Agriculture News: रेगिस्तान में बबूल से उगे आम… बाड़मेर के किसान का अनोखा ‘जादू’, देखकर हर कोई दंग!

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Farming Trick & Tips: बाड़मेर के माधोसिंह राजपुरोहित ने ग्राफ्टिंग तकनीक से रेगिस्तान की धरती पर कमाल कर दिखाया है. उन्होंने बबूल के पेड़ पर आम की सफल खेती कर वैज्ञानिक सोच और जैविक पद्धति से मिसाल कायम की है. …और पढ़ें

किसान माधोसिंह आम की फसल के साथ
हाइलाइट्स
- माधोसिंह ने बबूल पर आम की ग्राफ्टिंग की.
- ग्राफ्टिंग से आम की गुणवत्ता महाराष्ट्र जैसी.
- माधोसिंह ने काजरी जोधपुर से प्रशिक्षण लिया.
बाड़मेर. कहते हैं कि अगर कोई कुछ करने की ठान ले तो सफलता उससे दूर नहीं रह सकती. आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे खेतिहर किसान की जिसने अपनी मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रेगिस्तान की धरती पर कमाल कर दिखाया है.
बालोतरा के सिलोर गांव के रहने वाले माधोसिंह राजपुरोहित ने बबूल के पौधे पर ग्राफ्टिंग कर आम की फसल उगाने में सफलता पाई है. उन्होंने रेगिस्तानी बबूल की जड़ प्रणाली को आम के पौधे की शाखा से जोड़कर यह अनोखा प्रयोग किया है. माधोसिंह की इस तकनीक से आम को बबूल की रोग प्रतिरोधक क्षमता मिल गई है. साथ ही आम के फल की गुणवत्ता महाराष्ट्र और दक्षिण भारत जैसी ही है.
बबूल के पेड़ से अब उगेंगे आम
माधोसिंह राजपुरोहित ने वैज्ञानिक तकनीक को धरातल पर उतारकर रेगिस्तान में नया इतिहास रच दिया है. उन्होंने बबूल के पत्ते से आम के पत्ते को जोड़कर ग्राफ्टिंग की है. उनका कहना है कि जैविक खेती के साथ ग्राफ्टिंग खेती करने से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. यह तकनीक पारंपरिक खेती की तुलना में अधिक लाभकारी है.
महाराष्ट्र से सीखा और जोधपुर में लिया प्रशिक्षण
माधोसिंह ने ग्राफ्टिंग तकनीक के लिए काजरी जोधपुर से प्रशिक्षण प्राप्त किया है. इसके साथ ही उन्होंने महाराष्ट्र में एक किसान से भी इस तकनीक की जानकारी ली. इसके बाद उन्होंने जैविक खाद के प्रयोग से रेगिस्तान में बबूल पर ग्राफ्टिंग कर आम के पौधे लगाए. आज उनके बाग में आम के अलावा अनार, संतरा, नींबू और चीकू के फल भी लहलहा रहे हैं.
क्या है ग्राफ्टिंग विधि
ग्राफ्टिंग बागवानी की एक आधुनिक तकनीक है. इसमें दो अलग-अलग पौधों के हिस्सों को जोड़कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है. इस विधि में एक पौधे की टहनी को दूसरे पौधे के तने से जोड़ा जाता है जिससे दोनों के श्रेष्ठ गुण एक साथ मिलते हैं. यह तकनीक उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, जलवायु अनुकूलन और बाजार मूल्य में भी बढ़ोतरी करती है. ग्राफ्टिंग तकनीक से किसान अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकते हैं.