Sirohi Breed Goats Will Increase Through Artificial Insemination Experiment 12 Goats Pindwara-aburoad Success – Rajasthan News


बकरी कृत्रिम गर्भाधान
– फोटो : अमर उजाला
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सिरोही जिले की सिरोही नस्ल की बकरी की पूरे देश में डिमांड है। इस नस्ल की बकरी हर तरह की जलवायु में रह सकती है। इस नस्ल की बकरी का दूध उत्पादन भी अच्छा माना जाता है। इस वजह से पशुपालक इस नस्ल की बकरी की मांग करते हैं। इसके मद्देनजर पशुपालन विभाग एवं प्रदान संस्था की ओर से सामूहिक प्रयास किए जा रहे हैं। इसके उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। कृत्रिम गर्भाधान से सिरोही नस्ल की बकरियों की संख्या बढ़ेगी। पिंडवाड़ा एवं आबूरोड ब्लॉक में 12 बकरियों में प्रयोग सफल रहा है। वर्तमान में आठ बकरियां गर्भवती हैं तथा एक बकरी ने बच्चे को जन्म दिया है।
गौरतलब है कि सिरोही के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में महिलाओं की आजीविका बढ़ाने कर लिए पिछले एक दशक से कृषि एवं पशुपालन की गतिविधियों पर कार्य कर रही सामाजिक संस्था प्रदान द्वारा नई पहल की गई है। इसमें जिले के दो ब्लॉक आबूरोड एवं पिंडवाड़ा में बकरियों में नस्ल सुधार को नया आयाम देते हुए सिरोही नस्ल को बढ़ाने के लिए बकरी कृत्रिम गर्भाधान की शुरूआत की गई है। पशुपालन विभाग के आबूरोड ब्लॉक वेटरनरी ऑफिसर डॉ. डीएफ सांवलिया और पूरे स्टॉफ से कृत्रिम गर्भाधान के विषय पर चर्चा की गई।
इसके बाद पशु चिकित्सकों के मार्गदर्शन में अब तक 12 बकरियों का कृत्रिम गर्भाधान करवाया गया है। संस्था के पशुधन निरीक्षक भजनलाल की मौजूदगी में किए गए कृत्रिम गर्भाधान में से अब आठ बकरियां गर्भवती हैं एवं एक बकरी ने बच्चा जन्म दिया है। संस्था के टीम को-ऑर्डिनेटर सुमित कुमार एवं जिले में पशुपालन संबंधित कार्य की देखरेख कर रहे हैं। एग्जीक्यूटिव तालिब खान, पशु चिकित्सक डॉ. डीएफ सांवलिया ने पशुपालकों को इस बारे में जानकारी दी। इसमें पशुपालकों को कृत्रिम गर्भाधान की जानकारी देते हुए पशुपालकों को जागरूक किया गया।
ऐसे किया जाता है कृत्रिम गर्भाधान
इस प्रक्रिया में कृत्रिम विधि से नर पशु से वीर्य एकत्रित करके मादा पशु की प्रजनन नली में रखने की प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है। देश में वर्ष 1937 में पैलेस डेयरी फार्म मैसूर में कृत्रिम गर्भाधान का प्रथम प्रयोग किया गया था। आज पूरे देश-दुनिया में पालतू पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधि अपनाई जा रही है। इस विधि से ज्यादा से ज्यादा मादा पशुओं को गर्भित किया जा सकता है, जो कि नस्ल सुधार और दूध उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है।