Published On: Wed, Jun 19th, 2024

हिना की जगह जूली दे रही थी एग्जाम: NEET में बिहार के जिस सरगना का नाम है, वह यूपी में 2021 की धांधली में भी था शामिल – Uttar Pradesh News


लखनऊ में NEET 2024 में हुई धांधली के खिलाफ प्रदर्शन करते छात्र।

NEET 2024 में धांधली का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। देशभर में छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं। पटना में 13 गिरफ्तारी हो चुकी है। 11 कैंडिडेट्स के भी नाम सामने आए हैं, जिसमें एक यूपी का है। पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाला नाम बिहार के नकल माफिया संजीव सिंह

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इसका नाम यूपी में NEET 2021 की धांधली में भी आया था। तब गैंग ने कैंडिडेट्स की जगह सॉल्वर बैठाए थे। तब उस पर FIR दर्ज नहीं हुई थी। मुखिया ने उत्तराखंड में नीट 2016 में भी पेपर लीक कराने की कोशिश की थी। उत्तराखंड पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। जमानत के बाद से ही वह फरार है। यूपी सिपाही भर्ती परीक्षा के पेपर लीक में भी इसका नाम आया था।

दैनिक भास्कर पड़ताल में हम बता रहे हैं कि 2021 की NEET परीक्षा में कैसे गड़बड़ी हुई थी, सॉल्वर गिरोह का नेक्सस कैसे काम कर रहा था? कैसे नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की तमाम सख्ती के बाद भी नकल माफिया पूरे सिक्योरिटी सिस्टम को क्रैक कर गया…

हिना की जगह जूली…यहां से धांधली का खुलासा होने लगा

12 सितंबर, 2021 को यूपी के कई जिलों में NEET की परीक्षा हुई। वाराणसी के सारनाथ थाना पुलिस को सेंट फ्रांसिस जेवियर स्कूल में परीक्षा में गड़बड़ी की सूचना मिली। पुलिस ने परीक्षा खत्म होते ही त्रिपुरा की रहने वाली हिना विश्वास नाम की एक लड़की को पकड़ा।

पुलिस पूछताछ में मामले का खुलासा हुआ। दरअसल, हिना विश्वास नाम से पेपर दे रही लड़की BHU में बीडीएस की पढ़ाई कर रही पटना निवासी जूली महतो थी। जूली ने बताया कि उसकी मां और भाई ने उसे हिना के नाम पर पेपर देने को कहा था। वह तो हिना को जानती भी नहीं थी।

पुलिस ने जूली की मां बबीता और उसके भाई विकास महतो को पकड़ा, तो बबीता ने बताया कि 5 लाख के लालच में उसने अपनी बेटी को नकल माफिया के कहने पर इस अपराध के लिए प्रेरित किया था।

अब पुलिस के सामने सवाल था कि आखिरकार ये कौन लोग हैं, जो मेधावी छात्रों को इस दल-दल में धकेल रहे थे। पुलिस ने इसकी तहकीकात की तो हैरान करने वाला खुलासा हुआ।

पटना का मास्टरमाइंड अपनी डॉक्टर बहन के साथ चला रहा था गिरोह
यूपी पुलिस के एक ऑफिसर ने बताया- जांच में पटना के रहने वाले पीके का नाम सामने आया। पीके का पूरा नाम नीलेश कुमार सिंह है। वह अपनी बहन डॉक्टर प्रिया की मदद से इस पूरे रैकेट को चला रहा था।

उसकी बहन पटना के कैंसर हॉस्पिटल में सीनियर डॉक्टर थी। इस रैकेट में पटना सचिवालय में तैनात डॉ. प्रिया का पति रितेश सिंह भी शामिल था। पुलिस ने प्रिया और रितेश को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो कड़ियां जुड़नी शुरू हुईं। डॉ. प्रिया की निशानदेही पर पुलिस लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) और वाराणसी के BHU पहुंची।

MBBS के कई सीनियर छात्र और डॉक्टर भी शामिल
पुलिस को जांच में पता चला कि KGMU में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे कई सीनियर छात्र इस रैकेट में शामिल हैं। सबसे पहले पुलिस को डॉ. अफरोज के बारे में पता चला।

