Published On: Wed, Jun 4th, 2025

GK: विश्व का तीसरा,भारत का दूसरा और बिहार का पहला गरुड़ प्रजनन क्षेत्र यहां है


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Bhagalpur News: हिंदू धर्मग्रंथ रामायण में जटायु नाम के रामभक्त गरुड़ पक्षी के बारे में हम सभी परिचित हैं. भारत में यह पक्षी सनातन धर्मावलंबियों की आस्था से जुड़ा है. लेकिन, बीते दशकों में यह पक्षी धीरे-धीरे वि…और पढ़ें

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गरुड़

गरुड़ का बसेरा है भागलपुर जिले के नवगछिया का कदवा दियारा.

हाइलाइट्स

  • भागलपुर में गरुड़ संरक्षण के बाद इनकी संख्या 300-400 तक बढ़ी.
  • किसान गरुड़ की रक्षा करते हैं क्योंकि ये खेतों में फैले चूहों को खाते हैं.
  • भागलपुर के गंगा और कोसी नदी के तट पर गरुड़ संरक्षण किया जा रहा.

भागलपुर. बिहार का भागलपुर पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है.ऐसा इसलिए क्योंकि भागलपुर के कई ऐसी विलुप्ति की कगार पर खड़े जीव इस धरती पर मौजूद हैं. यहां के गंगा नदी के एक बड़े क्षेत्र में गैंगेटिक डॉल्फिन का संरक्षण किया जाता है. इसी कड़ी में एक विलुप्त हो रहा जीव रामायण में वर्णित गरुड़ है. इसके संरक्षण वाला बड़ा क्षेत्र भागलपुर में है. दरअसल, गरुड़ की संख्या धीरे-धीरे अब पूरे देश में बेहद कम होती जा रही है, लेकिन वर्तमान समय में भी भागलपुर में बड़े पैमाने पर गरुड़ पाए जाते हैं. गरुड़ की एक प्रजाति है हरगिला जो यहां बड़े पैमाने पर पाई जाती है.

दरअसल आपको बता दें कि भागलपुर गंगा और कोसी दोनों नदियों के तट पर बसा एक शहर है. जहां से गंगा भी गुजरती है और कुछ क्षेत्र से कोसी भी होकर गुजरती है इसकी वजह से यहां पर नई-नई पक्षियों का बसेरा तो होता ही है साथ ही बड़े-बड़े पक्षियों का अवसान होता है. भागलपुर के नवगछिया का कदवा दियारा गरुड़ प्रजनन क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है. हालांकि, आए दिन अलग-अलग जगह पर घोसले देखने को मिलते हैं, लेकिन कदवा सबसे बड़ा प्रजनन क्षेत्र बन गया है. पर्यावरण विशेषज्ञ तपन घोष ने बताया कि आज से कुछ वर्ष पूर्व यहां पर गरुड़ काफी कम संख्या में पाई जाती थी और लोग इस क्षेत्र को बहुत अच्छी तरह जानते तक नहीं थे. लेकिन अचानक से यहां पर गरुड़ की संख्या में वृद्धि हुई.

गरुड़ का प्रिय भोजन मिलता है यहां

बताया जाता है कि कदवा में बड़े-बड़े पीपल के पेड़ और कदम के पेड़ पाए जाते हैं, जिस पर वह आवासन करने में सक्षम होते हैं और प्रजनन करने के लिए वह आसानी से घोसला भी लगा पाते हैं.तपन घोष की माने तो गंगा और कोसी इलाका होने के कारण गरुड़ को पर्याप्त मात्रा में भोजन की प्राप्ति हो जाती है. गरुड़ का प्रिय भोजन मछली, सांप और बड़े-बड़े चूहे होते हैं. अगर हाल की बात करें तो यहां पर प्रजनन दर इतना अधिक बढ़ा कि जहां पर 10 से 20 की संख्या में गरुड़ हुआ करते थे अब 300 से 400 की संख्या में गरुड़ पाए जाते हैं. जब इसका प्रजनन का समय आता है तो गरुड़ यहां पहुंचकर और बड़े-बड़े घोसले लगाते हैं. इसके लिए पर्यावरण प्रेमी और वन विभाग के द्वारा व्यवस्था भी की जाती है.

क्षेत्र के किसान करते हैं गरुड़ की रक्षा

दरअसल, इसके पेड़ के नीचे नेक्सटिंग यानी जाल लगाया जाता है.इसकी मुख्य वजह है कि जब इसका बच्चा उड़ने लायक होता है तो घोसला से गिरकर कई बार घायल हो जाता है. इसलिए नीचे में जाल लगा होने के कारण गिरने से उन्हें किसी प्रकार की हानि नहीं होती है. आपको बता दें कि किसान भी इसका रक्षा करते हैं. इसकी मुख्य वजह है कि किसान के खेतों से चूहा खाते हैं और इससे किसानों को फायदा होता है. हिंदू धर्मावलंबी गरुड़ को यहां पूजते हैं.

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Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट…और पढ़ें

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट… और पढ़ें

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