Published On: Wed, Nov 6th, 2024

Rajasthan Bypolls: Will Caste Equations Decide The Victory In The By-elections Or Will The Tradition Change? – Amar Ujala Hindi News Live


Rajasthan Bypolls: Will caste equations decide the victory in the by-elections or will the tradition change?

राजस्थान
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


इस बार प्रदेश की सातों सीटों पर चुनाव अलग-अलग दिशाओं में हैं। शायद यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय दल भी परिवारवाद और सहानुभूति कार्ड जैसे दांव आजमा रहे हैं। प्रदेश की जिन सात सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा है, उनमें से दो दक्षिणी राजस्थान में, दो पूर्वी राजस्थान में और एक-एक उत्तरी, मध्य और पश्चिमी राजस्थान में है।

रामगढ़ में कांग्रेस को मुस्लिम वोटों का सहारा

अलवर जिले की यह सीट सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाली सीट रही है। यहां के कुल वोटरों में मुस्लिम वोटर्स की संख्या 30 प्रतिशत से ज्यादा है और कांग्रेस को इसी बडे़ वोट बैंक के सहारे जीत की उम्मीद है। पार्टी के प्रत्याशी आर्यन जुबैर यहां से कांग्रेस के परंपरागत उम्मीदवार और दिवगंत विधायक जुबैर खान के पुत्र हैं। बीजेपी के सुखवंत सिंह की छवि यहां सॉफ्ट मानी जाती है। इसलिए बीजेपी के खिलाफ मेवों का ध्रुवीकरण कम रह सकता है।  

दौसा में चुनाव की दिशा सामान्य वर्ग करेगा तय

इस सीट के उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हैं। इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि सरकार से इस्तीफा देकर बैठे मंत्री किरोड़ीलाल मीणा यहां से अपने भाई जगमोहन मीणा को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं, वहीं दूसरा बड़ा कारण है कि एक सामान्य वर्ग की सीट पर भाजपा ने जगमोहन मीणा के रूप में जहां अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस डीडी बैरवा के रूप में अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। इस सीट के कुल वोटों में से करीब पचास प्रतिशत एससी-एसटी के वोट हैं और शेष पचास प्रतिशत में सामान्य, मुस्लिम और ओबीसी के वोटर आते हैं। अब चूंकि दोनों ही प्रमुख दलों ने सामान्य या ओबीसी वर्ग से किसी को टिकट नहीं दिया है, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि ये वोट कांग्रेस या भाजपा में से किसे चुनते हैं। हालांकि भाजपा को उम्मीद है कि सामान्य और मूल ओबीसी वोट परंपरागत रूप से भाजपा के साथ रहे हैं, इसलिए मीणा वोटों के साथ इन वोटों का जुड़ाव उसकी जीत को आसान बना देगा।

देवली-उनियारा में कांग्रेस को मीणा वोट कटने का डर 

टोंक जिले की इस सीट पर मीणा, गुर्जर और मुस्लिम वोटों का बाहुल्य है। कांग्रेस ने मीणा और मुस्लिम वोटों की गोलबंदी की उम्मीद में यहां से कस्तूरचंद मीणा को टिकट दिया है। चूंकि सचिन पायलट टोंक से विधायक हैं और यह उन्हीं के खेमे के हरीश मीणा की सीट रही है, इसलिए पार्टी को गुर्जर वोटों की उम्मीद भी है, लेकिन कांग्रेस के इन दोनों ही वोट बैंकों में सेंध पड़ गई है। कांग्रेस के बागी के रूप में पूर्व छात्र नेता नरेश मीणा मैदान में हैं, जो मीणा वोटों को बंटवारा कर सकते हैं, वहीं भाजपा ने अपने पुराने कार्यकर्ता राजेन्द्र गुर्जर को टिकट देकर कांग्रेस की एकमुश्त गुर्जर वोट मिलने की उम्मीद को भी झटका दिया है। ऐसे में कांग्रेस की बड़ी उम्मीद यहां मुस्लिम वोट हैं, वहीं भाजपा सामान्य और मूल ओबीसी वोटों के सहारे दिखाई दे रही है।

