Published On: Tue, Dec 31st, 2024

PM मोदी ने दिया देशवासियों को तोहफा, नदियां जुड़ेंगी, विकास की धाराएं बहेंगी



नई दिल्ली. साल 2024 जाते-जाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के विकास की राह स्थाई समृद्धि की ओर मोड़ने की बड़ी पहल की है. जरा सोचिए कि अगर देश की सभी बड़ी 37 नदियां आपस में जुड़ जाएं, तो क्या होगा! पर्यावरण संकट को हल करने में की दिशा में यह परियोजना कितनी बड़ी कामयाबी साबित हो सकती है, इसका सटीक अदाजा अभी लगाना आसान नहीं होगा, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि बाढ़ और सूखे की वजह से हर साल होने वाला अरबों-खरबों रुपये का नुकसान नहीं होगा. राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना पूरी होने पर न सिर्फ करोड़ों किसान उत्तरोत्तर समृद्ध होंगे, बल्कि धरती की सेहत पर भी बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. साथ ही करोड़ों, अरबों भारतवासियों को हर मौसम में पीने का शुद्ध पानी मिल पाएगा. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर भारत में ऐसी पहल की नींव रखी गई, जो देश की समृद्धि के लिए मील का ऐतिहासिक पत्थर साबित होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के खजुराहो में केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना समेत विकास से जुड़ी कई परियोजनाओं की आधारशिला रखी, तो देश ने विकास की नई स्थाई राह पर पहला सधा हुआ कदम मजबूती से रख दिया. यह देश की पहली राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना है. इससे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लाखों किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा. यह भी जानते चलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह पहल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की जयंती पर सुशासन दिवस पर की.

प्रोजेक्ट पूरा होने पर एमपी के 10 जिलों के करीब 44 लाख और यूपी के करीब 21 लाख लोगों की पीने का पानी भी मिलेगा. इस परियोजना के तहत पन-बिजली प्रोजेक्टों की मदद से 100 मेगावाट से ज्यादा हरित ऊर्जा का उत्पादन भी किया जाएगा. साफ है कि यह योजना रोजगार के बहुत से दीर्घकालीन मौके मुहैया कराएगी. साथ ही पर्यटन को भी खासा बढ़ावा मिलेगा. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है कि यह परियोजना एमपी और यूपी के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड वाले हिस्से का कायाकल्प करने में मददगार साबित होगी. इससे बुंदेलखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदहाली दूर करने में मदद मिलेगी. माना जाता है कि भारत में नदियों को जोड़ने का विचार 166 साल पुराना है. साल 1858 में ब्रिटिश सैन्य इंजीनियर आर्थर थॉमस कॉटन ने बड़ी नदियों को नहरों के जरिये जोड़ने का प्रस्ताव दिया था. मकसद था ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए बंदरगाहों की सुविधा बढ़ाना और दक्षिण-पूर्वी प्रांतों में बार-बार पड़ने वाले सूखे से निपटना. लेकिन उस वक्त यह प्रस्ताव परवान नहीं चढ़ा. बाद में इस चर्चा ने 144 साल बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जोर पकड़ा. वाजपेयी की तत्कालीन सरकार ने वर्ष 2002 में नदी जोड़ो परियोजना को ले कर काम शुरू किया, लेकिन तब भी कुछ शुरुआती सलाह-मशविरे के बाद यह विचार ठोस धरातल पर नहीं उतर पाया, हालांकि इस प्रोजेक्ट की नींव तो पड़ ही चुकी थी.

नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना का पहला चरण
मई, 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय पहली बार बनाए जाने पर इस योजना के जमीन पर उतरने की उम्मीद फिर से जागी. देश के पहले जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत (अब केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री) ने इस दिशा में ठोस पहल शुरू की और अब तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने योजना के पहले चरण को अमली जामा पहना दिया है. मोदी सरकार की पहल पर 22 मार्च, 2021 को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने केन-बेतवा परियोजना के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. योजना के साकार होने पर एमपी के पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, सागर, रायसेन, विदिशा, शिवपुरी और दतिया के आठ लाख, 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा में इजाफा होगा. यूपी में 59 हजार हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा बढ़ने से महोबा, झांसी, ललितपुर और बांदा जिलों के लोगों को इसका सीधा फायदा मिलेगा. वर्ष के आखिरी महीने में मोदी सरकार नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना के पहले चरण की आधारशिला रख कर यह साबित कर दिया है कि वह इसे ले कर पूरी तरह से गंभीर है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ही कोसी-मेची नदियों को जोड़ने के लिए चार हजार, नौ सौ करेड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी. केन-बेतवा के बाद यह देश का दूसरा सबसे बड़ा नदी जोड़ो प्रोजेक्ट है. इस परियोजना के तहत कोसी नदी को महानंदा नदी की सहायक मेची नदी से जोड़ा जाना है.

