेक्नॉलॉजी विभाग के संस्थापक प्रमुख व वैज्ञानिक प्रो. नंदुला रघुराम बताते हैं कि कुछ प्रदूषक दूसरी जगह पर पोषक तत्व के रूप में होते हैं। इनमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व अमोनिया खास हैं, जो फसल उत्पादन के लिए आवश्यक हैं। उनकी रिकवरी व रि-साइकिलिंग से उर्वरकों की भारी बचत हो सकती है। दिल्ली में बड़े पैमाने पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से गाद निकल रही है। यदि इसका ठीक से निपटारा नहीं किया गया तो दिल्ली में भविष्य में नए कूड़े के पहाड़ बन जाएंगे। जबकि इस तरह की तकनीक मौजूद है कि इसका इस्तेमाल खाद के तौर पर किया जा सकता है। इससे खाद की खपत कम होगी।

दिल्ली की छह झीलों का भी किया अध्ययन

दिल्ली की छह झीलों का भी अध्ययन किया गया। इसमें से एक राजोकरी है। इस झील का टीडीएस 922 पाया गया। वहीं, पानी में घुली आक्सीजन प्रदूषित थी। इस झील में फास्फेट 4 मिलीग्राम प्रति लीटर और अमोनिया 18 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी के मानकों के हिसाब से झील के पानी की गुणवत्ता अच्छी है।

3330 लीटर दूषित जल निकलता है दिल्ली में प्रतिदिन

दिल्ली में 3,330 लीटर प्रतिदिन दूषित जल निकलता है। अभी दिल्ली में 38 एसटीपी काम कर रहे हैं। दिल्ली सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2025 तक 100 फीसदी दूषित जल को साफ करने की क्षमता विकसित कर ली जाए। मौजूदा शोधित जल को दोबारा से इस्तेमाल करने की क्षमता 12 से बढ़ाकर 60% करने का लक्ष्य रखा गया है।

केवल शहरों में हैं सीवेज उपचार संयंत्र

सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) केवल शहरों में हैं और उनमें से कुछ ही काम करते हैं। दिल्ली और हैदराबाद जैसे कुछ शहर तेजी से अपनी एसटीपी क्षमता का विस्तार कर रहे हैं, ताकि ये एक या दो साल में 100 प्रतिशत अपशिष्ट जल उपचार करने में सक्षम बन सकें। भारत के कुछ अन्य बड़े शहर भी इसका अनुसरण कर रहे हैं।

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