कौन है संजय भंडारी? नीरव मोदी ने बेल की दलीलों में जिसके नाम का किया जिक्र, फिर जज ने दिया क्या फैसला?

Nirav Modi Bail Hearing in London: नीरव मोदी ने जेल की सजा से बचने के लिए कोर्ट में आर्म्स डीलर संजय भंडारी को प्रत्यर्पण के फैसले की मदद से जमानत लेने की कोशिश की. हालांकि, नीरव मोदी द्वारा जमानत हासिल करने के प्रयास को पिछले सप्ताह ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दिए गए सबूतों को सही पाया था. मगर, यह जानान जरूरी है कि ये संजय भंडारी कौन हैं, जिनके मामले का प्रयोग नीरव मोदी कर रहे हैं.
संजय भंडारी का केस-
संजय भंडारी एक भारतीय आर्म्स डीलर हैं. उनके खिलाफ भारत में मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी और डिफेंस डिल में कमीशन लेने का आरोप है. 2016 में आयकर विभाग, सीबीआई, और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में उनका नाम सामने आया. उनके पास से रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज भी मिले. उन पर आरोप है कि उन्होंने काला धन विदेश भेजा, टैक्स चोरी की और रक्षा सौदों में रिश्वत ली. उनके खिलाफ 2016 में लुकआउट नोटिस जारी किया गया था. वह भारत से भागकर ब्रिटेन चले गए, जहां उन्हें 2020 में गिरफ्तार किया गया. भारत सरकार ने उन्हें भगोड़ा घोषित किया और उनके प्रत्यर्पण की कोशिश की.
प्रत्यर्पण की मंजूरी फिर किया मना
हालांकि, 2023 में ब्रिटेन की एक कोर्ट ने उनके प्रत्यर्पण को मंजूरी दी, मगर इसी साल अप्रैल में लंदन हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. कोर्ट का कहना था कि उनके खिलाफ आरोप 100 करोड़ रुपये से कम की संपत्ति हैं, जो उनको फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर्स एक्ट की शर्तों को पूरा नहीं करते.
10वीं बार जमानत खारिज
यह 10वीं बार है जब पंजाब नेशनल बैंक धोखाधड़ी (जिसमें उन्होंने बैंक को 6,498 करोड़ रुपये का चूना लगाया) में ब्रिटेन की अदालत ने मोदी की जमानत याचिका खारिज कर दी. भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध के आधार पर गिरफ्तार किए जाने के बाद 19 मार्च 2019 से वह लंदन के बाहरी इलाके में स्थित वांड्सवर्थ जेल में बंद हैं.
भंडारी मामले को प्रयोग किया
28 फरवरी को, ब्रिटेन हाईकोर्ट में किंग्स बेंच खंड ने भंडारी की भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ याचिका को इस आधार पर स्वीकार कर लिया कि तिहाड़ जेल में अन्य कैदियों या जेल अधिकारियों द्वारा उसे जबरन वसूली, यातना या हिंसा का खतरा होगा. नीरव मोदी ने जमानत पाने के अपने नए प्रयास में दलीलें दीं. उन्होंने भंडारी के मामले को उनके लिए “सुरंग के अंत की नई रोशनी” प्रदान करता है.
दलील को खारिज क्यों किया
जस्टिस माइकल फोर्डहम ने दलील को खारिज करते हुए 15 मई को अपने आदेश में कहा: ‘मैं इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दे सकता’ और साथ ही कहा कि मोदी की याचिका (जमानत के लिए) के विपरीत भंडारी का मामला प्रत्यर्पण के बाद संभावित पुलिस पूछताछ का मामला था. हिंदुस्तान टाइम्स ने इस आदेश की प्रति की समीक्षा की है.
सबूत सही थे
फोर्डहम ने अपने आदेश में कहा कि मोदी को जमानत न देने का उनके खिलाफ पाए गए सही सबूत का निष्कर्ष पर आधारित था. उन्होंने कहा, ‘इसके विपरीत, मुझे लगता है कि यह मानने के लिए पर्याप्त आधार हैं. यदि मैं प्रस्तावित शर्तों या इस न्यायालय द्वारा उचित रूप से निर्धारित किसी भी शर्त पर जमानत पर रिहा करता हूं, तो आवेदक आत्मसमर्पण करने में विफल रहेगा.’
जस्टिस ने कहा, ‘मुझे हर्न (निकोलस हर्न- भारत के मामले का प्रतिनिधित्व करने वाले क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस के वकील) ने भी समझाया है कि यह मानने के लिए पर्याप्त आधार हैं. यदि जमानत शर्तों पर रिहा किया जाता है, तो आवेदक (नीरव) गवाहों के साथ प्रभावित करेगा. इस संबंध में, मैं दर्ज करता हूं कि यह मेरे निर्णय का द्वितीयक आधार है. प्राथमिक आधार फरार होने के जोखिम का आकलन है.’
ईडी-सीबीआई की टीम ने लिया भाग
बता दें कि हर्न ने लंदन के कोर्ट में सीबीआई और ईडी की टीमों के साथ सुनवाई में भाग लिया. उन्होंने तर्क दिया कि यदि जमानत पर रिहा किया गया, तो नीरव मोदी को फिर से फरार होने की कोशिश करेगा. इतना सुनते ही जज भारत सरकार से सहमत हो गये. भारत सरकार ने यह भी तर्क दिया कि यदि नीरव मोदी को रिहा कर दिया जाता है, तो वह अपने द्वारा गबन किए गए धन तक पहुंच सकता है क्योंकि वह 1.015 बिलियन डॉलर की धोखाधड़ी में मुख्य अपराधी था, जिसमें से केवल 405 मिलियन डॉलर का ही पता लगाया जा सका है.