Published On: Mon, Jul 29th, 2024

9 की जान लेने वाला बाघ,मारने में लगे 27 दिन: पिता के डर से नहीं जाता था जंगल; टाइगर्स-डे पर बिहार के बाघों की कहानी – bagaha News


आज वर्ल्ड टाइगर डे है। इस दिन के जरिए दुनिया भर में बाघों को संरक्षित करने का मैसेज देने की कोशिश की जाती है। हालांकि, बाघों का संरक्षण चुनौती भरा है। लेकिन, भारत और खास कर बिहार के VTR में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

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बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व एकमात्र जगह है, जहां आम लोग बाघों को जंगल में देख सकते हैं। वन संरक्षक डॉक्टर नेशामणि के मुताबिक टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या अब 54 हो गई है। लेकिन, इस रिजर्व से निकले कई टाइगर्स ने आतंक भी फैलाया है।

बीते तीन सालों में बाघ ने चार बार जंगल से निकलकर हमला करते हुए लोगों की जानें ली हैं। साल 2022 में सबसे बड़ी घटना हुई थी, जिसमें बाघ ने 10 लोगों को शिकार बनाया, इनमें 9 की मौत हो गई।

साल 2023 में बाघ ने दो बार अटैक किया। जिसमें एक बार बाघ को रेस्क्यू कर लिया गया, जबकि दूसरी बार के हमले में बाघ ने एक महिला की जान ले ली।

वहीं, सबसे ताजा मामला साल 2024 की जुलाई का है, जहां चनपटिया में लगभग 10 दिनों से VTR से निकलकर आए बाघ ने लोगों को परेशान कर रखा है। कई पर अटैक करने की भी कोशिश की है।

हालांकि, यह बाघ अब वापस अपने घर के रास्ते की ओर है। बाघ के रेस्क्यू में लगे वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब चिंता की कोई बात नहीं है। एक से दो दिन में बाघ अपने इलाके में वापस लौट जाएगा।

बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व एकमात्र जगह है, जहां आम लोग बाघों को जंगल में देख सकते हैं।

बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व एकमात्र जगह है, जहां आम लोग बाघों को जंगल में देख सकते हैं।

अब सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं बीते 3 सालों में बाघ ने कहां, कैसे और कितनों को निशाना बनाया…

बिहार के खतरनाक बाघ T104 के आदमखोर बनने की कहानी….

हाल ही में सबसे चर्चित घटना साल 2022 में हुई थी। तब एक आदमखोर बाघ का एनकाउंटर कर लोगों को इसके आतंक से मुक्ति दिलाई गई। दरअसल, साल 2000 में T5 की मुलाकात T34 से हुई। इस दौरान T34 मां बन गई। मां अपने बच्चों को बचाने के लिए उनके पिता T5 से दूर जंगल के किनारे रहने लगी। बड़े बाघ यानी T5 से बचने के लिए कभी गन्ने के खेत तो कभी किनारे के क्षेत्र में बच्चों को रखा। इस दौरान बच्चे धीरे-धीरे बच्चे बड़े हो गए, जिसमें C1 अपनी मां से अलग हो गया और शावक से बाघ T104 बन गया।

पिता के डर से जंगल में नहीं जाता था T104

जंगल के किनारे क्षेत्र में T5 का निवास स्थल था। ऐसे में T5 के डर से T104 बाघ जंगल के बाहरी इलाके में रहने लगा। बाहर ही शिकार की तलाश करने लगा। बाघ हरनाटांड़, चिउटाहा में गन्ने के खेतों के साथ-साथ वीटीआर डिवीजन के राघिया और गोबरधना वन रेंज में लगातार मूवमेंट करने लगा।

8 मई को हरनाटांड़ के बैरिया कला गांव के रहने वाले अविनाश कुमार को बैठे देख उसे शिकार समझकर हमला बोल दिया। अविनाश गंभीर रूप से जख्मी हो गया। आज भी वह उठकर चल नहीं पाते हैं।

पिता T 5 के डर से T104 बाघ जंगल के बाहरी इलाके में रहने लगा।

पिता T 5 के डर से T104 बाघ जंगल के बाहरी इलाके में रहने लगा।

13 साल के बच्चे को बनाया पहला शिकार

14 मई को जिमरी, नौतनवा के राजकुमार (13) पर बाघ ने हमला बोला, जिससे उसकी मौत हो गई। 20 मई को कटाह पुरैना निवासी पार्वती देवी को बाघ ने शिकार बनाया। वहीं, 14 जुलाई को बैरिया कला निवासी धर्मराज काजी को बाघ ने मौत के घाट उतार दिया। अब तक इसे एक हादसा समझा जा रहा था, लेकिन 12 सितंबर को हरनाटांड़ के बैरिया कला निवासी गुलाबी देवी को बाघ ने मार डाला।

