Explainer: अगर राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया तो क्यों चली जाएगी सांसदी

दो जगह से चुनाव जीतने वाले को क्या करना होता हैकोई विधायक अगर लोकसभा का चुनाव जीत ले तब क्या करना होगाकिस नियम के तहत दो या तीन जगहों से चुनाव लड़ सकते हैं
18वीं लोकसभा के चुनावों में कुछ चुने हुए लोग ऐसे हैं जो पहले से विधानसभा के सदस्य थे और उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए. इसी तरह राहुल गांधी अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने दो स्थानों से चुनाव लड़ा और दोनों सीटों पर वह जीत गए. इन दोनों ही स्थितियों में नियम और संविधान क्या कहता है.
राहुल गांधी ने वायनाड से 3 लाख 64 हजार 422 वोटों से जीत हासिल की. उन्हें 6 लाख 47 हजार 445 वोट मिले. इस सीट पर सीपीआई दूसरे नंबर पर रही. बीजेपी तीसरे स्थान पर रही. वहीं, यूपी के रायबरेली में उन्होंने 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की. दूसरे स्थान पर दिनेश प्रताप सिंह रहे.
उन्हें अपनी एक सीट खाली करनी होगी. क्योंकि संविधान के तहत कोई व्यक्ति एक साथ संसद के दोनों सदनों (या राज्य विधानमंडल) या संसद और राज्य विधानमंडल दोनों का सदस्य नहीं हो सकता है या एक सदन में एक से ज़्यादा सीटों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है. इस चुनावों में कई नेता ऐसे भी जीते हैं, जो पहले से विधायक हैं.
सवाल – अगर कोई पहले से विधायक है और वह लोकसभा के लिए निर्वाचित हो जाता है तो क्या उसे एक सीट छोड़नी होगी?
– हां. अगर कोई विधायक लोक सभा का चुनाव लड़ता है और जीतता है तो उसे चुने जाने की तिथि से 14 दिन के भीतर एक सदन की सदस्यता छोड़नी होती है. संविधान के अनुच्छेद 101(1) में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 68(1) में साफ तौर पर इसका उल्लेख किया गया है.
सदस्य को 14 दिन की अवधि के भीतर भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के सचिव को लिखित रूप में अपनी पसंद की सूचना देनी होगी, ऐसा न करने पर इस अवधि के अंत में उसकी लोकसभा सीट खाली मान ली जाएगी.
संविधान के अनुच्छेद 101(2) के तहत राज्य विधानसभाओं के जो सदस्य लोकसभा के लिए चुने जाते हैं, अगर वो 14 दिनों के भीत भारतीय चुनाव आयोग को सूचित करके एक सीट नहीं छोड़ते तो उनकी लोकसभा की सीट खुद ब खुद खाली हो जाएगी.
सवाल – क्या कभी ऐसा हुआ कि कोई विधायक लोकसभा के लिए चुना गया हो और सूचना नहीं देने के कारण उसकी सांसदी चली गई हो?
– हां एक बार ऐसा हो चुका है. स्वर्गीय गुरचरण सिंह टोहरा ने 1999 में लोकसभा के लिए चुने गए लेकिन उन्होंने पंजाब विधानसभा में अपनी सीट नहीं छोड़ी, तब लोकसभा में उनकी सीट रिक्त घोषित कर दी गई.
सवाल – लेकिन राज्यसभा का कोई सदस्य जब लोकसभा का चुनाव लड़ता है और निर्वाचित हो गया तो क्यों अलग नियम लागू होता है?
– अगर कोई मौजूदा राज्यसभा सदस्य लोकसभा का चुनाव लड़ता है और जीतता है तो उच्च सदन में उसकी सीट उस दिन से खुद ही खाली हो जाती है जिस दिन उसे लोकसभा के लिए निर्वाचित घोषित किया जाता है. यही बात उस लोकसभा सदस्य पर भी लागू होती है जो राज्यसभा का चुनाव लड़ता है.
सवाल – अगर कोई नेता दो जगह से चुना जाता है, जैसे राहुल गांधी के साथ हुआ तो उन्हें क्या करना होगा?
