सीतामढ़ी जिले के भिट्ठा मोड़ थाना के थानाध्यक्ष रविकांत कुमार एक गंभीर विवाद में फंस गए हैं। बताया जा रहा है कि नेपाल में कुछ अज्ञात लोगों ने उनके साथ जमकर मारपीट की, जिसके बाद उन्हें वहीं के एक अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह घटना बुधवार देर शाम की बताई जा रही है, जब वे नो-मेंस लैंड पार कर नेपाल के जलेश्वर नगरपालिका क्षेत्र में पहुंचे थे।
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, थानाध्यक्ष रविकांत कुमार अपने दो अन्य सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ नेपाल सीमा के भीतर चौरीया पीपरा गांव की ओर गए थे। वहीं, नेपाली नागरिकों द्वारा उनका विरोध किया गया और स्थिति इतनी बिगड़ गई कि बात हाथापाई तक पहुंच गई। प्रारंभ में इस मामले को दबाने की कोशिश की गई, लेकिन जब तस्वीरें और स्थानीय जानकारी सामने आई तो यह घटना चर्चा का विषय बन गई।
बताया जा रहा है कि भारतीय पुलिस दल की सीमा पार मौजूदगी तस्करी से जुड़े एक ऑपरेशन के तहत थी। हालांकि, कुछ लोगों का यह भी दावा है कि यह मामला शराब तस्करी से जुड़े किसी निजी लेन-देन से संबंधित हो सकता है। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया कि पुलिसकर्मियों ने बिना किसी आधिकारिक अनुमति के सीमा पार की, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। यदि यह जानकारी सही पाई जाती है, तो यह न केवल विभागीय अनुशासन का उल्लंघन होगा, बल्कि भारत-नेपाल संबंधों पर भी इसका असर पड़ सकता है।
यह मामला इसलिए भी संवेदनशील बन गया है क्योंकि भारत-नेपाल सीमा एक खुली सीमा है, लेकिन कानूनन कोई भी सुरक्षा बल बिना आधिकारिक अनुमति दूसरे देश में प्रवेश नहीं कर सकता। इस तरह की घटना से न केवल स्थानीय तनाव बढ़ता है, बल्कि कूटनीतिक संबंधों में भी खटास आ सकती है।
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अब तक बिहार पुलिस या नेपाल प्रशासन की ओर से इस घटना को लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, सीतामढ़ी के पुलिस अधीक्षक अमित रंजन ने पुष्टि की है कि भिट्ठा मोड़ थानाध्यक्ष रविकांत कुमार और एक अन्य पुलिसकर्मी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। यह कार्रवाई इस बात का संकेत है कि मामला गंभीरता से लिया जा रहा है और विभागीय अनुशासनात्मक प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।
उधर, रविकांत कुमार नेपाल के अस्पताल में इलाजरत हैं और अस्पताल से उनकी कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं, जो उनकी चोटों की गंभीरता को दर्शाती हैं। इन तस्वीरों के सामने आने के बाद आम लोगों में भी इस घटना को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। फिलहाल इस पूरे मामले में कई सवाल अनुत्तरित हैं। क्या पुलिस सचमुच किसी तस्कर को पकड़ने गई थी या मामला कुछ और था? क्या थानाध्यक्ष की नेपाल में मौजूदगी वैध थी या यह निजी स्वार्थ से प्रेरित थी? अगर वे आधिकारिक आदेश के बिना सीमा पार गए थे, तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई क्या पर्याप्त है? ये सभी सवाल अब गहन और निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं।