Published On: Thu, Dec 5th, 2024

काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता तो… महिला जज का केस पहुंचा सुप्रीम कोर्ट



नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शन के आधार पर राज्य की एक महिला जज को बर्खास्त करने और गर्भ गिरने के कारण उसे हुई पीड़ा पर विचार न करने के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर पुरुषों को भी मासिक धर्म से गुजरना पड़े तो क्या हो. जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने दीवानी जजों की बर्खास्तगी के आधार के बारे में हाईकोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि पुरुष जजों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे. मुझे यह कहने में कोई झिझक महसूस नहीं हो रही. महिला गर्भवती हुई और उसका गर्भ गिर गया. गर्भ गिरने के दौरान महिला को मानसिक और शारीरिक आघात झेलना पड़ता है. …काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, तो उन्हें इससे संबंधित दुश्वारियों का पता चलता.”

उन्होंने न्यायिक अधिकारी के आकलन पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की, जिसने दीवानी न्यायाधीश को गर्भ गिरने के कारण पहुंचे मानसिक व शारीरिक आघात को नजरअंदाज कर दिया था. शीर्ष अदालत ने कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार द्वारा छह महिला दीवानी जजों की बर्खास्तगी पर 11 नवंबर, 2023 को स्वत: संज्ञान लिया था.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने हालांकि एक अगस्त को फिर से विचार करते हुए चार अधिकारियों ज्योति वरकड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया तथा अन्य दो अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को राहत नहीं दी.

वकील चारु माथुर के माध्यम से दायर एक जज की याचिका में दलील दी गई कि चार साल के बेदाग सेवा रिकॉर्ड और एक भी प्रतिकूल टिप्पणी न मिलने के बावजूद, उन्हें कानून की किसी भी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि सेवा से उनकी बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

याचिका में कहा गया है कि यदि कार्य मूल्यांकन में उनके मातृत्व और शिशु देखभाल अवकाश की अवधि को शामिल किया गया तो यह उनके साथ घोर अन्याय होगा. याचिका में कहा गया है, “यह स्थापित कानून है कि मातृत्व और शिशु देखभाल अवकाश एक महिला और शिशु का मौलिक अधिकार है, इसलिए, मातृत्व व शिशु देखभाल के लिए ली गईं छुट्टियों के आधार पर प्रदर्शन का मूल्यांकन याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है.”

Tags: Madhya Pradesh High Court, Supreme Court

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