दिल्ली HC बोला- शारीरिक संबंध का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं: दोषी साबित करने के लिए सबूत चाहिए; POCSO एक्ट के आरोपी को बरी किया
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नई दिल्ली2 घंटे पहले
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![हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आजीवन कारावास के फैसले को रद्द कर दिया। - Dainik Bhaskar](https://net4newsonline.in/wp-content/uploads/2024/12/दिल्ली-HC-बोला-शारीरिक-संबंध-का-मतलब-यौन-उत्पीड़न-नहीं.jpg)
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आजीवन कारावास के फैसले को रद्द कर दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट के मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि नाबालिग पीड़िता के शारीरिक संबंध शब्द इस्तेमाल करने का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने इसके साथ ही आरोपी को बरी कर दिया। उसे ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट की बेंच ने कहा,
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ये साफ नहीं है कि ट्रायल कोर्ट ने कैसे निष्कर्ष निकाला कि जब पीड़ित अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी, तो उसका यौन उत्पीड़न हुआ था।
बेंच ने कहा- शारीरिक संबंध या संबंध से यौन उत्पीड़न और पेनिट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट बताना सबूतों के मिलने पर तय करना चाहिए। केवल अनुमान लगाकर ये तय नहीं किया जा सकता।
दरअसल, 2017 में 14 साल की लड़की को एक व्यक्ति अपने साथ ले गया था। लड़की फरीदाबाद में व्यक्ति के साथ पाई गई थी। दिसंबर 2023 में व्यक्ति के खिलाफ POCSO, रेप और यौन उत्पीड़न का केस दर्ज कराया गया था।
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कोर्ट ने कहा-
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संबंध बनाया’ शब्द का इस्तेमाल भी POCSO अधिनियम की धारा 3 या IPC की धारा 376 के तहत अपराध तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हालांकि POCSO एक्ट के तहत अगर लड़की नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती, लेकिन ‘शारीरिक संबंध’ शब्द को ‘यौन संभोग’ तो दूर ‘यौन उत्पीड़न’ में भी नहीं बदला जा सकता।
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हाईकोर्ट ने कहा था- यौन उत्पीड़न महिला-पुरुष दोनों कर सकते हैं, ऐसे मामलों में जेंडर कोई ढाल नहीं है 10 अगस्त 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट से जुड़े एक दूसरे मामले पर सुनवाई की थी। जस्टिस जयराम भंभानी ने कहा था कि POCSO एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले और गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमला (जबरन किसी चीज से बच्चों के निजी अंगों से छेड़छाड़) केस महिलाओं के खिलाफ भी चलाया जा सकता है। ऐसे मामलों में जेंडर कोई ढाल नहीं हैं।
कोर्ट की टिप्पणी एक महिला की दाखिल याचिका पर आई थी। उसका तर्क था कि POCSO एक्ट की धारा 3 में पेनिट्रेटिव यौन हमला और धारा 5 में गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमला का केस किसी महिला पर दर्ज नहीं हो सकता क्योंकि इनकी डेफिनेशन से पता चलता है कि इसमें केवल सर्वनाम ‘वह’ का उपयोग किया गया है। जो कि पुरुष को दर्शाता है, महिला को नहीं।
महिला पर साल 2018 में केस दर्ज हुआ था। मार्च 2024 में ट्रायल कोर्ट ने उसके खिलाफ POCSO एक्ट के तहत आरोप तय किए थे। इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। पूरी खबर पढ़ें…
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सुप्रीम कोर्ट बोला- चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना अपराध: मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलटा; कहा- अदालतें इस शब्द का इस्तेमाल भी न करें
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO और IT एक्ट के तहत अपराध है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह ‘चाइल्ड सेक्शुअल एक्सप्लॉएटेटिव एंड एब्यूसिव मटेरियल’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए। केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर बदलाव करे। अदालतें भी इस शब्द का इस्तेमाल न करें। पूरी खबर पढ़ें…