Adityakumar, the seeker of salvation, became Muni Poornanand Vijay | मुमुक्षु आदित्यकुमार से मुनि पूर्णानंद विजय बना: अपनाया वैराग्य का मार्ग, दीक्षार्थी ने अपने वस्त्र परिजनों को सौंपे और केशलोचन के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए – Jalore News

दीक्षार्थी मुमुक्षु आदित्यकुमार दीक्षा लेने के बाद
भांडवपुर जैन तीर्थ में गुरुवार को पंचाह्निका महोत्सव के अंतिम दिन दीक्षा महोत्सव का आयोजन हुआ। दीक्षार्थी मुमुक्षु आदित्यकुमार ने सांसारिक सुखों का त्याग कर संयम का मार्ग अपनाया। इस दौरान वातावरण जिन भगवंतों, गुरु भगवंतों और जिनशासन के जयकारों से गूं
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वहीं श्रद्धालु भक्ति गीतों पर झूमते नजर आए। जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर महाराज, साध्वी अरुणाप्रभाऔर साध्वी अध्यात्मकला की निश्रा में दीक्षा विधि संपन्न हुई। सुबह शुभ मुहूर्त में राज चंदन मंजू वाटिका में दीक्षार्थी ने जैनाचार्य के सान्निध्य में वैराग्य का कठोर मार्ग अपनाया। गाजे-बाजे के साथ पहुंचे दीक्षार्थी का श्रद्धालुओं ने स्वागत किया।
दीक्षार्थी मुमुक्षु का नवीन नामकरण
जैनाचार्य ने उन्हें पवित्र ओघा प्रदान किया। ओघा पाकर दीक्षार्थी खुशी से झूम उठा। केशलोचन विधि के बाद उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किए। इसके बाद पांडाल में पुनः प्रवेश करते ही जयकारों से माहौल गूंज उठा। दीक्षा के बाद जैनाचार्य ने दीक्षार्थी का नया नामकरण किया। अब उनका नाम मुनि पूर्णानंद विजय महाराज रखा गया।

दीक्षार्थी मुमुक्षु आदित्यकुमार दीक्षा पहले
श्रावक-श्राविकाओं की आंखे हुई सजल, तप मंदिर का शिलान्यास
दीक्षा विधि के दौरान जब दीक्षार्थी ने अपने वस्त्र परिजनों को सौंपे और केशलोचन के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए, तो पंडाल में मौजूद श्रावक-श्राविकाओं की आंखें नम हो गईं। महोत्सव के अंतिम दिन तप मंदिर का शिलान्यास भी हुआ। जैनाचार्य जयरत्नसूरीश्वर महाराज और साधु-साध्वियों की उपस्थिति में विधिकारक ने विधिवत पूजन कर शिलान्यास कराया। इसी दिन योगिराज शांतिविजय महाराज का 29वां पुण्योत्सव मनाया।
इसके बाद जैनाचार्य ने व्याख्यान में कहा कि जैन धर्म में तप का विशेष महत्व है। तप से मन और इंद्रियां नियंत्रित होती हैं। उन्होंने कहा कि तपहीन मन इंद्रियों को भटकाता है। इंद्रियां क्षणिक सुख की लालसा में पाप में डूब जाती हैं। इससे आत्मा को बार-बार जन्म-मरण के चक्र में दुख भोगना पड़ता है। तप से आत्मा की शुद्धि और कर्मों की निर्जरा होती है।