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अशोक गहलोत-सचिन पायलट
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस को मिली जीत को लेकर पायलट कैंप उत्साह में है। टोंक सवाई माधोपुर सीट पर हरीश मीणा की जीत में पायलट की बड़ी भूमिका रही है। पायलट की अपील पर इस सीट पर गुर्जर वोट हरीश मीणा के पक्ष में गए हैं। इसके अलावा भी पूर्वी राजस्थान में करौली-धौलपुर, भरतपुर और दौसा में भी पायलट का प्रभाव रहा है, लेकिन राजस्थान फिर सवाल यह भी उठ रहे हैं कि राजस्थान जैसा कमाल पायलट दिल्ली और छत्तीसगढ़ में क्यूं नहीं दिखा पाए।
पायलट को लोकसभा चुनावों से पहले छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया था। उनके कहने पर टिकट भी बंटे। वहां पायलट ने रैलियां भी की, लेकिन नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहे। कांग्रेस यहां 11 सीटों में से सिर्फ 1 सीट जीत पाई। जबकि पिछले लोकसभा चुनावों में मोदी की प्रचंड लहर में भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 2 सीटें जीती थीं। इसके अलावा पूर्वी दिल्ली में भी उन्हें कन्हैया कुमारी की सीट पर ऑब्जर्वर नियुक्त किया गया था। इस सीट को भी कांग्रेस हार गई। सवाल यह है कि फिर पायलट का जादू छत्तीसगढ़ में क्यूं नहीं चल पाया।
इसके पीछे 3 बड़ी वजह रही
- छत्तीसगढ़ पूरी तरफ ट्राइबल बेल्ट है। बीजेपी ने इस बार यहां ट्राइबल सीएम के तौर पर विष्णुदेव को आगे किया। इसका फायदा उन्हें लोकसभा में मिला।
- विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस के नेताओं को लेकर वहां अब भी जनता में नाराजगी बनी हुई थी।
- छत्तीसगढ़ में पायलट भले ही कांग्रेस के प्रभारी थे, लेकिन भूपेश बघेल का कद उनसे काफी बड़ा है, इसलिए चुनावों में पायलट वहां ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।
अमेठी में चला गहलोत का जादू, जालौर में पुत्र को नहीं जिता पाए
राजस्थान में कांग्रेस 11 सीटें तो जीत गई, लेकिन जालौर की हार सबसे ज्यादा चर्चाओं में है। यहां पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेट वैभव गहलोत ने चुनाव लड़ा, लेकिन वे इस लोकसभा में आने वाली 8 विधानसभाओं में कहीं भी लीड नहीं ले पाए और चुनाव हार गए। कांग्रेस के सबसे दिग्गज नेताओं में शुमार अशोक गहलोत को पार्टी आलाकमान ने अमेठी जैसी अहम सीट की जिम्मेदारी सौंपी थी। अमेठी कांग्रेस के खाते में गई, लेकिन उनके विरोधी खेमें वाले सवाल पूछ रहे हैं कि जादूगर का जादू जालौर में क्यों नहीं चला। गहलोत के लिए सिर्फ जालौर की हार ही झटका नहीं रहा, बल्कि उनके खुद के बूथ पर जोधपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी हार गए। हालांकि गहलोत पूरी तरह जालौर सीट पर फोकस रहे। कई कांग्रेस के नेता भी लगातार जालौर में कैंपिंग करते रहे। यहां तक की सर्वे एजेंसी डिजाइन बॉक्स को इस सीट पर प्रचार के लिए लगाया गया, लेकिन इसके बाद भी वैभव चुनाव हार गए