Published On: Thu, Oct 10th, 2024

5 साल बाद फिर लौटा राजस्थान में कांगो बुखार… महिला की मौत; सरकार ने जारी किया ये अलर्ट


राजस्थान में 5 साल बाद कॉन्गो फीवर से एक मौत की पुष्टि होने के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेशभर में इस बीमारी की रोकथाम एवं बचाव के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। अहमदाबाद के एनएचएल म्यूनिसि​पल मेडिकल कॉलेज में उपचाराधीन कॉन्गो फीवर से पीड़ित जोधपुर निवासी 51 वर्षीय महिला की बुधवार को मौत हो गई। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी, पुणे में हुई जांच में महिला का सैंपल पॉजिटिव पाया गया।

निदेशक जनस्वास्थ्य डॉ. रवि प्रकाश माथुर ने बताया कि जोधपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को प्रभावित क्षेत्र में रेपिड रेस्पॉन्स टीम भेजकर संक्रमण की रोकथाम के लिए निर्देश दिए गए हैं। साथ ही, क्षेत्र में संदिग्ध एवं सिम्पटोमेटिक रोगियों की ट्रेसिंग कर उन्हें आइसोलेशन में रखने को कहा गया है।

2014 में आया था पहला मामला

उल्लेखनीय है कि जोधपुर में साल 2014 में पहला केस क्रीमियन-कांगो हेमोरेजिकफीवर (सीसीएचएफ) का आया था, जिसमें रेजिडेंसी रोड स्थित निजी अस्पताल में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ को कांगो हुआ और मौत हो गई थी। इसके बाद 2019 में तीन बच्चों में लक्षण नजर आए थे। साथ ही एम्स में दो रोगियों की मौत हुई थी। अब पांच साल बाद जोधपुर से सटे नांदडा गांव में मामला समाने आया है, जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग अलर्ट हो गया है।

यह है कारण

कांगो फीवर यानी क्रीमियन-कांगो रक्तस्रावी बुखार, यह जानवरों के शरीर पर रहने वाली टिक के काटने से होता है। इससे बचने के लिए खास तौर से जानवरों के बाड़े में कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए। जानवरों के आसपास रहने वालों को खुले में घूमते समय, शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनने चाहिए. जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, ऐसे लोगों को लगातार जानवरों के आसपास नहीं रहना चाहिए।

जानिए क्या है लक्षण

इस वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड औसतन 3 से 7 दिनों तक होता है। शुरूआती लक्षण सामान्य बुखार की तरह होते हैं। लेकिन बाद में धीरे-धीरे मांसपेशियों में दर्द, अकड़न और चक्कर आना शुरू हो जाता है। उल्टी, गले में खराश, पेट में दर्द और मूड में उतार-चढ़ाव होता है। 2 से 4 दिन के बाद मरीज डिप्रेशन का शिकार होने लगता है। वायरस का असर शरीर में फैलता है, तो अंदर ही अंदर रक्तस्त्राव होता है जो गुर्दे और लीवर को प्रभावित करता है। समय रहते एंटीवायरल ट्रीटमेंट नहीं मिलता है, तो रोगी मौत होने की आशंका ज्यादा होती है।

पिस्सू के काटने से होती है

डॉ. माथुर ने बताया कि कॉन्गो फीवर एक जूनोटिक वायरल डिजीज है, जो टिक (पिस्सू) के काटने से होती है। इसे देखते हुए पशुपालन विभाग को इस बीमारी से बचाव एवं रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा गया है। उन्होंने बताया कि प्रदेशभर में इस बीमारी की रोकथाम एवं बचाव के लिए सभी सुरक्षात्मक कदम उठाने तथा आमजन को जागरूक करने के भी निर्देश दिए गए हैं, ताकि संक्रमण का प्रसार नहीं हो। सभी निजी एवं राजकीय चिकित्सा संस्थानों को निर्देशित किया गया है कि किसी व्यक्ति में कॉन्गो फीवर के लक्षण नजर आएं तो तत्काल प्रभाव से सैम्पल लेकर जांच के लिए भिजवाएं। साथ ही, चिकित्सा विभाग को इसकी सूचना दें।

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