Published On: Tue, Dec 10th, 2024

Musical Instrument: मरा नहीं, आज भी जिंदा है रावण! ऐसे बना लोगों के लिए कमाई का जरिया



अजमेर. रावणहत्था एक प्राचीन वाद्य यंत्र है, इसका उपयोग प्राचीन समय से लोक संगीत और भक्ति  में किया जाता रहा है. आधुनिकता और तकनीकी विकास के कारण इन पारंपरिक वाद्ययंत्रों की मांग में कमी आ रही है, लेकिन कई कलाकार अब भी अपनी इस धरोहर को जीवित रखे हुए हैं. इन वाद्ययंत्रों को बजाने वाले लोक कलाकार अपनी कला के माध्यम से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं.

रोजी-रोटी का एकमात्र साधन
कलाकार किशोर ने बताया कि वे पिछले 45 सालों से इस रावण हत्था वाद्ययंत्र को बजा रहे हैं. ये वाद्ययंत्र उनकी रोजी-रोटी का एकमात्र साधन है. वे रोजाना इस वाद्ययंत्र को बजाकर 300 से 400 रुपए प्रतिदिन कमा कर अपना जीवन यापन करते हैं. उन्होंने बताया कि इसको बजाना सीखने के लिए काफी अभ्यास करना पड़ता है.

भारत में प्रचलन की ये है वजह
कहते हैं कि हनुमानजी श्रीलंका से रावण हत्थे को उठा लाए थे और तभी इसका प्रचलन भारत के राजस्थान के पश्चिमी इलाके में होने लगा. पौराणिक साहित्य और हिन्दू परम्परा की मान्यताओं के हिसाब से ईसा से 3000 वर्ष पूर्व लंका के राजा रावण ने इसका आविष्कार किया था. रावण के ही नाम पर इसे ‘रावण हत्था’ या ‘रावण हस्त वीणा’ कहा जाता है.

भगवान शिव को करता था प्रसन्न 
वाद्ययंत्र को बजाने वाले किशोर बताते हैं कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था. वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावणहत्था का प्रयोग करता था .

इस तरह बनता है ये वाद्य यंत्र

कलाकार किशोर ने बताया कि इस वाद्य यंत्र को धनुष जैसी मींड़ और लगभग डेढ़-दो इंच व्यास वाले बांस से बनाया जाता है. एक अधकटी सूखी लौकी या नारियल के खोल पर पशुचर्म अथवा सांप के केंचुली को मंढ़ कर एक से चार संख्या में तार खींच कर बांस के लगभग समानान्तर बांधे जाते हैं. यह वाद्य यंत्र एक मनमोहक, अलौकिक ध्वनि उत्पन्न करता है जिसका उपयोग अक्सर पारंपरिक भारतीय संगीत में किया जाता है.

Tags: Folk Music, Local18, Ravan Leela, Ravana Mandodari, Udaipur news

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