Published On: Sun, Nov 10th, 2024

Political News Rajasthan by election explainer Khinwsar Chaurasi and salumber | उपचुनाव में कौन बिगाड़ रहा किसके समीकरण?: खींवसर में बेनीवाल को हराने कांग्रेस ने बिछाई बिसात; देवली-उनियारा में नरेश मीणा को बेनीवाल-रोत का साथ – Rajasthan News


लोकसभा चुनाव में जिन पार्टियों ने दोस्ती निभाई थी, उपचुनाव में एक दूसरे की हार की बिसात बिछा रहे हैं। उपचुनाव में बिना गठबंधन के एक-दूसरे के सामने प्रत्याशी उतारना, कई सीटों के समीकरण प्रभावित कर रहा है।

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हनुमान बेनीवाल अब तक जिस फॉर्मूले के साथ खींवसर में जीत दर्ज करते आए हैं, उन्हें लोकसभा में साथी रही कांग्रेस ने ही मुसीबत में डाल दिया है। सलूंबर और चौरासी सीट पर भी कुछ ऐसा ही नजारा है। तीनों सीटों पर गठबंधन नहीं होने का असर देवली-उनियारा के समीकरण बिगाड़ रहा है। क्योंकि बीएपी के साथ-साथ आरएलपी ने देवली-उनियारा में कांग्रेस के बागी नरेश मीणा को समर्थन देकर चौंका दिया है।

लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे का साथ निभाने वाले किस तरह से उपचुनाव में एक-दूसरे पटखनी देने लिए जुटे हैं, पढ़िए पूरी रिपोर्ट….

खींवसर सीट पर बेनीवाल को कांग्रेस ने घेरा, बीजेपी की राह आसान लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने RLP से गठबंधन कर नागौर में कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बेनीवाल के लिए सभाएं करने आए थे। बेनीवाल ने जीत भी दर्ज की थी। लेकिन लेकिन विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने हनुमान बेनीवाल की जगह खाली हुई सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा है। पहले से ही बीजेपी ने इस सीट पर बेनीवाल की मुश्किलें बढ़ा रखी थीं। अब कांग्रेस के इस दांव ने बेनीवाल को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है।

हनुमान बेनीवाल ने इस उपचुनाव में अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा है।

हनुमान बेनीवाल ने इस उपचुनाव में अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा है।

ये बात उनके हालिया चुनावी भाषणों में भी साफ झलकती है। हनुमान बेनीवाल अपने चुनाव प्रचार में साफ कहते हैं कि उनका केंद्र में कांग्रेस से गठबंधन है और बीजेपी ही उनकी एक नंबर दुश्मन है। यहां राजस्थान में शेखावाटी के एक बड़े नेता (गोविन्द सिंह डोटासरा) और बाड़मेर के नेता (हरीश चौधरी) ने कांग्रेस को गुमराह कर उनका गठबंधन नहीं होने दिया। इन्होंने उन्हें हराने के लिए बीजेपी से सेटिंग की है और बीजेपी को जीत के लिए उपचुनाव में मैदान सेट करके दिया है।

हाल ही में हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव और ओसियां की पूर्व विधायक दिव्या मदेरणा पर जमकर जुबानी हमला बोलते हुए कहा है कि वो खींवसर में कांग्रेस प्रत्याशी नहीं बल्कि बीजेपी प्रत्याशी के लिए वोट मांगती फिर रही है। वो यहां बीजेपी नेताओं से मिली हुई है। टिकटों की घोषणा से पहले जयपुर में पत्रकारों से बात करते हुए पीसीसी अध्यक्ष डोटासरा ने कहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद बेनीवाल खुद ही कहते थे कि उनका INDIA गठबंधन इंडिया में है, राजस्थान में नहीं।

हनुमान बेनीवाल के लिए पहली बार यहां बड़ी चुनौती क्यों? हनुमान बेनीवाल ने साल 2008 में खींवसर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर जोरदार जीत हासिल की थी। नागौर में राजनीति के जानकार बताते हैं कि इसी चुनाव से हनुमान बेनीवाल को यहां अपनी जीत का फॉर्मूला मिल गया था।

इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी दुर्ग सिंह चौहान ने तब के कांग्रेस प्रत्याशी सहदेव चौधरी से दोगुने वोट हासिल किए थे। एक निर्दलीय प्रत्याशी भागीरथ ने भी तकरीबन 12 हजार वोट लाकर कांग्रेस पार्टी की हालत खराब कर दी थी। हनुमान बेनीवाल तब ये चुनाव निकटतम प्रत्याशी दुर्ग सिंह से 24 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। यहां ये साफ हो गया था कि चुनाव में एक मजबूत निर्दलीय और एक तीसरे दल के मजबूत नेता की मौजूदगी ने बेनीवाल की जीत आसान बनाई।