वह MBBS की पढ़ाई पूरी कर लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल में पोस्टिंग पर था। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, अफरोज बलरामपुर के एक विधायक का भतीजा है। पुलिस ने उसे पकड़ा तो डॉ. ओम प्रकाश, डॉ. ओसाम शाहिद, डॉ. शरद सिंह पटेल और डॉ. गुरु प्रसाद के नाम सामने आए।

डॉ. शरद सिंह पटेल देश की कई परीक्षाओं में पेपर लीक कराने वाले राजीव नयन मिश्रा का साथी था। ये सभी NEET के पेपर में फर्जीवाड़े के मास्टरमाइंड पटना के पीके उर्फ नीलेश कुमार सिंह से जुड़े थे।

पीके के जेल जाने के बाद और एक्टिव हो गया संजीव
पुलिस के मुताबिक, 2021 में यूपी में पकड़े गए नीट सॉल्वर गिरोह के सरगना पटना निवासी नीलेश सिंह उर्फ पीके का बिहार में मजबूत नेटवर्क था। उस समय नालंदा निवासी संजीव सिंह उर्फ मुखिया पीके के गिरोह के साथ काम करता था।

संजीव और पीके एक दूसरे से जुड़े थे। संजीव पीके को परीक्षा के लिए कैंडिडेट लाकर देता था। अभ्यर्थी से पैसा वसूलने से लेकर उनकी जगह पर सॉल्वर पहुंचाने तक का काम संजीव ही करता था। इससे उसने बेशुमार दौलत कमाई थी।

बिहार पुलिस ने सारण (छपरा) जिले से नीलेश सिंह उर्फ पीके को गिरफ्तार किया था।

बिहार पुलिस ने सारण (छपरा) जिले से नीलेश सिंह उर्फ पीके को गिरफ्तार किया था।

अक्टूबर, 2021 में पीके के जेल जाने के बाद संजीव और एक्टिव हो गया। वह अपने डॉक्टर बेटे शिवकुमार और साले के साथ मिलकर पूरा गिरोह चलाने लगा। इसके पहले 2020 में उसने पत्नी ममता को लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर हरनौत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़वाया। हालांकि, ममता को JDU के हरिनारायण सिंह ने 27 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था। उस चुनाव में संजीव ने पानी की तरह पैसा बहाया था।

साॅल्वर तैयार करने से लेकर उन्हें एग्जाम सेंटर तक पहुंचाने के लिए गिरोह तीन प्लान पर काम करता था…

प्लान 1- गरीब छात्रों को फंसा कर बनाते थे सॉल्वर गिरोह का मेंबर

नकल माफिया ने सबसे पहले मोटी रकम का लालच देकर डॉक्टरों को अपनी गैंग में शामिल किया। यही डॉक्टर NEET की परीक्षा के लिए सॉल्वर का इंतजाम करते थे। इसके लिए वे आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को टारगेट करते थे।

मेडिकल स्टूडेंट्स को अपने जाल में फंसाने के लिए इनकी आर्थिक मदद करते थे। इन्हें अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खिलाना, महंगे कपड़े और गिफ्ट दिलाना, किताबें खरीदने में मदद करना और 50 हजार लिमिट तक का क्रेडिट कार्ड तक देते थे। इस तरह की मदद से छात्र इनके भरोसे में आ जाते थे।

प्लान 2- कैंडिडेट से मिलते-जुलते चेहरों को करते थे सिलेक्ट

पैसे के लालच में काम करने वाले डॉक्टर 15-20 छात्रों को जाल में फंसाने के बाद इनकी फोटो गिरोह के सरगना पीके उर्फ नीलेश को भेजते थे। फिर वह अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे अपने हैंडलर्स तक इनकी तस्वीरें भेजता था।

यहां से इन हैंडलर्स का काम शुरू होता था। ये सबसे पहले कैंडिडेट ढूंढते थे, जो NEET एग्जाम में पास होने के लिए मोटी रकम देने को तैयार हो जाएं। फिर इन कैंडिडेट्स से मिलती-जुलती शक्ल और कद काठी वाले सॉल्वर के फोटो से मिला करके गिरोह के सरगना पीके को बताते थे।

