Published On: Fri, Jul 26th, 2024

केरल हाईकोर्ट बोला- धर्म परिवर्तन सर्टिफिकेट में नाम बदलना जरूरी: व्यक्ति को एक धर्म से नहीं बांध सकते, यह संवैधानिक गारंटी है


तिरूवनंतपुरम4 मिनट पहले

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हाईकोर्ट ने कहा, संविधान धर्म परिवर्तन की गारंटी देता है। - Dainik Bhaskar

हाईकोर्ट ने कहा, संविधान धर्म परिवर्तन की गारंटी देता है।

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को धर्म परिवर्तन से जुड़े एक मामले में सुनवाई की। इसमें कहा- एजुकेशन सर्टिफिकेट में जाति या धर्म परिवर्तन की मांग को इसलिए नहीं ठुकराया जाना चाहिए क्योंकि इसके लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।

जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि धर्म परिवर्तन के बाद संस्थानों को सर्टिफिकेट में आवश्यक सुधार करने होंगे। उन्होंने कहा भले ही स्कूल सर्टिफिकेट में धर्म परिवर्तन के आधार पर नाम बदलने का कोई नियम नहीं है। इसका मतलब ये नहीं है कि किसी व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर किसी एक धर्म से बांध दिया जाए।

हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 25 (1) के तहत किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का कोई भी धर्म अपनाने की गारंटी दी गई है। अगर कोई व्यक्ति इस आजादी का प्रयोग करके किसी अन्य धर्म को अपनाता है तो उसके दस्तावेजों में सुधार करना जरूरी है।

2017 में हिंदू धर्म छोड़ क्रिश्चियन बने थे याचिकाकर्ता
धर्म परिवर्तन से जुड़ी ये याचिका एक कपल ने दायर की थी। ये कपल हिंदू था, लेकिन साल 2017 में इन्होंने क्रिश्चियन धर्म अपना लिया।

धर्म परिवर्तन के बाद याचिकाकर्ता ने नए धर्म को दर्शाने के लिए स्कूल प्रमाणपत्रों में संशोधन की मांग की। लेकिन शिक्षा अधिकारी ने नियमों के अभाव का हवाला देते हुए यह मांग खारिज कर दी थी।

याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ संविधान के आर्टिकल 226 का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी।

मामले में सरकारी वकील ने दलील को धर्म परिवर्तन से जुड़े सरकारी आदेशों के खिलाफ बताया। हालांकि कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने शिक्षा अधिकारियों के आदेश को रद्द करते हुए एक महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं के स्कूल सर्टिफिकेट में बदलाव करने का निर्देश दिया है।

आर्टिकल 25(1) और आर्टिकल 226 क्या कहते हैं
भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 का सब आर्टिकल 1 देश के किसी भी नागरिक को बिना किसी रोक टोक के अपने धर्म का पालन तथा प्रचार करने की आजादी देता है। लेकिन ये धार्मिक आचरण व्यक्ति के स्वास्थ्य,नैतिकता और लॉ एंड ऑर्डर के लिए खतरा नहीं होना चाहिए। वहीं आर्टिकल 226, हाईकोर्ट को नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर रिट जारी करने का अधिकार देता है।

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खनिजों पर टैक्स के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला:कहा- मिनरल्स पर दी जाने वाली रॉयल्टी टैक्स नहीं, राज्यों को टैक्स लगाने का हक है

खनिजों पर टैक्स वसूलने के मामले पर गुरुवार (25 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया है। CJI ने कहा है कि बेंच ने 8:1 के बहुमत से फैसला किया है कि खनिजों पर लगने वाली रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जाएगा।

CJI ने कहा है कि माइंस और मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट (MMDR) राज्यों की टैक्स वसूलने की शक्तियों को सीमित नहीं करता है। राज्यों को खनिजों और खदानों की जमीन पर टैक्स वसूलने का पूरा अधिकार है। खदानों और खनिजों पर केंद्र की ओर से अब तक टैक्स वसूली के मुद्दे पर 31 जुलाई को सुनवाई होगी।

दरअसल, अलग-अलग राज्य सरकारों और खनन कंपनियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 86 याचिकाएं पहुंची थीं। कोर्ट को को तय करना था कि मिनरल्स पर रॉयल्टी और खदानों पर टैक्स लगाने के अधिकार राज्य सरकार को होने चाहिए या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट में 8 दिन तक चली सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि राज्यों को यह अधिकार नहीं होना चाहिए। अदालत ने 14 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पूरी खबर पढ़ें…

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