Rajasthan Engineers Cricket Betting App Fraud Gang; Teacher | Alwar | कंप्यूटर टीचर है 150 करोड़ के क्रिकेट सट्टे का मास्टरमाइंड: टीचिंग छोड़ इंजीनियर दोस्तों के साथ मिलकर बनाई वेबसाइट, काली कमाई से क्लब-फॉर्म हाउस खरीदे – Rajasthan News

अलवर पुलिस के हत्थे चढ़े तीन इंजीनियर दोस्तों के पास 150 करोड़ के सट्टे का हिसाब मिला है। अभी पुलिस ने 30 में से महज 3 वेबसाइट से इस आंकड़े का पता लगाया है। जांच में हजारों करोड़ के सट्टे का खुलासा हो सकता है।
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सट्टा गैंग का लीडर कंप्यूटर टीचर था। मोटी कमाई के लिए टीचिंग छोड़कर ऑनलाइन सट्टा खिलाने लगा। इसके लिए उसने अपने दो इंजीनियर दोस्तों को भी साथ मिलाया। फिर तीनों ने मिलकर 30 से ज्यादा वेबसाइट बनाई, जिनके जरिए लोगों को क्रिकेट सट्टा खिलाते थे। पुलिस से बचने के लिए जर्मनी का सर्वर इस्तेमाल करते थे।
तीनों ने सट्टे से हुई काली कमाई को प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया। अलवर में इनके पास करोड़ों के फार्म हाउस, एक लग्जरी स्पोट्र्स क्लब मिला है। राजस्थान ही नहीं, एमपी-यूपी में भी प्रॉपर्टी खरीदने के दस्तावेज पुलिस के हाथ लगे हैं।

गैंग का लीडर स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाता था यह पूरा मामला अलवर के MIA (मत्स्य इंडस्ट्रियल एरिया) इलाके का है। थाना प्रभारी अजीत बड़सरा और साइबर एक्सपर्ट संदीप मामले की जांच कर रहे हैं। सबसे पहले साइबर एक्सपर्ट संदीप को ही गैंग के लीडर की ओर से ऑनलाइन सट्टा खिलाने का इनपुट मिला था।
थाना प्रभारी अजीत बड़सरा ने बताया- ऑनलाइन क्रिकेट सट्टा खिलाने वाली गैंग का लीडर अलवर शहर के स्कीम-10 में रहने वाला नितिन पालीवाल (45) पुत्र ओमप्रकाश पालीवाल है। नितिन कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने के बाद स्टूडेंट्स को कंप्यूटर पढ़ाता था। 2021 में ट्यूशन पढ़ाना छोड़कर ऑनलाइन सट्टे के काम में लग गया था। मोटी कमाई देख नितिन ने सट्टा कारोबार बढ़ाने के लिए अपने दो इंजीनियर दोस्तों को भी इसमें शामिल कर लिया। इनमें महेश शर्मा (32) पुत्र रामनगीना शर्मा निवासी अपना घर शालीमार जी-913 और पीयूष शर्मा (33) पुत्र ओमप्रकाश निवासी शिवाजी पार्क (अलवर) शामिल हैं।

जर्मन बेस सर्वर का उपयोग खुद की वेबसाइट बनाकर ऑनलाइन क्रिकेट सट्टा खिलाने के लिए लैपटॉप, इंटरनेट और कंप्यूटर लैंग्वेज का जानकार होना जरूरी है। इंजीनियर होने के कारण तीनों के पास इसकी नॉलेज थी। तीनों ने PHP सॉफ्टवेयर के जरिए पूरा खाका तैयार किया। लोगों को ज्यादा से ज्यादा सट्टा खिलाने के लिए वेबसाइट तैयार की थी। क्रिकेट सट्टा की वेबसाइट चलाने के लिए तेज स्पीड और बेहतरीन सर्वर की जरूरत होती है। इसलिए तीनों ने मिलकर जर्मन बेस सर्वर OVH CLOUD किराए पर लिया था। इस सर्वर का हर महीने 900 डॉलर (करीब 80 हजार भारतीय रुपए) तक किराया देते थे।