लोगों में दहशत का माहौल बन गया। फिर 12 सितंबर से ही ऑपरेशन बाघ शुरू हो गया। अब 3 साल के T104 को अंदर भेजने के लिए वन के अधिकारियों के साथ 40 वन कर्मियों की टीम तैनात हुई। लगातार टाइगर ट्रैकर पग मार्क के आधार पर ट्रैकिंग करने में लग रहे, लेकिन पलक झपकते ही बाघ एक से दूसरी जगह अपना आशियाना बदल लेता।

20 सितंबर तक कभी बाघ इधर तो कभी उधर हो रहा था, लेकिन 21 सितंबर को बाघ ने हरनाटांड़ के बैरिया कला निवासी रामप्रसाद उरांव को अपना शिकार बनाया और मार डाला। रामप्रसाद अपने परिवार के साथ सोहनी करने खेत में गए थे तभी बाघ उनको खींचते हुए जंगल की तरफ ले गया। लगातार हुई इस घटना के बाद से वन विभाग की भी नींद उड़ गई।

T104 बाघ को पकड़ने के लिए ड्रोन कैमरों की मदद ली जाती थी।

T104 बाघ को पकड़ने के लिए ड्रोन कैमरों की मदद ली जाती थी।

22 सितंबर (11वां दिन)

21 को हुई घटना के बाद वन विभाग बाघ को पकड़ने की पूरी तैयारी में उतर गया। फिर उसे बेहोश कर झारखंड के पलामू टाइगर में भेजने कि तैयारी शुरू हुई। 60 फॉरेस्ट गार्ड, पांच वैन, चार बड़े जाल, दो ट्रेकुलाईज गन के साथ एक्सपर्ट, 40 सीसीटीवी कैमरा और एक ड्रोन के सहारे वन विभाग रेस्क्यू करने में जुट गई।

इसमें WTI और WWF के अधिकारी और कर्मी भी लगाए गए। इस दिन बाघ को एक डॉट भी लगा था, लेकिन डॉट लगने के साथ ही वह घने झाड़ियां में छिप गया। वनकर्मियों ने 40 मिनट तक बाघ को ढूंढा, लेकिन वह वहां से भाग निकला। (बता दें कि डॉट का असर 45 मिनट तक ही बाघ पर रहता है, उसके बाद उसे होश आ जाता है। यही कारण रहा कि बाघ जंगल से भाग निकला और वन कर्मियों के हाथ नहीं लगा। )

T104 बाघ को पहली बार ट्रैकुलाइज किया गया, लेकिन 40 मिनट बाद उसका असर खत्म हो गया और वो भाग निकला।

T104 बाघ को पहली बार ट्रैकुलाइज किया गया, लेकिन 40 मिनट बाद उसका असर खत्म हो गया और वो भाग निकला।

23 सितंबर (12वां दिन)

23 सितंबर को बाघ स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। कर्मियों और लोगों ने इसका वीडियो भी बनाया। बताया जाता है कि तकरीबन 10 से 11 बजे के बीच बाघ जंगल से निकाला और अचानक खेतों से होते हुए जंगल के दूसरे भाग में घुस गया। इसका लोगों ने वीडियो बनाया। इसी के बाद बाघ की पहचान भी हुई। इस दिन वन कर्मियों की संख्या बढ़ाकर 150 कर दी गई। साथ ही बाघ को पकड़ने के सभी व्यवस्था कायम रखे गए, लेकिन टाइगर अपनी जगह बदलने में माहिर था। 24 सितंबर यानी 13वें दिन बाघ का पगमार्क ढूंढने में बीत गया।

T104 बाघ को पकड़ने के लिए हाथियों की मदद ली गई थी।

T104 बाघ को पकड़ने के लिए हाथियों की मदद ली गई थी।

25 सितंबर (14वें दिन)

वहीं, 25 सितंबर को वन्य जीव वार्डन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने बाघों के आवारा होने से उत्पन्न होने वाली आपात स्थिति से निपटने के लिए जारी एसओपी को व्यवहार में लाया था। निगरानी करने के लिए ट्रैकर टीम, हाथी टीम, पीआईपी, कैमरा ट्रैप, ड्रोन, नाइट विजन/थर्मल इमेजिंग उपकरणों का उपयोग किया गया। 15वें दिन सिस्टम के सहारे टीम बाघ को ढूंढने में लगी रही।

27 सितंबर (16वें दिन)