राजेंद्र गुढ़ा हैं झुंझुनू में एक्स फैक्टर

शेखावटी क्षेत्र की इस सीट पर कांग्रेस के ओला परिवार का वर्चस्व रहा है और इस बार भी पार्टी ने इसी परिवार के अमित ओला को टिकट देकर जाट और मुस्लिम वोटों के सहारे जीत की उम्मीद की है, क्योंकि इस सीट पर यही दो वोट सबसे ज्यादा हैं। भाजपा ने भी हालांकि राजेन्द्र भांभू के रूप में जाट उम्मीदवार को ही टिकट दिया है, ऐसे में जाट वोटों के बंटवारे के साथ ही पार्टी को सामान्य और मूल ओबीसी के वोटों की उम्मीद भी है, लेकिन इस सीट के एक्स फैक्टर राजेन्द्र गुढ़ा माने जा रहे हैं जो कांग्रेस के एससी और मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करते दिख रहे हैं और ऐसा होता है तो इसका सीधा फायदा भाजपा के उम्मीदवार हो सकता है।

खींवसर के त्रिकोणीय संघर्ष में बटेंगे जाट वोट

नागौर जिले की खींवसर सीट पर जाट मुस्लिम और एससी मतदाता सबसे ज्यादा हैं। यहां हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय संघर्ष है और चूंकि तीनों के उम्मीदवार जाट हैं, इसलिए जाट वोट तीन जगह बंटेंगे। किसी भी प्रत्याशी का जीत का दारोमदार एससी और मुस्लिम वोटों पर रहेगा, जो वैसे तो कांग्रेस के वोट बैंक माने जाते हैं, लेकिन इस सीट पर आरएलपी के साथ जाते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में आरएलपी से भाजपा में गए रेवतराम डांगा ने आरएलपी के वोट बैंक में अच्छी सेंधमारी की थी और हनुमान बेनीवाल सिर्फ दो हजार वोटों से जीत पाए थे। इस बार भी भाजपा ने फिर से डांगा पर दांव खेला है। वहीं हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे सवाईसिंह की पत्नी रतन चौधरी को टिकट दिया है।

चौरासी आरक्षित सीट पर सब कुछ एसटी वोटों के हाथ

बांसवाड़ा जिले की इस आदिवासी बहुल सीट पर करीब 85 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति की है। ऐसे में यहां अन्य जातियों या सामान्य वर्ग के लिए बहुत गुंजाइश बचती नहीं है। आदिवासियों की बीच सक्रिय भारतीय आदिवासी पार्टी और भाजपा व कांग्रेस के बीच यहां त्रिकोणीय मुकाबला है तो सही, लेकिन जातिगत समीकरण आदिवासियों की ही उपजातियों के बीच के हैं।

सलूंबर में आदिवासियों के साथ ही अन्य वोट बैंक भी प्रभावी

अब तक उदयपुर का हिस्सा रही सलूंबर सीट अब खुद अपने आप में जिला हो गई है। आदिवासियों की संख्या अधिक होने के कारण यह भी आरक्षित सीट है, लेकिन यहां सामान्य वर्ग की अन्य जातियां जैसे जैन, ब्राह्मण, राजपूत और मूल ओबीसी की जातियां भी ठीकठाक संख्या में हैं। यही कारण है कि इस सीट पर आदिवासी पार्टियों के बजाए कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होता आया है। दिवंगत विधायक अमृतलाल  मीणा यहां से लगातार तीसरी बार विधायक बने थे। इस बार भाजपा ने उनकी पत्नी शांतादेवी को टिकट देकर अनूसूचित जनजाति के साथ ही सामान्य वर्ग के अपने परंपरागत वोट बैंक के सहारे जीत की उम्मीद की है। उनके सामने कांग्रेस की रेशम मीणा हैं, वहीं बीएपी ने भी रमेशचंद मीणा को मैदान में उतारा है।

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