गिरोह के लोग कैंडिडेट से एडवांस में बड़ी रकम लेकर उनका फॉर्म भरवाते थे। फॉर्म में आधार कार्ड और दूसरे डॉक्यूमेंट असली कैंडिडेट के होते थे। जबकि फोटो पहले से ही एडिट कर कैंडिडेट से मिलते-जुलते चेहरे वाले सॉल्वर की होती थी।

एडमिट कार्ड आने के बाद सॉल्वर तैयार करने वाले डॉक्टरों को बताया जाता था कि कौन सा सॉल्वर किस कैंडिडेट के नाम पर कहां परीक्षा देने जाएगा।

प्लान-3 मेडिकल कालेज के छात्रों को सॉल्वर बनने के लिए तैयार करना
पीके का आदेश मिलते ही गिरोह में शामिल डॉक्टर प्लान पर काम करना शुरू करते थे। ये जाल में फंसाए गए छात्रों को बताते थे कि मेरे करीबी रिश्तेदार का पेपर देना है। केंद्र तक पहुंचाने और एग्जाम हाल में पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी होगी।

किसी को पता नहीं चलेगा। पकड़े जाने पर तुरंत छुड़ा लिया जाएगा। छात्र पहले से उनके एहसान के बोझ से दबे होने के कारण मना नहीं कर पाता और परीक्षा देने के लिए राजी हो जाता था। इसके अलावा जो नहीं मानता, उन्हें पैसे का लालच देकर जाल में फंसा लेते।

20 से 30 लाख में पास कराने का ठेका
पुलिस के मुताबिक पकड़े गए लोगों ने बताया कि गिरोह के लोग कैंडिडेट से NEET पास करवाने के 20 से 30 लाख रुपए लेते थे। इसमें सभी का हिस्सा होता था।

40 फीसदी रकम पीके उर्फ नीलेश लेता था। बाकि सभी को उनके रोल के हिसाब से पैसा बांट दिया जाता था। डॉक्टरों को एक सॉल्वर तैयार करने के लिए 5 लाख रुपए मिलते थे। इसके अलावा और खर्च गिरोह की ओर से मिलता था।

गिरोह के हर राज्य में अलग हैंडलर
इस गिरोह के हैंडलर देश के कई राज्यों में फैले हुए थे। पुलिस सूत्रों के मुताबिक त्रिपुरा में दिव्यजोति नाग और मृत्युंजय देवनाथ, पटना में विकास महतो, बबीता महतो, नीलेश उर्फ पीके और संजीव सिंह, पश्चिम बंगाल में प्रदीप्तो भौमिक, कर्नाटक में आशुतोष सिंह, यूपी में डॉ. अफरोज, विकास कुमार, ओसाम शाहिद, डॉ. शरद पटेल, कन्हैया लाल और राजस्थान में हामिद रजा।

पुलिस के मुताबिक इस गैंग में कई अन्य लोग भी शामिल थे। इस मामले में पुलिस 16 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है। कुछ अन्य आरोपी अभी भी फरार चल रहे हैं।

गिरोह में दो नाम ऐसे, जो कई पेपर लीक में शामिल
पुलिस की जांच में दो नाम ऐसे सामने आए, जो देश के कई दूसरे पेपर लीक मामले में शामिल रहे हैं। पहला नाम डॉ. शरद सिंह पटेल और दूसरा नाम कन्हैया लाल सिंह का है। दोनों मिर्जापुर के रहने वाले हैं।

कन्हैया लाल सिंचाई विभाग मे बोरिंग टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत था। उसी ने डॉ. शरद और नीलेश उर्फ पीके को मिलवाया था। डॉ. शरद के साथ कन्हैया लाल कई अन्य परीक्षाओं में नकल माफिया के साथ शामिल रहा है।

नकल माफिया जब अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाते थे, तो कन्हैया लाल परीक्षा केंद्र के कर्मचारियों को पैसे का लालच देकर मिलाता था और गिरोह की मदद करता था। इसके एवज में उसे भी मोटी रकम मिलती थी।

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