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खेतों में बीज बोने का सही तरीका कई किसानों को नहीं पता होता, जिससे उनके खेत में फसल की पैदावार कम होती है. आज लोकल 18 आपको ऐसे टिप्स बताने वाला है, जिससे खेतों की उत्पादकता डबल हो जाएगी.

जैसे ही मानसून की बारिश की शुरुआत होती है, वैसे ही किसानों की खेत तैयारी और बीजोपचार की जिम्मेदारी शुरू हो जाती है. एक-दो दिन पहले बीज का उपचार करना बहुत जरूरी होता है, ताकि बीज जनित रोगों से बचाव हो सके और फसल का उत्पादन बेहतर हो.

बीज से फैलने वाले रोग जैसे , जड़ गलन, तना गलन, आर्द्र गलन, कंडुआ, झुलसा, अंगमारी और दीमक का उपचार फसल बोने के बाद संभव नहीं होता है. ऐसे में बीजोपचार ही इन रोगों से बचाव का एकमात्र प्रभावी उपाय है.

रासायनिक बीजोपचार में कार्बेन्डाजिम, मेनकोजेब, थायरम, कार्बॉक्सिन जैसी दवाएं 2–3 ग्राम प्रति किलो बीज में मिलाकर उपयोग करें. वहीं, जैविक बीजोपचार में Trichoderma, Azotobacter, PSB, Rhizobium जैसी माइक्रोबियल कल्चर का उपयोग गुड़ और पानी में मिलाकर करना चाहिए.

बीज उपचार के लिए घड़ा विधि में बीज और दवा को मिलाकर घड़े में हिलाया जाता है, जबकि ड्रेसर विधि में बीज ड्रेसिंग यंत्र का प्रयोग किया जाता है. उपचार के बाद बीजों को छांव में सुखाना जरूरी है, ताकि औषधि का असर बना रहे.

बाजरे में होने वाले अरगट और चेपा रोग से बचाव के लिए 2% नमक घोल में बीजों को भिगोना लाभकारी होता है. इससे बीजों की ऊपरी सतह पर मौजूद संक्रमण समाप्त हो जाता है.

बीजोपचार बोवाई से 8-10 घंटे पहले ही करना चाहिए. कल्चर से उपचार करते समय गुड़-पानी का मिश्रण ठंडा होना चाहिए. औषधियों को लकड़ी के टुकड़ों से मिलाएं और प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें.

बीजोपचार न केवल बीमारियों से बचाता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है और उत्पादन में वृद्धि करता है. किसानों को चाहिए कि वे हर सीजन में बीज बोने से पहले उपचार को प्राथमिकता दें, ताकि मेहनत का फल और बेहतर मिल सके.