Published On: Thu, Jun 5th, 2025

Sirohi News: Vegetables And Fruits Cultivated On Barren Land, Arogyavan Emerges As A Model Of Organic Farming – Rajasthan News


जिले का आबूरोड स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थान का आरोग्य वन परिसर, जिसे कभी कृषि के लिए अनुपयुक्त माना गया था, जहां मिट्टी का पीएच लेवल 11 था और पानी में टीडीएस 3500 से 4200 तक था, कृषि वैज्ञानिकों ने भी यहां खेती को असंभव बताया था लेकिन ब्रह्माकुमारी संस्थान के राजयोगी सेवादारों की सेवा, साधना और अथक परिश्रम के चलते यह क्षेत्र आज जैविक खेती का आदर्श मॉडल बन चुका है। तलेटी क्षेत्र में कारौली गांव मार्ग पर स्थित 17 एकड़ का यह आरोग्य वन क्षेत्र अब सब्जियों और फलों की खेती के लिए प्रसिद्ध हो गया है। वर्ष 2021 में जब यहां खेती शुरू की गई, तब वैज्ञानिकों ने आशंका जताई थी कि इस जमीन में कुछ नहीं उगाया जा सकता लेकिन ब्रह्माकुमारी से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई जैविक खाद गौकृपा अमृतम ने चमत्कार कर दिखाया।

खेती की शुरुआत से पहले एक साल तक यहां बारिश के पानी से हरी घास उगाई गई और पूरी जमीन को ढंक दिया गया। इसके बाद गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट और जैविक खाद के साथ मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारा गया। जल सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम अपनाया गया, जिसमें 200 लीटर पानी में एक लीटर गौकृपा अमृतम मिलाकर पौधों को दिया जाता है, इससे पानी का खारापन फसलों पर असर नहीं डालता और उत्पादन बेहतर होता है। यहां उपयोग की जा रही जैविक खाद पारंपरिक विधियों से बनाई जाती है। इसमें दो किलो गुड़, दो लीटर देशी गाय की छाछ और अन्य सामग्री मिलाकर आठ दिन तक किण्वन किया जाता है। यह खाद न केवल फसलों के लिए फायदेमंद है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है।

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पानी संरक्षण के लिए परिसर में वर्षा जल संग्रहण हेतु तालाब का निर्माण किया गया है, इससे जमीन का जलस्तर बढ़ा है और पानी में मौजूद खारापन कम हुआ है। इस प्रयास ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ ही यहां देशी बीजों का निर्माण भी किया जा रहा है। पुराने बीजों को रिसायकल कर स्थानीय जलवायु के अनुकूल बीज तैयार किए जा रहे हैं, जिससे बाजार पर निर्भरता घट रही है।

पिछले साल यहां 13 एकड़ में 105 टन आलू का उत्पादन हुआ था, जबकि इस साल उसी क्षेत्र में 190 टन आलू का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। करीब 10 लाख की लागत से 32 लाख रुपये मूल्य की उपज प्राप्त की गई है। यहां काम करने वाले सभी श्रमिक पूरी तरह से निर्व्यसनी हैं और हर दिन राजयोग ध्यान के साथ कार्य की शुरुआत करते हैं। दोपहर में सभी श्रमिक ईश्वरीय महावाक्य (मुरली) भी सुनते हैं। यह स्थान यौगिक खेती का भी प्रयोगशाला बन चुका है, जहां ध्यान की ऊर्जा से फसलों को सशक्त किया जाता है।

यहां मिर्च, मक्का, सूरजमुखी, ककड़ी, लौकी, पेठा, बैंगन, गाजर, पालक, धनिया, मैथी, तुरई, टिंडा सहित कई सब्जियों और फलों की खेती की जा रही है। आरोग्य वन संरक्षक राजयोगी ब्रह्माकुमार राजूभाई का कहना है कि हमारा लक्ष्य केवल खेती में उत्कृष्टता लाना नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाना है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बंजर घोषित की गई इस जमीन पर आज जैविक और यौगिक खेती का आदर्श स्थापित हुआ है।

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