Cps Appointment Case Different Interpretations Of Himachal High Court Decision Experts Also Disagree – Amar Ujala Hindi News Live
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से 18 वर्ष पुराने सीपीसी कानून 2006 को असांविधानिक घोषित करने के बाद छह कांग्रेस विधायकों की सदस्यता को लेकर संशय बन गया है। हाईकोर्ट के फैसले की अलग-अलग तरीके से व्याख्या की जा रही है। विशेषज्ञ भी इसको लेकर एकमत नहीं है।
अदालत ने अपने फैसले में मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव के पद पर ऐसी नियुक्ति को दिए गए संरक्षण को अवैध करार दिया है। अदालत ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदस्य अयोग्यता अधिनियम 1971 की धारा 3 (डी) को भी असांविधानिक करार दिया है। इसके तहत सीपीएस पद को सरंक्षण दिया गया था। अदालत में सीपीएस की नियुक्तियों के कानूनी दर्जे को चुनौती दी गई थी।
याचिका में कहा गया था कि हिमाचल सरकार ने सीपीएस का जो कानून 2006 में बनाया है, वह संविधान के खिलाफ है। हिमाचल विधानसभा को सीपीएस पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 164(1) ए के तहत विधानसभा की कुल मंत्रिपरिषद की संख्या 15 फीसदी से अधिक और 12 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए। प्रदेश सरकार ने इस कानून की वैधता पर अपनी दलीलें दी। सरकार ने कहा था कि मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव का पद 70 वर्षों से भारत में और 18 वर्षों से हिमाचल में लागू है। हिमाचल ने गुड गवर्नेंस और जनहित के कार्यों के लिए सीपीएस नियुक्त किए थे। सीपीएस के पद को मुख्यमंत्री के कार्य को कम करने के लिए नियुक्त किया गया था।
सरकार ने दलीलों में कहा था कि सीपीएस के पद को 1950 की कन्वेंशन के तहत भारत में भी लागू किया गया। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश विपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के बिम्लांक्षु राय बनाम असम सरकार फैसले के तहत ही हिमाचल के सीपीएस कानून 2006 को भी निरस्त व असांविधानिक करार दिया। बता दें कि सबसे पहले असम राज्य ने वर्ष 2004 में सीपीएस पद को मान्यता देने के लिए कानून बनाया था। सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने इस कानून को निरस्त कर विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी थी। इसी तरह मणिपुर राज्य में भी सीपीएस बनाए गए विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी थी।