बाढ़ और सूखे से बचाव
हम जानते हैं कि बारिश के मौसम में देश के कई हिस्सों में बाढ़ के गंभीर हालात बन जाते हैं. इसके उलट कई राज्यों में बहुत सा इलाका सूखे की चपेट में आ जाता है. ऐसे में जानकारों का मानना है कि देश में अगर मुख्य नदियों को एक-दूसरे से जोड़ दिया जाए, तो बाढ़ और सूखे, दोनों समस्याओं से निजात पाई जा सकती है. यह भई जान लें कि चंद राज्यों के स्तर पर नदियों को जोड़ने के काम पर जोर पहले से ही दिया जा रहा है. मध्य प्रदेश की तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने नर्मदा-शिप्रा को जोड़ने का काम किया. वहां कालीसिंध-पार्वती नदियों को जोड़ने का काम को भी मंजूरी दी गई थी. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने नर्मदा का पानी साबरमती नदी में पहुंचा कर उसे प्रवाहमान बनाया था. राष्ट्रीय परियोजना नदी जोड़ो (इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर्स यानी आइएलआर) के तहत 15 हजार किलोमीटर लंबी नई नहरें खोदने की योजना है. इनमें 174 घन किलोमीटर पानी जमा किया जा सकेगा. राष्ट्रीय नदी जोड़ो प्रोजेक्ट में कुल 30 लिंक बनाने की योजना है, जिनसे देश की 37 नदियां जुड़ी होंगी. इसके लिए तीन हजार स्टोरेज डेम का नेटवर्क बनाया जाएगा. यह काम दो हिस्सों में किया जाना है. एक हिस्सा हिमालयी नदियों के विकास का होगा. इसमें 14 लिंक चुने गए हैं. इसके तहत गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों पर रिजर्वायर बनाए जाने हैं. दूसरा हिस्सा दक्षिणी जल ग्रिड का है. इसके तहत 16 लिंक तैयार कर दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ा जाना है. महानदी और गोदावरी को कृष्णा, पेन्नार, कावेरी और वैगाई नदी से जोड़े जाने की योजना है.

यूपीए सरकार में नदी जोड़ो मिशन की अनदेखी
यह भी जानते चलें कि वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने से पहले यूपीए-वन और यूपीए-टू सरकार के दौरान नदी जोड़ो प्रोजेक्ट पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया. यूपीए सरकार में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री रहे जयराम रमेश का मानना था कि यह योजना देश के लिए विनाशक साबित होगी. देश-विदेश के कई विशेषज्ञ भी ऐसा ही मानते हैं. लेकिन बहुत से विशेषज्ञ इसके पक्ष में हैं कि नदियों को जोड़े जाने से देश में अकाल और सूखे के साथ ही बाढ़ के हालात से निजात मिल सकती है. साथ ही जमीन के अंदर पानी के स्तर में भी बढ़ोतरी होगी. जो काम मोदी सरकार ने दिसंबर, 2024 में किया है, उसे करने की मंशा नरेंद्र मोदी ने 10 साल पहले ही जता दी थी. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर अपनी प्राथमिकता का इजहार कर दिया था. उन्होंने लिखा कि ‘नदियों को जोड़ने का अटलजी का सपना ही हमारा भी सपना है.’ यह भी जानते चलें कि फरवरी, 2012 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस. एच. कपाड़िया और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना था कि नदयों को जोड़ने का कार्यक्रम ‘राष्ट्रहित में है. उन्होंने नदियों को जोडऩे के लिए विशेष कमेटी बनाने का आदेश भी दिया था. उसके आधार पर नरेंद्र मोदी सरकार ने शपथ लेने के कुछ महीने बाद ही 23 सितंबर, 2014 को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्रालय के तहत विशेष समिति का गठन कर दिया. अप्रैल, 2015 में इसे ले कर एक स्वतंत्र कार्यबल भी गठित कर दिया गया.

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नदी जोड़ो मिशन की परिकल्पना पुरानी
और पीछे जाएं, तो साल 1970 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री डॉ. के. एल. राव ने राष्ट्रीय जल ग्रिड बनाने का प्रस्ताव रखा था. उन्होंने ब्रह्मपुत्र और गंगा के पानी को मध्य और दक्षिण भारत के सूखे इलाकों की ओर मोड़ने की बात कही थी. दस साल बाद वर्ष 1980 में जल संसाधन मंत्रालय ने नेशनल परस्पेक्टिव फॉर वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट नाम की रिपोर्ट तैयार की. इसमें वाटर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को दो हिस्सों में बांटा गया- हिमालयी इलाका और प्रायद्वीपीय इलाका. वर्ष 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी ने नदी जोड़ो योजना के गहराई से अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई थी. साल 1982 से 2013 तक एनडब्ल्यूडीए ने 30 से ज्यादा रिपोर्टें तैयार कीं, लेकिन एक भी परियोजना शुरू नहीं हो पाई. ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर पीएम मोदी ने न सिर्फ उनका सपना पूरा करने के लिए जमीनी पहल शुरू कर दी है, बल्कि उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया. साथ ही 1,153 अटल ग्राम सुशासन भवनों की आधारशिला भी उन्होंने रखी. ये भवन स्थानीय स्तर पर सुशासन के लिए ग्राम पंचायतों के कामों और जिम्मेदारियों के व्यावहारिक संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

Tags: Pm narendra modi, PM Narendra Modi News, Rivers flooded

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