इस दिन चार हाथियों की टीम की तैनाती हुई। मचान बनाए गए, शिकारी को शिकार का लालच दिया गया, लेकिन बावजूद इसके आदमखोर बना बाघ चकमा देकर फरार हो गया।

30 सितंबर और 1 अक्टूबर ( 19वां और 20वां दिन)

इस दिन वन कर्मियों की टीम बढ़ाकर 300 कर दी गई। वन कर्मियों का रहना, खाना सब कुछ कैंप लगाकर किया जाने लगा, रातें पेड़ों पर कटने लगी। वहीं अधिकारी गाड़ियों में बैठे-बैठे ही रात काट लेते और सुबह बाघ की तलाश शुरू हो जाती। 19वें और 20वें दिन यानी 24 घंटे में बाघ ने तीन बार ठिकाना बदला। वह कभी मसान के इस पार तो कभी मसान के उस पार चला जाता था।

2 और 3 अक्टूबर (21वां और 22वां दिन)

21वें दिन की रात में जंगल में मचान बनाए गए। भैंस के मेमना को बांधा गया। दरअसल, इसी जगह के आसपास बाघ ने कई दिनों से डेरा डाला हुआ था, लेकिन पूरी तैयारी के बावजूद शिकारी वहां से भाग निकला। इसी दिन वन विभाग ने खुलासा किया कि बाघ बड़े बाघ के डर से जंगल में नहीं जा रहा है। अब तक ऑपरेशन में 400 कर्मियों को लगाया जा चुका था।

इस प्रकार 22वें दिन वन विभाग के लिए कई चुनौती सामने आई। एक बाघ का रेस्क्यू करना, दूसरा दो बाघों के बीच वर्चस्व की लड़ाई, तीसरा बाघ से लोगों को बचाना। यह वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती थी। इसी बीच गांव में घुसकर बाघ ने रात्रि में एक बड़े बछड़े का शिकार किया।

4 अक्टूबर (23वां दिन)

23वें दिन बाघ ने 10 किलोमीटर की दूरी तय की और रामनगर पहुंच गया। वहां नवरात्रि का मेला लगा था। उससे कुछ ही दूरी पर बाघ ने डेरा जमा लिया। इसे देखते हुए प्रशासन बाघ के पीछे लग गया। मेला में भगदड़ न मचे इसको लेकर सावधानी बरती हई।

वहीं, 23वें दिन यानी 4 अक्टूबर को हैदराबाद से एक्सपर्ट की टीम बुलाई गई।

मिट गया था पग मार्क, 24वें दिन एक और शिकार

5 अक्टूबर यानी 24वें दिन वन विभाग के लिए नई चुनौती सामने आई थी। दरअसल 4 अक्टूबर की रात में बारिश हुई थी, जिसके कारण खेतों में पानी लग गया था। इस वजह से बाघ के पगमार्क मिट गए थे। अब नए सिरे से बाघ को ढूंढना था। वन विभाग के पास वेट एंड वॉच के अलावा कोई विकल्प नहीं था। तभी बाघ ने 5 अक्टूबर की रात में सिगाही गांव के बगड़ी कुमारी को मौत के घाट उतार दिया।

बाघ के हमले के बाद लोगों ने वन विभाग के ऑफिस में तोड़फोड़ की थी।

बाघ के हमले के बाद लोगों ने वन विभाग के ऑफिस में तोड़फोड़ की थी।

6 अक्टूबर (25वें दिन)

लगातार हो रहे बाघ के हमले के बाद लोग उग्र हो गए थे। लोगों के साथ वन्य कर्मी दो-दो हाथ करने के लिए उतावले थे। इन सभी हमलों का दोषी अब वन विभाग को माना जाने लगा। आखिरकार किसी तरह से 6 अक्टूबर का दिन कटा।

7 अक्टूबर 26वें दिन (मारने के ऑर्डर)

7 अक्टूबर की सुबह वन कर्मियों की टीम ने बाघ को रिहायशी क्षेत्र घेर लिया था। हालांकि, बाघ अभी भी पहुंच के बाहर था। वो लगातार उसी क्षेत्र में घूम रहा था। दोपहर में डुमरी थाना के गोबर्धना निवासी संजय महतो को अपना शिकार बना डाला। लोगों ने संजय महतो के शव को रखकर प्रदर्शन किया। तोड़फोड़ की गई। इधर, वाइल्डलाइफ वार्डन पीके गुप्ता ने लेटर जारी कर बाघ के लिए शूट एट साइट का ऑर्डर दे दिया।

27 दिन के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद वन विभाग ने T 104 को पकड़ा था।

27 दिन के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद वन विभाग ने T 104 को पकड़ा था।

