Published On: Mon, Jun 16th, 2025

हरियाणा सरकार को हाईकोर्ट से लगा झटका: VLDA के ऑनलाइन ट्रांसफर पर रोक लगाई; 2 लाख का फाइन लगाया, वॉर्निग भी दी – Haryana News

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पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट प्रतीकात्मक फोटो।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने माना है कि सीधी भर्ती के जरिए नियुक्त हुए पशु चिकित्सा पशुधन विकास सहायकों (VLDA) को उनके मिनिमम फिक्स टैन्योर के उल्लंघन में ऑनलाइन स्थानांतरण अभियान के अधीन नहीं किया जा सकता। सरकार की कार्रवाई को अवैध करार देते ह

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अन्य बातों के अलावा, उन्होंने तर्क दिया था कि उनके शामिल किए जाने से 15 अक्टूबर, 2020 की स्थानांतरण नीति का उल्लंघन हुआ है। प्राथमिक तर्क यह था कि उन्होंने अपना न्यूनतम कार्यकाल पूरा नहीं किया था और इसलिए, उनके पदों को रिक्त घोषित नहीं किया जा सकता था।

हाईकोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी

हाईकोर्ट ने सरकार के शपथपत्र नहीं दाखिल करने पर टिप्पणी करते हुए कहा, प्रतिवादी-राज्य द्वारा हलफनामे दाखिल करने के लापरवाह तरीके, लागू कानूनों और अपने स्वयं के नीतिगत निर्णयों की अनदेखी करने, जिससे कानून के लिए हानिकारक मुकदमेबाजी को बढ़ावा मिला है, पर अदालत द्वारा पहले व्यक्त की गई नाराजगी को देखते हुए, यह अदालत प्रतिवादी-राज्य पर 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाना उचित समझती है।

हाईकोर्ट ने कहा- इसलिए लगाया फाइन

हाईकोर्ट के जस्टिस भारद्वाज ने जोर देकर कहा, यह जुर्माना एक सख्त चेतावनी के रूप में लगाया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस अदालत के समक्ष भविष्य में कोई भी जवाब या हलफनामा दाखिल करने से पहले उचित सावधानी बरती जाए।

मामले में राज्य का रुख यह था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा धारित पद स्थानांतरण नीति के खंड 3(J)(iii) के तहत रिक्त माने जाएंगे, क्योंकि ऑनलाइन स्थानांतरण अभियान की अनुपलब्धता के कारण उन्हें अस्थायी रूप से तैनात किया गया था।

याचिकाकर्ता की ओर से ये दी गई दलील

याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि इस खंड को खंड 9 के साथ संयोजन में पढ़ा जाना आवश्यक है, जो विशेष रूप से सीधी भर्ती, प्रत्यावर्तन या पदोन्नति के माध्यम से की गई नियुक्तियों को नियंत्रित करता है। चूंकि याचिकाकर्ताओं को खंड 3(J)(iii) के तहत ट्रांसफर के माध्यम से नियुक्त नहीं किया गया था, इसलिए खंड 9 सीधे उनकी श्रेणी पर लागू होता है।

हाईकोर्ट के फैसले ये मेन प्वाइंट्स…

1. HC ने कहा- खंड 3(J) लागू नहीं होता

जस्टिस भारद्वाज ने फैसला सुनाया कि उनकी नियुक्ति और पोस्टिंग को स्थानांतरण नीति के खंड 9 द्वारा शासित करने का प्रस्ताव था, क्योंकि उन्हें सीधी भर्ती, प्रत्यावर्तन या पदोन्नति के माध्यम से नियुक्त किया गया था। राज्य के इस तर्क को खारिज करते हुए कि ऐसे पद रिक्त माने जाते हैं, अदालत ने स्पष्ट किया: “खंड 3(J) उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होता है जिन्हें शुरू में सीधी भर्ती, प्रत्यावर्तन या पदोन्नति के माध्यम से नियुक्त किया गया था।

2. परिवर्तन मौलिक है, ये नए अधिकार बनाता है

जस्टिस भारद्वाज ने आगे स्पष्ट किया कि 8 फरवरी, 2024 को प्रस्तावित संशोधन, जिसमें अगले तबादले अभियान में सीधे भर्ती किए गए कर्मचारियों की अनिवार्य भागीदारी की शुरुआत की गई थी, एक मौलिक संशोधन था और इसे पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं दिया जा सकता था। जस्टिस भारद्वाज ने फैसला सुनाया, “यदि संशोधन नया अधिकार या दायित्व बनाता है, तो इसे मौलिक माना जाना चाहिए। परिवर्तन मौलिक हैं और अधिकारों को समाप्त या निर्मित करते हैं।

संशोधन अपनी प्रकृति से मौलिक है, इसे केवल भावी रूप से लागू किया जा सकता है और इसे उन लोगों को प्रभावित करने के लिए पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं दिया जा सकता है जो इसके अधिनियमन से पहले ही नियुक्त किए गए थे।

3. सरकार के हलफनामे को बेशर्म बताया

HC ने कहा कि प्रतिवादी-राज्य ने प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों, उनकी प्रयोज्यता या इससे होने वाले गंभीर परिणामों की उचित जांच किए बिना जल्दबाजी में हलफनामा दायर किया, जो एक यांत्रिक दृष्टिकोण और कानूनी निहितार्थों की खराब समझ को दर्शाता है। जस्टिस भारद्वाज ने फैसला सुनाया, “यदि प्रतिवादी-राज्य द्वारा ऐसा बेशर्म हलफनामा दायर नहीं किया गया होता, तो रिट याचिकाओं का यह सिलसिला कभी नहीं उठता।

यह राज्य की प्रासंगिक तदर्थ कार्रवाइयां हैं जो अक्सर अनावश्यक मुकदमेबाजी को जन्म देती हैं, वर्तमान मामला इसका स्पष्ट उदाहरण है।” अदालत ने प्रतिवादियों को ऑनलाइन तबादला अभियान के दायरे से याचिकाकर्ताओं और उनके द्वारा संभाले गए पदों को बाहर करने का निर्देश देकर निष्कर्ष निकाला।



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