हनुमान बेनीवाल और रेवंतराम डांगा की पुरानी तस्वीर। डांगा की गिनती बेनीवाल के रणनीतिकारों में होती थी।

हनुमान बेनीवाल और रेवंतराम डांगा की पुरानी तस्वीर। डांगा की गिनती बेनीवाल के रणनीतिकारों में होती थी।

साल 2013 का चुनाव बेनीवाल निर्दलीय जीता। इस जीत के पीछे भी यही फॉर्मूला काम आया। बीजेपी तीसरे नंबर पर रही और चौथे नंबर पर पहुंची कांग्रेस पार्टी की जमानत तक जब्त हो गई। दूसरे नंबर पर रहे बसपा के दुर्ग सिंह चौहान ने बीजेपी और कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान करते हुए 42 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। बावजूद इसके बेनीवाल की लीड 23 हजार से ज्यादा वोटों की थी।

साल 2018 में बेनीवाल के सामने कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस सवाई सिंह गोदारा को टिकट दिया। बीजेपी ने तत्कालीन जिलाध्यक्ष रामचंद्र को उतारा। इस बार सियासी चर्चा रही कि बीजेपी ने जान-बूझकर यहां अपना कमजोर प्रत्याशी उतारा था। बेनीवाल ने यह चुनाव 16 हजार 948 वोटों से जीत लिया। यहां कांग्रेस दूसरे तो बीजेपी तीसरे नंबर पर रही। बेनीवाल ये चुनाव जीते जरूर थे लेकिन पहली बार उनकी लीड घट गई। कारण था- अब तक बसपा के टिकट पर दो चुनाव लड़ चुके दुर्ग सिंह चौहान ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा। इससे कांग्रेस का वोट कटने से बच गया और वो दूसरे नंबर पर रही।

इसके बाद साल 2019 में बेनीवाल बीजेपी के सहयोग से अपनी पार्टी RLP के टिकट पर नागौर से MP बन गए। इसके बाद खींवसर सीट पर हुए उपचुनाव में उनके भाई नारायण बेनीवाल के सामने कांग्रेस से पूर्व मंत्री हरेंद्र मिर्धा प्रत्याशी बने। इस बार आमने-सामने की फाइट में बेनीवाल को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिली। नारायण महज 4630 वोटों से ही चुनाव जीत पाए थे। अब बेनीवाल की लीड घटकर 5 हजार के अंदर आ गई थी।

साल 2023 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल ने एक बार फिर RLP के टिकट से विधानसभा चुनाव लड़ा। इस बार बीजेपी के टिकट पर कभी उनके अपने और खास रहे रेवंतराम डांगा मैदान में थे। कांग्रेस से कुचेरा के नगरपालिका चेयरमैन तेजपाल मिर्धा। वहीं एक बार फिर दुर्ग सिंह चौहान ने यहां निर्दलीय ताल ठोंक दी। इस बार हनुमान बेनीवाल यहां बीजेपी के रेवंतराम डांगा से हारते-हारते बचे। महज 2059 वोटों से चुनाव जीते। इस चुनाव में एक बार फिर दुर्ग सिंह के हासिल किए 15 हजार वोटों ने काफी अंतर पैदा कर दिया था। इस चुनाव के नतीजों के विश्लेषण ने साफ कर दिया कि अब बेनीवाल की राह आसान नहीं होने वाली।

बीजेपी का दुपट्टा पहने दुर्ग सिंह चौहान। दुर्ग सिंह ने हाल ही में बीजेपी का दामन थामा है।

बीजेपी का दुपट्टा पहने दुर्ग सिंह चौहान। दुर्ग सिंह ने हाल ही में बीजेपी का दामन थामा है।

उपचुनाव में बीजेपी ने न सिर्फ दुर्ग सिंह बल्कि इस सीट पर अब तक जिन-जिन नेताओं ने यहां प्रभाव डाला है, उन सभी को एक-एक कर अपने पाले में मिला लिया है। वहीं कांग्रेस का बेनीवाल की पार्टी से गठबंधन नहीं होना और कांग्रेस से भी मजबूत प्रत्याशी के मैदान में आने से यहां का चुनाव अब न सिर्फ रोचक बल्कि त्रिकोणीय बन गया है। फिलहाल मैदान में पाले बनाकर खड़े तीनों ही प्रत्याशी मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं। जानकार बताते हैं कि पहली बार बेनीवाल यहां फंसे हुए दिख रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने यहां प्रचार में दिन-रात एक कर दिया है।

चौरासी और सलूंबर में BAP के समीकरण प्रभावित कर रही कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ लेने और देने वाली बीएपी ने सलूंबर और चौरासी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में गठबंधन तोड़कर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। अब यहां दोनों ही सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गई है। बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने कांग्रेस पर हाल में अपने प्रचार के दौरान भाषणों में सीधा हमला करते हुए सलूंबर और चौरासी में कांग्रेस की जमानत जब्त करवाने का दावा किया है।