27वें दिन बाघ को मार गिराया

8 अक्टूबर को बाघ को मारने की तैयारी चल रही थी। ट्रैक किया जा रहा था। नेपाल से भी टीम आई थी। इसी बीच अचानक सूचना मिली कि बलुआ गांव की 35 वर्षीय महिला और उसके 10 वर्षीय बेटे को बाघ ने मार दिया है। पता चला कि बाघ गन्ने के खेत में छुप कर बैठा था। पूरी टीम तैनात कर दी गई, तकरीबन 8 घंटे तक ऑपरेशन चला। इसी बीच तीन गोली की आवाज आई और बाघ शांत हो गया।

बाघ का शव देख वन कर्मी समेत सभी अधिकारियों और पर्यावरण प्रेमियों के आंखों में आंसू थे।

बाघ का शव देख वन कर्मी समेत सभी अधिकारियों और पर्यावरण प्रेमियों के आंखों में आंसू थे।

बाघ का शव देख रो दिए थे पर्यावरण प्रेमी

इस घटना के बाद वन कर्मी समेत सभी अधिकारियों और पर्यावरण प्रेमियों के आंखों में आंसू थे। वहीं, अंधविश्वास पर जीने वाले लोग मरे हुए बाघ को नोच रहे थे। उनके बाल और खाल निकालने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान यहां लोगों के साथ प्रशासन की झड़प भी हुई थी।

मौत के बाद लोग बाघ के बाल और खाल निकालने की कोशिश कर रहे थे, इसको लेकर भीड़ और प्रशासन के बीच झड़प भी हुई थी।

मौत के बाद लोग बाघ के बाल और खाल निकालने की कोशिश कर रहे थे, इसको लेकर भीड़ और प्रशासन के बीच झड़प भी हुई थी।

साल 2023 में भी दो बाघ ने किए अटैक्स…

मई 2023 में गौनाहा प्रखंड के रुपवालिया गांव निवासी कमलेश उरांव के घर में सुबह पांच बजे बाघ घुस गया। इस दौरान महिला पर हमला बोला, महिला ने भागकर अपनी जान बचा ली, लेकिन घर में तीन बच्चे भी मौजूद थे। स्थानीय लोगों ने बच्चों को घर से बाहर निकाला था। हालांकि, वन कर्मियों की टीम ने लगातार 8 घंटे मेहनत करने के बाद बाघ का सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर लिया।

घर के अंदर से बाघ को रेस्क्यू किया गया था।

घर के अंदर से बाघ को रेस्क्यू किया गया था।

4 दिसंबर 2023 को महिला बनी शिकार

पिराड़ी एसएसबी कैंप से 100 मीटर उत्तर में मवेशी चराने गई महिला पर बाघ ने हमला कर दिया। उसे खींचते हुए अपने साथ जंगल में ले गया। रात तकरीबन एक बजे महिला का आधा शरीर मिला था। मृत महिला की पहचान बखरी निकासी चिल्होरिया देवी के रूप में की गई थी।

2024 के जुलाई में चनपटिया में लोगों ने देखा बाघ

बीते 8-10 दिनों से चनपटिया में बाघ को लेकर दहशत है। पुरैना गांव में लोगों ने बाघ को घूमते देखा है। कई ग्रामीणों का कहना है कि उनके ऊपर खेत जाने के दौरान अटैक भी हुआ। उन्होंने जैसे तैसे अपनी जान बचाई है। हालांकि, डीएफओ के अनुसार बाघ ने अभी तक किसी पर हमला नहीं किया है। बाघ बेतिया के चनपटिया से धीरे-धीरे अपने क्षेत्र की तरफ लौट रहा है। फिलहाल जंगल के किनारे के क्षेत्र में बाघ को देखा गया है। आज किसी भी समय जंगल के अंदर बाहर इन कर सकता है।

वन कर्मी लगातार खेतों में जाल बिछाकर रेस्क्यू करने में लगे हैं। इस ऑपरेशन में 15 लोगों की टीम काम कर रही है, लेकिन अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है।

वीटीआर में बाघों की स्थिति

वन संरक्षक डॉक्टर नेशामणि के ने बताया कि NTCA (National Tiger Conservation Authority) के रिपोर्ट के अनुसार बाघों की संख्या 54 हो गई है। दरअसल, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में शाकाहारी जानवरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बेहतर ग्रासलैंड के साथ-साथ पानी की सुविधा बताई जा रही। बाघ अपने भोजन के अनुसार अपने वंश की वृद्धि करते हैं। ऐसे में बेहतर भोजन और आवास वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के बाघों को भाने लगा है।

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