तीनों इंजीनियर वेबसाइट के जरिए ऑनलाइन सट्टा खिलाते थे। तीनों ने वेबसाइट भी खुद बनाई थी।
वेबसाइट पर चेन सिस्टम के जरिए अलग-अलग लोगों को जोड़ा तीनों ने अपनी वेबसाइट पर चेन सिस्टम के जरिए बड़े सटोरियों को जोड़ा। ये सभी एक-दूसरे के बुकी (सट्टा खिलाने वाले) होते थे। मुख्य व्यक्ति एडमिन होता था। इनकी वेबसाइट के एडमिन ये तीनों आरोपी इंजीनियर थे। तीनों ने अपने अंडर में मिनी एडमिन बना रखे थे। मिनी एडमिन एक से ज्यादा कितने भी हो सकते हैं। मिनी एडमिन अपने अंडर में पूरी चेन बनाता था। इन्हें मास्टर, सुपर एजेंट, क्लाइंट और प्लेयर कहते थे। सभी का कमीशन के रूप में मुनाफा होता था, जिनको सामान्य तौर पर बुकी कहते हैं। इनकी वेबसाइट पर सट्टा खेलने के लिए वर्चुअल करेंसी की जरूरत पड़ती थी।
ये था हजारों लोगों को क्रिकेट सट्टा खिलाने का सिस्टम?
- प्लेयर का सबसे पहले रजिस्ट्रेशन होता है।
- एजेंट आईडी जनरेट कर पासवर्ड देता है।
- आईडी-पासवर्ड मिलने के बाद प्लेयर वर्चुअल करेंसी खरीदकर गेम में भाग ले सकता है।
- वर्चुअल करेंसी खरीदने के अलग-अलग तरीके होते हैं।
- जैसे कोई 100 रुपए का सट्टा लगाना चाहता है। तब खुद के अकाउंट से उसी आईडी पर क्यूआरकोड या फिर यूपीआई आईडी से पेमेंट कर सकता है।
- बैंक अकाउंट की डिटेल भी मिलती है।
- उसके बाद प्लेयर अपनी सुविधा के अनुसार वर्चुअल करेंसी खरीदता है।
- यह करेंसी उसके वॉलेट में शो होने लग जाती है। फिर सट्टा खेल सकता है।
- सट्टे में जीतने वाला अलग-अलग खातों में पैसा निकलवा सकता है, चाहे तो जिस एजेंट के जरिए जुड़ा है, उससे कैश भी ले सकता है।
- यह सब दो नंबर का पैसा बाद में एक जगह कर हवाला के जरिए मोटी रकम दूसरी जगह जरूरत के अनुसार भेजी जाती है।
हवाला के जरिए तीनों तक पहुंचते थे रुपए सट्टा लगाने वालों को रुपयों के बदले वर्चुअल करेंसी मिलती थी। सट्टा लगाने वाला रुपए अपने बुकी को देता था। बुकी कैश या ऑनलाइन किसी भी तरीके रुपए लेता था। दोनों तरीके से लिए रुपए को इक्ट्ठा कर हवाला के जरिए मेन एडमिन तक पहुंचाता था। पैसा पहुंचते ही सट्टा लगाने वाले व्यक्ति की वर्चुअल करेंसी जनरेट हो जाती थी।
तीनों ने मिलकर करोड़ों की प्रॉपर्टी खरीदी पुलिस की मानें तो अभी तक आरोपियों से 150 करोड़ के सट्टे के हिसाब-किताब का पता चला है। अभी 27 दूसरी वेबसाइट भी हैं, जिन्हें खंगालना बाकी है। यह कारोबार हजार करोड़ से भी बड़ा हो सकता है। पुलिस के अनुसार, आरोपियों ने करोड़ों की अवैध कमाई को प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट किया। इनकी दूसरे राज्यों में भी प्रॉपर्टी होने की जानकारी सामने आई है।
फिलहाल तीनों के नाम से दो बड़ी प्रॉपर्टी अलवर में होने के दस्तावेज मिले हैं। लिवारी के पास करीब 2500 वर्ग गज का फॉर्म हाउस है, जो अलवर के किसी बड़े बिजनेसमैन से खरीदा था। यह डील कितने में हुई इसका खुलासा नहीं हुआ है। इस प्रॉपर्टी में मोटा पैसा दो नंबर का पहुंचा था। अब पुलिस हवाला की रकम तक पहुंचने के लिए प्रॉपर्टी के पुराने मालिकों की जांच करने की तैयारी में है।
स्पोट्र्स क्लब बनाया, क्रिकेट और फुटबॉल खिलाते तीनों ने कटी घाटी के पास प्राइम लोकेशन पर डग आउट स्पोट्र्स क्लब के नाम से बड़ी प्रॉपर्टी 2022 में खरीदी थी। इस क्लब में क्रिकेट और फुटबॉल खिलाया जाता है। एक घंटे खेलने के 1100 रुपए फीस ली जाती है। पुलिस ने तीनों के बैंक खातों की भी जानकारी ली है। जांच पूरी होने के बाद पुलिस खुलासा करेगी।

अलवर शहर में कटी घाटी के पास प्राइम लोकेशन पर डग आउट स्पोट्र्स क्लब। ये क्लब तीनों आरोपी इंजीनियर चलाते हैं। आरोप है कि इसके लिए जमीन हवाला की रकम से खरीदी गई।
अलवर और आगरा से पकड़े गए थे तीनों साइबर सेल के हेड कॉन्स्टेबल संदीप को गैंग के लीडर के ऑनलाइन सट्टे से जुड़े होने का इनपुट मिला था। उसके बाद पुलिस ने जांच शुरू की। पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी नितिन आगरा से अलवर आ रहा है। इस पर पुलिस ने नाकाबंदी की। नितिन के अलवर आते ही उसे पुलिस ने दबोच लिया। पूछताछ के दौरान उसने गैंग में शामिल अपने इंजीनियरों दोस्तों महेश और पीयूष के बारे में बताया। दोनों आगरा में थे। अलवर पुलिस ने आगरा जाकर दोनों को पकड़ा। इसके बाद तीनों को 3 जून को कोर्ट में पेश कर 6 दिन के रिमांड पर लिया।
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