हर हाथ को काम
सुदूर रेगिस्तानी इलाके में सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराना असंभव जैसा काम था। अब तक रोजगार न मिलने के कारण गांव के युवा अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरा किए बिना ही रोजी-रोटी की तलाश में आसपास के शहरों का रुख कर लेते थे। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की एक पहल ने अब इस गांव के युवाओं की तस्वीर बदल दी है।
गांव धोरडो में प्रति वर्ष तीन महीने का कच्छ रण उत्सव आयोजित किया जाता है। गुजराती संस्कृति को देखने और कच्छ के व्हाइट डेजर्ट को देखने के लिए हर साल यहां बड़े पैमाने पर पर्यटक पहुंचते हैं। इन पर्यटकों के लिए रहने, खाने-पीने, घूमने की सुविधा उपलब्ध कराकर गांव के परिवार अच्छी खासी कमाई करते हैं।
गयासुद्दीन की जुबानी
धोरडो गांव के एक युवक गयासुद्दीन ने अमर उजाला को बताया कि 2016 में उनके गांव में ही उन्हें पर्यटन कराने की ट्रेनिंग दी गई थी। पर्यटकों की पसंद को ध्यान में रखते हुए अपने गांव, खान पान, रहन सहन, कच्छ संस्कृति और पूरे इलाके के बारे में वे पर्यटकों को क्या बता सकते हैं, इसके बारे में उन्हें जानकारी दी गई। ट्रेनिंग के समय उन्हें नौ हजार रुपये प्रतिमाह मिलते थे। अब यह राशि बढ़कर 12 हजार रुपये प्रति महीने हो गई है।
गयासुद्दीन मालगुजार समुदाय (पशुओं को पालकर उन पर आश्रित लोग) हैं। पर्यटन के अलावा वे अपने कामकाज से भी बेहतर कमाई कर लेते हैं और इस प्रकार उनका जीवन बहुत अच्छे तरीके से चल जाता है। गयासुद्दीन के जैसे धोरडो गांव के अनेक युवा हैं जो इसी तरह पर्यटकों को तरह-तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराकर पूरे साल भर के लिए कमाई कर लेते हैं और उनका जीवन अच्छे से गुजर जाता है।
मोदी के दोस्त मियां हुसैन
धोरडो गांव के सरपंच मियां हुसैन को इस इलाके के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘दोस्त’ कहते हैं। इसका बड़ा कारण है कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने इस इलाके को विकसित करने का सपना देखा, तो इसकी जिम्मेदारी उन्होंने गांव के सरपंच मियां हुसैन को ही दिया। मियां हुसैन की कई पीढ़ियां गांव के जन प्रतिनिधि के रूप में काम करती आई हैं। गांव के लोगों का प्रेम ही है कि 1963 से लेकर अब तक इस गांव में कोई चुनाव नहीं हुआ। पहले उनके दादा, बाद में पिता और अब वे निर्विरोध निर्वाचित हो रहे हैं।
40 हजार के करीब हर युवा की कमाई
मियां हुसैन ने अमर उजाला को बताया कि इस इलाके के विकास का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। रेगिस्तान में बसे इस गांव का विकास करने का सपना तक किसी ने नहीं देखा था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सोच से इसे देश के अंतिम गांव से देश की सीमा पर बसे ‘पहले गांव’ की पहचान दे दी।
उन्होंने बताया कि कच्छ के रण उत्सव के कारण यहां के हर परिवार को अच्छी कमाई हो जाती है। तीन महीने के उत्सव में ही युवा साल भर के लिए कमाई कर लेते हैं। इसके लिए वे अलग-अलग काम करते हैं। गांव में टेंट सिटी के जैसे पर्यटकों के लिए छोटे-छोटे घर बनाए जाते हैं। इसके माध्यम से वे बेहतर कमाई कर लेते हैं। मेले से प्राप्त कमाई को गांव के ही विकास के लिए लगाते हैं। गांव का प्रशासन जिलाधिकारी के सहयोग से चलाया जाता है। इसके लिए विकास की उचित योजनाएं बनाई जाती हैं और उसका संचालन किया जाता है।
सबसे गर्व की बात
मियां हुसैन ने अमर उजाला को बताया कि रोजी-रोटी की कमी के कारण युवाओं परेशान हो रहे थे। वे गांव छोड़ कर बाहर जा रहे थे और गांव की संस्कृति, उनकी कच्छ संस्कृति, कच्छी भाषा सब कुछ आधुनिकता की भेंट चढ़ने लगी थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक सपने के कारण अब गांव के युवा रोजगार के लिए बाहर नहीं जा रहे। उन्हें गांव में ही सब कुछ मिल रहा है। इन सबमें सबसे बड़ी बात यह हुई है कि गांव की जिस संस्कृति को गांव के लोग ही भूलते जा रहे थे, अब उसकी कहानियां गर्व के साथ पर्यटकों को सुना रहे हैं। कच्छी संस्कृति के लिए इससे बड़ी बात और कुछ नहीं हो सकती।