Independence Day : खुदीराम बोस के बाद फांसी पर लटकने वाले पहले बिहारी क्रांतिकारी, शहीद रामदेनी सिंह की ऐसी है कहानी

Bihar: अगस्त 2019 में बिहार सरकार द्वारा गांधी कुटीर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की स्वीकृति मिली थी, लेकिन आज भी गांधी कुटीर किसी उद्धारक का इंतजार कर रहा है। हालांकि अतीत के यादों के सहारे गांधी कुटीर के इतिहास को अब संजो कर रखा गया है।

पैतृक आवास
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सारण का मलखाचक वह गांव है, जहां के वीर बांकुरें ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से अगस्त क्रांति तक करते रहे। वर्ष 1857 की प्रथम लड़ाई में बाबू वीर कुंवर सिंह की सेना में इस गांव के कई योद्धा शामिल हुए थे। सन 1857 की लड़ाई में इस गांव के योद्धाओं में एक थे राम गोविंद सिंह उर्फ चचवा। बुजुर्गों के अनुसार बाबू वीर कुंवर सिंह इनकी अभूतपूर्व वीरता के कायल थे। खुदीराम बोस के बाद मुजफ्फरपुर कारा में जिस प्रथम बिहारी क्रांतिकारी को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया, वह इसी मलखाचक गांव के रामदेनी सिंह थे क्योंकि सारण जिला सहित कई अन्य जिलों में हिंसक क्रांति की अगुआई करने वालों में मुख्य कर्ताधर्ता थे। साथ ही रामदेनी बाबू क्रांतिकारी संस्था आजाद दस्ता के संचालक भी थे। हाजीपुर ट्रेन डकैती के मुख्य अभियुक्त के रूप में अंग्रेजी सल्तनत ने वर्ष 1930 में फांसी की सजा दी थी। आज घर और गांव वालों के पास उनकी एक तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है। गांव के लोग आज भी मुजफ्फरपुर कारा प्रशासन से उनकी तस्वीर लेने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन अभी तक सफलता नही मिली है।
गांधी कुटीर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की स्वीकृति मिलने के बावजूद किसी उद्धारक का कर रहा है इंतजार
विडंबना कहे या कुछ और लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण स्थल पर महात्मा गांधी की जयंती हो या उनकी पुण्यतिथि लेकिन कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं होता है। हालांकि अतीत के यादों के सहारे गांधी कुटीर के इतिहास को संजो कर रखा गया है। लेकिन कुछ स्थानीय ग्रामीणों को छोड़ दिया जाए तो गांधी कुटीर के प्रति आम लोगों का उपेक्षित व्यवहार भी इसके लिए काफी जिम्मेदार है। ग्रामीणों का कहना है कि अगस्त 2019 में बिहार सरकार द्वारा गांधी कुटीर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की स्वीकृति मिली थी, लेकिन आज भी गांधी कुटीर किसी उद्धारक का इंतजार कर रहा है। इसी बीच सारण के सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी के प्रयास तो किया था लेकिन खाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होते दिख रही हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अपने देश में ऐसी प्रतिष्ठा रही है कि वह देश में जिस जगह पर भी ठहरे वहां लोगों ने उनका स्मारक बना दिया व उस इलाके के लिए वह स्थान तीर्थ बन गया। मगर कुछ ऐसे जगह हैं, जहां गांधी जी के आने के बाद आज भी वह जगह गुमनाम होते जा रहा है। इसी कड़ी में सारण जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलो मीटर दूर दिघवारा प्रखंड के मलखाचक गांव का गांधी कुटीर भी मुख्य रूप से शामिल है। जहां 30 सितंबर 1925 को महात्मा गांधी खुद आए हुए थे।