SC: महिला सैन्य अधिकारी को स्थायी कमीशन दे केंद्र; अदालत ने कहा- किसी को हां किसी को ना, यह नहीं होना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक महिला सैन्य अधिकारी को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस महिला सैन्य अधिकारी को स्थायी कमीशन देने पर विचार नहीं किया गया, जबकि अन्य समान पद वाले अधिकारियों को इसका लाभ दिया गया। कोर्ट ने कहा कि जो एक के लिए अच्छा है, वह सभी के लिए अच्छा होगा। किसी को हां और किसी को ना, ऐसा नहीं होना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ लेफ्टिनेंट कर्नल सुप्रिता चंदेल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) के फैसले को चुनौती दी थी, जिसने स्थायी कमीशन के लिए उनके मामले पर विचार नहीं किया था। लेफ्टिनेंट कर्नल चंदेल ने 2008 में सेना के डेंटल कोर में शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) अधिकारी के रूप में कमीशन प्राप्त किया था।
समान स्थिति वाले अन्य लोगों को भी मिले लाभ
पीठ ने कहा कि जब सरकारी विभाग के रवैये से पीड़ित कोई नागरिक न्यायालय आता है और पक्ष में आदेश पाता है, तो समान स्थिति वाले अन्य लोगों को न्यायालय गए बिना लाभ इसका दिया जाना चाहिए। अधिकारियों को स्वयं ही अपीलकर्ता को एएफटी, प्रधान पीठ के 2013 के फैसले का लाभ देना चाहिए था। 14 जनवरी, 2019 को सेना प्रमुख की ओर से उन्हें प्रशस्ति पत्र भी मिला है, लेकिन महिला सैन्य अधिकारी के साथ इसी तरह की स्थिति वाले अधिकारियों के मुकाबले भेदभाव किया गया।
महिला अधिकारी समानता की हकदार
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, लखनऊ की ओर से राहत देने से इन्कार करने के खिलाफ उनकी अपील को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, अपीलकर्ता उन आवेदकों के साथ समानता की हकदार हैं, जिन्होंने एएफटी, प्रधान पीठ दिल्ली के समक्ष पदोन्नति के लिए तीसरा मौका हासिल करने में सफलता प्राप्त की, क्योंकि उन्होंने 20 मार्च, 2013 को नियमों में संशोधन से पहले पात्रता हासिल कर ली थी। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को स्थायी कमीशन दिया जाए। साथ ही उसे उसी तिथि से लाभ दिया जाए, जिस तिथि से समान स्थिति वाले व्यक्ति को लाभ दिया गया था।
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