रोत का मानना है कि दोनों ही सीटों पर BAP का मुख्य मुकाबला कांग्रेस के साथ नहीं है बल्कि बीएपी सीधे भाजपा से मुकाबला कर रही है।

राजकुमार रोत ने अपनी बीएपी पार्टी से चौरासी (डूंगरपुर) से अनिल कुमार कटारा को प्रत्याशी बनाया है।

राजकुमार रोत ने अपनी बीएपी पार्टी से चौरासी (डूंगरपुर) से अनिल कुमार कटारा को प्रत्याशी बनाया है।

डूंगरपुर की चौरासी सीट राजकुमार रोत के सांसद बनने से खाली हुई है। वे पिछली दो बार से यहां से विधायक थे। साल 2023 के चुनाव में प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जीत दर्ज कर रोत विधानसभा पहुंचे थे, फिर सांसद भी बन गए और अब यहां उपचुनाव हो रहे हैं। इस बार बीजेपी, कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी (BAP) सहित तीनों ही पार्टियों ने यहां नए चेहरों को मैदान में उतारा है।

भारत आदिवासी पार्टी ने अनिल कटारा को उम्मीदवार बनाया है। अनिल अभी जिला परिषद सदस्य हैं। वहीं बीजेपी ने यहां सीमलवाड़ा के प्रधान कारीलाल निनामा को उम्मीदवार बनाया है। इसके जवाब में कांग्रेस ने भी यहां से युवा चेहरे और सरपंच महेश रोत को उम्मीदवार बनाया है।

वे छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं और यूथ कांग्रेस के महासचिव भी रहे हैं। जानकार बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में जिस कांग्रेस पार्टी ने भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत को सांसद बनाने के लिए अपने घोषित प्रत्याशी से किनारा कर लिया था, अब वही यहां भारत आदिवासी पार्टी का खेल बिगाड़ रही है।

सलूंबर से बीएपी ने जितेश कटारा को अपना प्रत्याशी बनाया है।

सलूंबर से बीएपी ने जितेश कटारा को अपना प्रत्याशी बनाया है।

कमोबेश यही हाल सलूंबर सीट पर है। भाजपा ने यहां अपने दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी को प्रत्याशी बना सहानुभूति फैक्टर पर दांव खेला है, तो कांग्रेस पार्टी ने महिला के सामने महिला प्रत्याशी को खड़ा करते हुए 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बागी हो चुनाव लड़ चुकी रेशमा मीणा को इस बार टिकट देकर मैदान में उतारा है। कांग्रेस से खार खाई बीएपी पार्टी ने 2023 के विधानसभा प्रत्याशी जितेश कटारा को एक बार फिर सलूंबर के चुनावी मैदान में खड़ा कर दिया है।

लोकसभा चुनावों में दोस्त रहे, देवली उनियारा में नरेश के लिए बन गए कांग्रेस के दुश्मन कांग्रेस के हरीश मीणा लगातार दो बार इस सीट पर जीत हासिल कर अपना लोहा मनवा चुके हैं। हाल ही में लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें सांसद का चुनाव लड़वाया। इसमें मीणा टोंक सीट से सांसद चुने गए। इसके चलते विधानसभा सीट खाली हुई और अब यहां उपचुनाव हो रहे हैं।

बीजेपी ने इस बार यहां साल 2013 में चुनाव जीतकर विधायक रहे राजेंद्र गुर्जर को टिकट दिया है और विजय बैंसला का टिकट काट दिया है। इससे पहले पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में यहां पार्टी ने साल 2018 में चुनाव हारे राजेंद्र गुर्जर का टिकट काटकर बैंसला को प्रत्याशी बनाया था। इस बार कांग्रेस पार्टी ने यहां कस्तूर चंद मीणा को टिकट दिया है।

देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा को हनुमान बेनीवाल और राजकुमार रोत सहित रविंद्र सिंह भाटी ने भी समर्थन दिया है।

देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा को हनुमान बेनीवाल और राजकुमार रोत सहित रविंद्र सिंह भाटी ने भी समर्थन दिया है।

कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बाद कांग्रेस के युवा चेहरे नरेश मीणा पार्टी से बागी होकर निर्दलीय लड़ रहे हैं। नागौर-सलूंबर-चौरासी में गठबंधन टूटने का असर इस सीट पर भी देखा जा रहा है। RLP के हनुमान बेनीवाल और BAP के सांसद राजकुमार रोत यहां नरेश मीणा को सपोर्ट कर रहे हैं। इस सपोर्ट ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। इसका नरेश को फायदा होने से ज्यादा कांग्रेस पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है। यही वजह है कि लगातार दो बार से यहां जीत रही कांग्रेस पार्टी की हैट्रिक की राह कठिन हो गई है।

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