Published On: Sat, Dec 28th, 2024

Constitutional Spirit: सुप्रीम कोर्ट जज बोले- धर्म आधारित विभाजनकारी बयानबाजी बंधुत्व के आदर्श के लिए चुनौती


Divisive rhetoric based on religion big challenge for constitutional ideal of fraternity: SC judge

जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा।
– फोटो : आधिकारिक वेबसाइट/ सुप्रीम कोर्ट

विस्तार


सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा कि धर्म, जाति और नस्ल के आधार पर विभाजनकारी भाषा संविधान के आदर्श बंधुत्व और देश की एकता की भावना के लिए बड़ी चुनौती बन रहा है। जस्टिस मिश्रा गुरजात के खेड़ा जिले के वडताल में अखिल भारतीय परिषद की बैठक में बोल रहे थे, जिसका विषय ‘बंधुत्व: संविधान की भावना’ रखा गया था। 

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जस्टिस मिश्रा ने कहा कि पहचान की राजनीति का बढ़ता चलन समाज में विभाजन को और गहरा कर सकता है। उन्होंने कहा कि धर्म, जाति और नस्ल पर आधारित विचारधाराएं, बढ़ती आर्थिक असमानता और सामाजिक अन्याय बंधुत्व की भावना के लिए गंभीर खतरे हैं।

उन्होंने कहा कि बंधुत्व को बनाए रखना सभी नागरिकों, संस्थाओं और नेताओं की साझी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता, समानता और न्याय के आदर्शों में बंधुत्व (भाईचारा) ही वह सूत्र है जो हमारे लोकतांत्रिक समाज के ताने-बाने को जोड़ता है। बंधुत्व के बिना अन्य आदर्श इस तरह कमजोर हो जाते हैं, जैसे किसी त्रिकोण का एक महत्वपूर्ण कोना न हो। 

उन्होंने आगे कहा कहा, ‘बंधुत्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती, धर्म, जाति और नस्ल के आधार पर बढ़ती विभाजनकारी बयानबाजी है। जब व्यक्ति या समूह एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करते हैं, तो इससे संविधान में उल्लिखित एकता की भावना कमजोर होती है।’ उन्होंने चेतावनी दी कि पहचान की राजनीति कभी-कभी कमजोर समूहों को ताकत दे सकती है। लेकिन अगर यह (पहचान की राजनीति) सिर्फ कुछ खास समूहों के फायदे पर फोकस करती है, तो यह बहिष्कार, भेदभाव और संघर्ष का कारण बन सकती है। 

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि बांटने वाली बयानबाजी से समुदायों में अविश्वास पैदा होता है, जिसके परिणामस्वरूप रूढ़िवादिता और गलतफहमियां फैलती हैं। यह बयानबाजी समाज में अशांति पैदा कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब राजनेता चुनावी लाभ के लिए सामाजिक पहचान का उपयोग करते हैं, तो यह विभाजन को और गहरा कर देता, जिससे सामूहिक पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है। 

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