Alwar Eid Celebration: देशभर में धूमधाम से मनाया गया त्योहार

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Alwar Eid Celebration: देशभर में ईद उल अजहा धूमधाम से मनाई गई. मुस्लिम समुदाय ने नमाज अदा की और बकरा कुर्बानी की. अलवर के 200 गांवों में अमन चैन की दुआएं मांगी गईं. हिंदू-मुस्लिम भाइयों ने बधाइयां दी.

eid celebration 2025
हाइलाइट्स
- अलवर में 200 गांवों ने अमन-चैन की दुआ मांगी.
- मुस्लिम समुदाय ने नमाज अदा कर बकरा कुर्बानी की.
- हिंदू-मुस्लिम भाइयों ने एक-दूसरे को बधाइयां दी.
Eid Celebration In Alwar: राजस्थान के अलवर जिले में 7 जून 2025 को मुस्लिम समुदाय ने ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया. शहर की प्रमुख मस्जिदों और ईदगाहों में सुबह विशेष नमाज अदा की गई, जिसमें लोगों ने देश और दुनिया में शांति, एकता और समृद्धि की दुआएं मांगी. नमाज के बाद समुदाय के लोग एक-दूसरे को गले लगाकर “ईद मुबारक” की शुभकामनाएं देते नजर आए. इसके बाद कुर्बानी की रस्म पूरी की गई, जो पैगंबर इब्राहिम के बलिदान की भावना को दर्शाती है.
जामा मस्जिद, नूर मस्जिद और अन्य स्थानीय मस्जिदों में सुबह 6:00 बजे से नमाज का आयोजन हुआ. हजारों लोग पारंपरिक परिधानों में सजकर मस्जिदों में पहुंचे. नमाज के बाद इमामों ने खुतबे में बलिदान, दान और भाईचारे का संदेश दिया. स्थानीय निवासी हसन खान ने कहा, “ईद-उल-अजहा हमें निस्वार्थ भाव से समाज की भलाई और एकता की प्रेरणा देती है.” कुर्बानी में बकरे, भेड़ या अन्य पशुओं का बलिदान किया गया, जिसके मांस को तीन हिस्सों में बांटा गया—एक परिवार, एक रिश्तेदारों और एक जरूरतमंदों के लिए.
गैर-मुस्लिम पड़ोसियों ने भी बधाइयां दीं
शहर के विभिन्न इलाकों में सामुदायिक भोज आयोजित हुए, जहां लोग एक साथ बैठकर बिरयानी, सेवईं और शीर खुरमा जैसे व्यंजनों का लुत्फ उठाते दिखे. बच्चे नए कपड़ों में सजे और ईदी पाकर उत्साहित थे. स्थानीय बाजारों में मिठाइयों, कपड़ों और उपहारों की दुकानों पर रौनक रही. कई गैर-मुस्लिम पड़ोसियों ने भी उत्सव में शिरकत कर बधाइयां दीं, जिससे सामाजिक सौहार्द की मिसाल कायम हुई.
मौलाना अब्दुल वाहिद ने कहा, “ईद का पर्व हमें प्रेम, दया और एकजुटता का संदेश देता है. हमने अमन-चैन और समाज की खुशहाली के लिए दुआ की.” जिला प्रशासन ने सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए, जिससे पर्व शांतिपूर्ण रहा. अलवर के मुस्लिम समुदाय ने इस अवसर पर जरूरतमंदों की मदद कर और दान देकर त्योहार के असली मकसद को जिया. यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व का प्रतीक बना, बल्कि अलवर में आपसी भाईचारे और सामुदायिक एकता को भी मजबूत किया.
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