Published On: Sat, Dec 14th, 2024

Khabaron Ke Khiladi: संविधान पर चर्चा संसदीय लोकतंत्र के लिए कैसा संकेत? बता रहे हैं खबरों के खिलाड़ी


Khabaron Ke Khiladi discussion on 75th anniversary of adoption of Constitution in parliament

खबरों के खिलाड़ी।
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


संसद के शीतकालीन सत्र में इस हफ्ते संविधान पर चर्चा हुई। चर्चा की शुरुआत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की। इसी तरह विपक्ष की ओर से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपनी बात रखी। चर्चा में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा। इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इसी विषय पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, राकेश शुक्ल, अवधेश कुमार और रुद्र विक्रम सिंह मौजूद रहे। 

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पूर्णिमा त्रिपाठी: संविधान को जरिया बनाकर चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हो सभी अपनी-अपनी राजनीति साध रहे हैं। ये जरूर अच्छा है कि इस पर चर्चा हो रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष भले एक दूसरे पर आरोप लगाएंगे। संविधान क्यों बना है, इस पर चर्चा हो रही है। संविधान के मूल की सिद्धांतों की चर्चा हो रही है, एक तरह से ले देकर यह एक स्वस्थ्य चर्चा है। इसका मैं स्वागत करती हूं। 

रामकृपाल सिंह: संविधान पर चर्चा या संविधान की चर्चा? मैं समझता हूं जो कल हुआ है वो संविधान की चर्चा है। मैं इसे बहुत अच्छा मानता हूं। इससे यह तो तय हो गया कि संविधान अभी जिंदा है। और कम से कम जो लोग यह कह रहे थे कि संविधान की हत्या हो रही है उन्हें भी यह पता चला कि संविधान अभी जिंदा है। अगर मैं पूरी चर्चा का निष्कर्ष देखूं तो संविधान के नाम पर ही सही बहस की शुरुआत हुई है। यह सुखद है।  

राकेश शुक्ल: हम संविधान स्थापना पर चर्चा कर रहे हैं। उसमें विष बमन नहीं होना चाहिए। हमें इस पर चर्चा करनी चाहिए थी कि हमे इतिहास से कैसे सबक लेकर सुंदर भविष्य को बनाना है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि पिछले डेढ़ साल से संविधान एक राजनीतिक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। 

विनोद अग्निहोत्री: मुझे 1997 याद आता है जब संसद का स्वर्ण जयंति सत्र हुआ था। तब कई नेताओं के बहुत अच्छे-अच्छे भाषण हुए थे। बजाय अतीत के दोषारोपण के भविष्य की चर्चा हुई थी। इस बार की चर्चा में पक्ष-विपक्ष इसका इस्तेमाल अतीत के दोषारोपण के लिए इस्तेमाल करते दिखे। मुझे लगता है कि आरोप-प्रत्यारोप की जगह भविष्य के भारत पर चर्चा होती तो ज्यादा बेहतर होता। 

अवधेश कुमार: आपने संविधान दिवस के विशेष सत्र को आम संसद सत्र में खड़ा कर दिया यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे देश की संविधान सभा जब बनी तब भारत-पाकिस्तान एक था। इसी के दौरान देश का विभाजन हो गया। दंगे हुए। लाखों लोग देश में आए। इस सबके बीच संविधान बना। संविधान दिवस पर संविधान की भावना को लोगों ने रौंदा है। 

रुद्र विक्रम सिंह: संविधान की चर्चा के बीच में न्याय पर भी चर्चा होनी चाहिए। जो साधन संपन्न हैं जिनके पास तंत्र और पैसा है उनके मामलों में 24 घंटे के अंदर फैसले आते हुए हमने देखे हैं। वहीं, दूसरी तरफ ऐसे भी मामले देखे हैं जहां जमानत होने के बाद भी लोग 20-20 दिन तक सलाखों के पीछे पड़े रहे क्योंकि आदेश जेल तक नहीं पहुंचा। न्याय की इन विसंगतियों पर भी चर्चा होनी चाहिए थी।

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