Published On: Wed, Nov 27th, 2024

Himachal High Court Strict On Deputation Seeks Reply From The Government In Two Weeks – Amar Ujala Hindi News Live


Himachal High Court strict on deputation seeks reply from the government in two weeks

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत के कड़े रुख के बाद बुधवार को शिक्षा सचिव अदालत में व्यक्तिगत तौर पर पेश हुए। उन्होंने अदालत में इस मामले पर स्पष्टीकरण दिया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही हैं। मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी।

शिक्षा सचिव ने अदालत को बताया कि अगले शैक्षणिक सत्र से स्कूलों में कार्यरत अध्यापकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों का रिकॉर्ड ऑनलाइन रखा जाएगा। बायोमीट्रिक मशीन आउट डेटिड हो गई है। इसकी जगह विभाग ने विद्या समीक्षा केंद्र एप लॉन्च किया है। इस एप को मोबाइल एप और एंड्रायड फोन पर भी चलाया जाएगा। छात्रों की हाजिरी, समससारिणी से लेकर हस्ताक्षर तक इस पर उपलब्ध होगा। उन्होंने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि इस मामले में बारीकी से काम किया जा रहा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाए हैं कि सरकार ने जनजातीय, दुर्गम और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सभी सरकारी विभागों में विभिन्न पद स्वीकृत किए हैं। इसमें कर्मचारियों को ऐसे क्षेत्रों में नियुक्त किया जाता है, जहां से अधिकांश ने सचिवालयों, निदेशालयों, जिला मुख्यालयों और साफ्ट स्टेशनों पर स्वयं को समायोजित कर दिया है।

याचिकाकर्ता ने अदालत का बताया कि ऐसे कर्मचारियों ने कभी भी ऐसे क्षेत्रों में सेवाएं नहीं दी हैं जहां पर इनकी तैनाती की गई है। जबकि वेतन इन्हें अन्य स्थान के लिए दिया जा रहा है। इस कारण कई क्षेत्रों में लोग सरकारी सेवाओं से भी वंचित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने वर्ष 1999, 2000, 2005 और 2010 में जारी अधिसूचना में स्पष्ट किया है कि डीडीओ और ट्रेजरी अधिकारियों द्वारा प्रत्येक कर्मचारी का वेतन और बिल तभी जारी किए जाएंगे अगर कर्मचारी ने उक्त महीनों में इन क्षेत्रों में स्वीकृत पदों के विरुद्ध वास्तव में काम किया है। यदि इन सरकारी नियमों के विपरीत कोई वेतन दिया जाता है तो इसके लिए डीडीओ और ट्रेजरी अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी और अनुशासनात्मक जांच शुरु की जाएगी। बता दें कि याचिका के दायर होने के छह महीने के बाद भी विभाग की ओर से जवाब नहीं दिया गया। अदालत ने इस मामले में पहले भी विभाग को 5 हजार रुपये की कॉस्ट लगाई है।

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