Published On: Tue, May 27th, 2025

54 साल बाद आया 9 धूर जमीन विवाद का फैसला: केस लड़ने में बिक गई 10 बीघा जमीन, वादी-प्रतिवादी दोनों का निधन, जज रिटायर – Begusarai News


बेगूसराय में 9 धूर जमीन विवाद में दोनों पक्षों में 10 बीघा जमीन बेच दी। मामला 54 साल पुराना है, जो कोर्ट में चल रहा था। केस इतना पुराना है कि वादी और प्रतिवादी दोनों की मौत हो गई। वादी के बेटे का भी निधन हो गया। सुनवाई करते-करते कई जज सेवानिवृत्त हो

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जिस 9 धूर जमीन की कीमत 1971 में 180 रुपए थी। आज वो ढाई लाख का है। मामला चेरिया बरियारपुर थाना क्षेत्र बहसी पंचायत भेलवा मुसहरी का है।

तीन दिन पहले आया था कोर्ट का फैसला।

तीन दिन पहले आया था कोर्ट का फैसला।

झोपड़ी को लेकर शुरू हुआ था विवाद

दरअसल, वादी जगदीश यादव अपने नाना की संपत्ति पर बसे हुए थे, लेकिन नाना के हिस्सेदार जद्दू यादव नहीं चाहते थे कि जगदीश यादव रहे। 1971 का वैशाख महीना था, जब जद्दू यादव अपने घर के बगल में एत झोपड़ी बना रहे थे, जो जगदीश यादव के नाना की जमीन पर बन रहा था।

दोनों में झगड़ा झंझट हो गया, जगदीश यादव ने झोपड़ी बनाने से रोक दिया। तत्कालीन मुंगेर जिला के बेगूसराय अनुमंडल कोर्ट में केस नंबर-83/71 के तहत यह विवाद चला गया। धारा-144, 145, 88 लगने के बाद टाइटल सूट हुआ। 1979 में जगदीश यादव के पक्ष में जब जजमेंट आया। जिसके बाद जद्दू यादव ने फिर टाइटल सूट अपील 1/80 दायर कर दिया।

मामला कोर्ट में चलने लगा। सीएम के जनता दरबार तक भी बात पहुंची, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

केस लड़ने के लिए जगदीश यादव ने धीरे-धीरे अपनी करीब 5 बीघा जमीन बेच दी। जद्दू यादव का भी साढ़े चार से पांच बीघा जमीन बिक गई। केस लड़ते-लड़ते 1997 में जगदीश यादव की मौत हो गई। 2 साल के बाद जद्दू यादव का देहांत हो गया।

झोपड़ी बनाने से किया था मना।

झोपड़ी बनाने से किया था मना।

पोते केस को देखने लगे

जगदीश यादव के निधन के बाद उनके बेटे मुंशी यादव केस लड़ने लगे। 2010 में उनकी भी मौत हो गई। तब से जगदीश यादव के पोते मनटुन यादव, रामभजन यादव और रंजीत यादव सहित अन्य केस को देखने लगे, लेकिन कोई समझौता नहीं हुआ।

वहीं. दूसरी तरफ जद्दू की मौत के बाद उनके भी बेटे केस को देख रहे थे। दोनों परिवार के लोग केस की तारीख कोर्ट पहुंचते थे।

मामला न्यायालय में जल्दी निपट जाता, लेकिन कागजी दांव फंस गया था। जद्दू यादव का कहना था कि जगदीश यादव के नाना ने बेटा नहीं रहने के कारण उसे यह जमीन मौखिक रूप से 180 रुपए में बेची थी। नियम के अनुसार उस समय 100 रुपए से अधिक की जमीन मौखिक रूप से नहीं बेची जा सकती थी। जिसके कारण मामला फंस गया।

तीन दिन पहले आया था फैसला

2025, 24 मई को इस मामले का कोर्ट ने फैसला जगदीश यादव के वंशजों के पक्ष में दिया। परिजनों में खुशी है, लेकिन साथ में अफसोस भी है की मात्र 9 धूर जमीन के लिए 5 बीघा कीमती जमीन बिक गई।

अंतिम समय में जद्दू यादव की ओर अधिवक्ता विनय रंजन और शकील अहमद ने न्यायालय के समक्ष अपना तर्क संगत बहस किया।

वहीं, जगदीश यादव के पक्ष अधिवक्ता प्रभात मणि और सत्यम कुमार ने बहस करते हुए बयानों में विरोधाभास को उजागर किया। न्यायालय ने दोनों पक्षों की ओर से बहस सुनने के करीब 54 वर्षों के बाद निर्णय सुनाया।

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