Published On: Fri, Dec 20th, 2024

RSS: मंदिर-मस्जिद मुद्दे के सहारे हिंदुओं का नेता बनने की ताक में लोग; भागवत का सख्त संदेश- ऐसी कोशिश अस्वीकार


RSS chief bats for harmony; frowns on new disputes, says it is not acceptable Hindi News

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
– फोटो : एएनआई

विस्तार


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। 

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बता दें कि सहजीवन व्याख्यानमाला में भारत-विश्वगुरु विषय पर बोलते हुए भागवत ने एक समावेशी समाज की आवश्यकता की बात की। उन्होंने कहा कि दुनिया को यह दिखाना चाहिए कि भारत में विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ शांति से रह सकते हैं। 

ये बिल्कुल स्वीकार्य नहीं- भागवत

राम मंदिर के निर्माण के बारे में उन्होंने कहा कि यह सभी हिंदुओं की आस्था से जुड़ा मामला था। लेकिन अब कुछ लोग नए विवाद उठाकर समाज में तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। भागवत ने यह भी कहा कि ऐसे मुद्दे उठाना और समाज में विवाद फैलाना जारी नहीं रह सकता। हाल ही में मंदिरों के सर्वेक्षण के लिए मस्जिदों से जुड़े मामलों की मांग अदालतों में उठी है, लेकिन भागवत ने इस बारे में किसी का नाम नहीं लिया। 

उन्होंने यह भी कहा कि कुछ बाहर से आए समूह अपनी कट्टरता के साथ आए हैं और पुराने शासन की वापसी चाहते हैं, लेकिन अब देश संविधान के अनुसार चलता है। अब देश में लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं और सत्ता का केंद्रीकरण खत्म हो चुका है।

भारतीय समाज की विविधता पर दिया जोर

भागवत ने भारतीय समाज की विविधता पर जोर दिया। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि क्रिसमस का त्योहार रामकृष्ण मिशन में मनाया जाता है। उन्होंने कहा हम लंबे समय से शांति और सद्भावना के साथ रहते आ रहे हैं। अगर हमें दुनिया को यह सद्भावना दिखानी है, तो हमें इसका एक आदर्श प्रस्तुत करना होगा। 

भागवत ने यह भी कहा कि मुग़ल सम्राट औरंगजेब के समय में कट्टरता थी, लेकिन उनके बाद बहादुर शाह जफर ने गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने कहा कि अगर हम सभी खुद को भारतीय मानते हैं तो प्रभुत्व की भाषा का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। इसके साथ ही आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत में सभी लोग समान हैं, चाहे वे बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक। यहां की परंपरा है कि सभी अपने धर्म के अनुसार पूजा कर सकते हैं, लेकिन शांति और कानून का पालन करना जरूरी है।

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