– अगर कोई नेता दो संसदीय क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है और दोनों से निर्वाचित होता है, तो उसे परिणाम घोषित होने के 14 दिनों के भीतर एक सीट से इस्तीफा देना होगा. यदि वह परिणाम घोषित होने के 14 दिनों के भीतर एक सीट से इस्तीफा नहीं देता है, तो उसकी दोनों सीटें रिक्त हो जाएंगी तो राहुल गांधी को भी 18 जून तक भारतीय चुनाव आय़ोग को इसकी सूचना देनी होगी. अन्यथा दोनों सीटों पर से उनका दावा खत्म हो जाएगा.
सवाल – किस कानून या प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति दो संसदीय क्षेत्रों में चुनाव लड़ सकता है?
– जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 33(7) के तहत कोई भी व्यक्ति दो संसदीय क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है.
सवाल – चुनाव आयोग क्यों दो सीटों पर एक साथ चुनाव लड़ने का विरोध करता रहा है?
– पिछले कई वर्षों से चुनाव आयोग (ईसी) इस तर्क का समर्थन करता रहा है कि उम्मीदवारों को एक ही सीट से चुनाव लड़ने तक सीमित रखा जाना चाहिए, क्योंकि यदि कोई उम्मीदवार दोनों सीटों पर जीत जाता है तो उपचुनाव कराने में जनता के धन और संसाधनों की बर्बादी ना हो लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.
जुलाई 2004 में मुख्य चुनाव आयुक्त ने प्रधानमंत्री से धारा 33(7) में संशोधन करने का आग्रह किया, अन्यथा दो सीटों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को उस सीट पर उपचुनाव का खर्च वहन करना चाहिए जिसे वह दोनों सीटें जीतने की स्थिति में खाली करने का फैसला करता है. इसने सुझाव दिया कि उम्मीदवार को विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराने के लिए 5 लाख रुपये और लोकसभा सीट पर 10 लाख रुपये का योगदान देना चाहिए.
सवाल – क्या कभी दो जगह से एकसाथ चुनाव लड़ने को चुनौती दी गई है?
– 2023 में, वकील और भाजपा सदस्य अश्विनी उपाध्याय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को अमान्य घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (SC) में याचिका दायर की. उन्होंने याचिका में तर्क दिया कि चूंकि ‘एक व्यक्ति एक वोट’ हमारे लोकतंत्र का एक आधारभूत सिद्धांत है, इसलिए ‘एक उम्मीदवार एक निर्वाचन क्षेत्र’ भी होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह विधायी नीति का मामला है.
सवाल – कौन से नेता दो सीटों से चुनाव लड़ चुके हैं?
– 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश की तीन सीटों – मथुरा, लखनऊ और बलरामपुर से चुनाव लड़ा था. उन्होंने जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर से जीत हासिल की. 1962 में भी उन्होंने 1991 की तरह दो सीटों से चुनाव लड़ा.
नवीन पटनायक के पिता और बीजू जनता दल (बीजद) के संस्थापक बीजू पटनायक ने 1971 में ओडिशा की चार विधानसभा और एक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. इस बार नवीन पटनायक ने भी ओडिशा में दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा. 1980 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने चुनावी जीवन में पहली बार दो सीटों से चुनाव लड़ा – उत्तर प्रदेश में रायबरेली और आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना में) में मेडक, दोनों सीटों पर जीत हासिल की.
उन्होंने रायबरेली में विजया राजे सिंधिया को हराया और मेडक में उनके विरोधियों में जनता पार्टी के एस जयपाल रेड्डी और ‘मानव कंप्यूटर’ शकुंतला देवी शामिल थीं. इंदिरा गांधी ने तब मेडक को बरकरार रखा, जबकि अरुण नेहरू ने रायबरेली में बाद में हुए उपचुनाव में जीत हासिल की.
1989 में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल ने तीन राज्यों की तीन सीटों, रोहतक (हरियाणा), सीकर (राजस्थान) और फिरोजपुर (पंजाब) से चुनाव लड़ा और पहली दो सीटों पर जीत हासिल की. 1991 में बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने तीन सीटों, बिजनौर, बुलंदशहर और हरिद्वार से चुनाव लड़ा लेकिन तीनों ही सीटों पर हार गईं.
1999 में, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी और कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव लड़ा था. उन्होंने दोनों सीटें जीतीं, लेकिन अमेठी का प्रतिनिधित्व करना चुना. उन्होंने बेल्लारी में दिग्गज सुषमा स्वराज को हराया. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के वडोदरा और उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ा और दोनों सीटों पर जीत हासिल की. उन्होंने वाराणसी को बरकरार रखा.
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FIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 05:59 IST