Bihar: प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी बने नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति, वैश्विक विमर्श का केंद्र बनाने का संकल्प

प्राचीन ज्ञान की प्रतीक नालंदा विश्वविद्यालय को आधुनिक भारत में वैश्विक बौद्धिक केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और नीति विशेषज्ञ प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने विश्वविद्यालय के नए कुलपति के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया है। उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय को भारतीय ज्ञान परंपरा और समकालीन वैश्विक विमर्श का संगम स्थल बनाने की योजना तैयार की गई है।
औपचारिक समारोह में किया पदभार ग्रहण
पदभार ग्रहण के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में एक गरिमामय समारोह आयोजित किया गया। इसमें अंतरिम कुलपति प्रोफेसर अभय के. सिंह, विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य, शोध छात्र और प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे। सभी ने प्रो. चतुर्वेदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और विश्वविद्यालय को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने की उनकी संकल्पना का समर्थन किया।
इस अवसर पर भारतीय परंपरा के अनुरूप वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। प्रोफेसर चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य नालंदा को अंतरराष्ट्रीय संवाद का जीवंत केंद्र बनाना है, जहां शाश्वत भारतीय मूल्य और आधुनिक ज्ञान प्रणाली साथ-साथ विकसित हों।
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‘अनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ की व्याख्या के साथ नई दिशा का संकेत
अपने प्रथम भाषण में ही प्रो. चतुर्वेदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य “अनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः” का उल्लेख कर कहा कि यह सूक्ति हमें विचारों की वैश्विकता और समावेशिता की ओर प्रेरित करती है। उन्होंने इसे नालंदा की बौद्धिक परंपरा का मूल आधार बताते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब भारत की यह धरोहर दुनिया के समक्ष एक वैकल्पिक बौद्धिक मॉडल के रूप में प्रस्तुत हो। उनका यह दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से विश्वविद्यालय के आगामी शैक्षणिक और वैचारिक रुझान की झलक देता है, जिसमें भारतीय दर्शन, नीति विज्ञान, पर्यावरणीय चेतना और वैश्विक सहयोग की प्रमुख भूमिका होगी।
शोध, नीतिगत अनुभव और वैश्विक मंचों पर सक्रिय भागीदारी
प्रोफेसर चतुर्वेदी का शैक्षणिक और व्यावसायिक अनुभव अत्यंत समृद्ध रहा है। वे दिल्ली स्थित थिंक टैंक RIS (Research and Information System for Developing Countries) के महानिदेशक के रूप में कार्यरत हैं। उनके शोध का मुख्य क्षेत्र विकास अर्थशास्त्र, दक्षिण-दक्षिण सहयोग और अंतरराष्ट्रीय नीति निर्माण रहा है। अब तक वे 22 से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। उन्होंने Network of Southern Think Tanks (NeST) और Forum for Indian Development Cooperation (FIDC) जैसे वैश्विक मंचों की स्थापना में भी निर्णायक भूमिका निभाई है। वे भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक भी हैं, जो उनकी आर्थिक सूझबूझ और नीतिगत पकड़ को दर्शाता है। इस अनुभव को अब वे शैक्षणिक नेतृत्व में उपयोग में लाना चाहते हैं।
नालंदा की वर्तमान प्रगति और भविष्य की रूपरेखा
अपने वक्तव्य में उन्होंने विश्वविद्यालय की अब तक की प्रगति की सराहना की। उन्होंने कहा कि पिछले वर्षों में नालंदा ने एक विशिष्ट शैक्षणिक केंद्र के रूप में पहचान बनाई है, जहां विद्यार्थियों को अंतरविषयक और बहुआयामी विकास के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं। प्राध्यापकों की अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता और छात्रों की विविध पृष्ठभूमि ने नालंदा को एशिया के सबसे संभावनाशील विश्वविद्यालयों की श्रेणी में ला खड़ा किया है।
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प्रधानमंत्री की यात्रा को बताया ऐतिहासिक क्षण
प्रो. चतुर्वेदी ने हाल ही में नालंदा विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को ‘एक प्रेरक मोड़’ बताया। उन्होंने कहा कि यह यात्रा सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि इससे यह संदेश गया कि भारत सरकार इस संस्था को विश्व पटल पर एक विचारशील शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
शिक्षा को परिवर्तन का माध्यम मानने वाला दृष्टिकोण
अपने समापन वक्तव्य में प्रोफेसर चतुर्वेदी ने कहा कि मैं शिक्षा को केवल ज्ञान नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का माध्यम मानता हूं। नालंदा जैसे संस्थान भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रासंगिक और समाजोपयोगी बनाने की दिशा में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आने वाले समय में नालंदा में प्राचीन भारत की विद्वता, वैश्विक शोध और नीति संवाद को एकीकृत किया जाएगा, जिससे यह विश्वविद्यालय आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श शैक्षणिक केंद्र बन सके।