कोंकण रेलवे को भारतीय रेलवे में मर्ज करने की तीन असल वजह, यहां जानें

नई दिल्ली. कोंकण रेलवे निर्माण के 28 साल बाद भारतीय रेलवे में मर्ज होने जा रहा है. इस रेलवे के तहत चलने वाली ट्रेनों में सफर का अपना अलग आनंद है. प्रकृति को करीब से निहारने का मौका मिलता है. ऐसे खास रेलवे को मर्ज करने की जरूरत क्यों पड़ी ? यहां जानें तीन प्रमुख वजह –
कोंकण रेलवे 1990 से कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा सलाया जा रहा है, अब भारतीय रेलवे में विलय होने जा रहा है. महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और केरल ने मई 2025 तक इसकी सहमति दे दी है. केआरसीएल में केंद्र सरकार की 51% हिस्सेदारी है, जबकि महाराष्ट्र (22%), कर्नाटक (15%), गोवा (6%) और केरल (6%) की हिस्सेदारी है.
विलय के तीन कारण
आर्थिक तंगी
केआरसीएल को केंद्र से कोई बजटीय सहायता नहीं मिलती, जिससे ट्रैक दोहरीकरण और स्टेशन सुधार जैसे काम रुक गए हैं. 2021-22 में इसका लाभ केवल 55.86 करोड़ रुपये था, जो बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए कम है. वहीं, भारतीय रेलवे को 2023 में 2.4 लाख करोड़ रुपये का बजट मिला.
आटोमैटिक कंट्रोल डिवाइस न लगा पाना
केआरसीएल ने ट्रेनों को सुरक्षित चलाने के लिए एसीडी (आटोमैटिक कंट्रोल डिवाइस) लगाने को कहा था लेकिन नहीं लगा पाया.
स्काई ट्रेन का वादा
इस रेलवे ने स्काई ट्रेन चलाने के बड़े-बड़े वायद किए थे. इसका खूब प्रचार प्रसार किया था लेकिन यह प्रोजक्ट भी ठंडे बस्ते में चला गया. बताया जाता है कि ये तीन प्रमुख वजह रहीं, जिसकी वजह से मर्ज किया जा रहा है.
मर्ज से होगा फायदा
बेहतर ऑपरेशंस: मर्ज से रेल ऑपरेशंस में समन्वय बढ़ेगा. ट्रेनों आक्यूपेंसी रेट बेहतर होगी. इसके साथ ही यात्री सुविधाएं बढ़ेंगी.
क्षेत्रीय विकास: इससे कोंकण क्षेत्र में आर्थिक विकास होगा. ट्रैक दोहरीकरण और नई ट्रेनें शुरू हो सकेंगी, क्योंकि अभी नेटवर्क 175% क्षमता पर चल रहा है.
प्रमुख शर्तें
महाराष्ट्र ने मार्च 2025 में सहमति दी, लेकिन “कोंकण रेलवे” नाम बनाए रखने और 396.54 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी वापसी की शर्त रखी.
मुख्यमंत्री ने लिखा पत्र
देवेन्द्र फडणवीस ने पत्र में कहा, “मुझे कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड के भारतीय रेलवे के साथ विलय के लिए महाराष्ट्र सरकार की सहमति की सूचना देते हुए खुशी हो रही है. इसके लिए महाराष्ट्र को 396.5424 करोड़ रुपये की प्रतिपूर्ति करनी होगी, जिसे पहले राज्य के हिस्से के रूप में कॉर्पोरेशन को भेजा गया था. इसके अलावा, विलय के बाद भारतीय रेलवे को हस्तांतरित रेलवे लाइनों के लिए ‘कोंकण रेलवे’ नाम को बरकरार रखा जाना चाहिए, ताकि इसकी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय विरासत को मान्यता दी जा सके.