Published On: Fri, Jul 5th, 2024

सुप्रीम कोर्ट बोला-अपराधी पैदा नहीं होते, बनाए जाते हैं: हर संत का अतीत और पापी का भविष्य होता है; जाली नोटों की तस्करी का मामला


नई दिल्ली2 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अपराधी पैदा नहीं होते बल्कि बनाए जाते हैं। कोर्ट ने यह कमेंट 3 जुलाई को किया। मामले की सुनवाई जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने की।

साल 2020 का ये मामले नकली नोटों की तस्करी से जुड़ा हुआ है। NIA ने फरवरी 2020 में मुंबई के अंधेरी इलाके से 2 हजार के 1193 नकली नोटों (इंडियन करंसी) के साथ एक युवक को हिरासत में लिया था। एजेंसी ने दावा था कि इन नकली नोटों को तस्करी के जरिए पाकिस्तान से मुंबई लाया गया था।

बीते 4 साल से युवक NIA की हिरासत में है। 5 फरवरी 2024 को उसने मुंबई हाईकोर्ट में जमानत याचिका लगाई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद युवक ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। 3 जुलाई को इसी मामले पर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने सुनवाई की थी।

बेंच ने कहा- क्राइम के पीछे कई कारण होते हैं
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि अपराधी पैदा नहीं होते बल्कि बनाए जाते हैं। हर किसी में मानवीय क्षमता अच्छी होती है। इसलिए ये नहीं मानना चाहिए कि अभी जो अपराधी है वो भविष्य में सुधर नहीं सकता। अक्सर अपराधियों, किशोर (टीनेजर) और वयस्क (युवा) के साथ व्यवहार करते समय मानवतावादी मूल सिद्धांत छूट जाते हैं।

बेंच ने कहा कि जब कोई क्राइम होता है तो उसके पीछे कई कारण होते हैं। चाहे वो सामाजिक और आर्थिक हो, माता-पिता की उपेक्षा का परिणाम हो, अपनों की अनदेखी का कारण हो, विपरीत परिस्थितियों, गरीबी और संपन्नता के अभाव, लालच हो सकते हैं।

बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता बीते 4 साल से हिरासत में है। हमें आश्चर्य है कि यह केस कब खत्म होगा। बेंच ने चिंता जताते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 अपराध की प्रकृति से परे लागू होता है।

बेंच ने कहा कि अपराध चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, आरोपी को भारत के संविधान के तहत तत्काल सुनवाई का अधिकार है। समय के साथ ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट कानून के बने हुए सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने दी अपराधी को जमानत
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि तत्काल सुनवाई अपराधी का फंडामेंटल अधिकार है। एजेंसी उसकी जमानत याचिका इस आधार पर विरोध नहीं कर सकती कि अपराध गंभीर है। मामले में इसका उल्लंघन किया गया है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है।

कोर्ट ने आरोपी को मुंबई शहर नहीं छोड़ने और हर 15 दिन में NIA ऑफिस या फिर पुलिस स्टेशन में उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त पर जमानत दी। इसी मामले में आरोपी के दो साथी पहले से जमानत पर बाहर हैं।

खबरें और भी हैं…

.



Source link

About the Author

-

Leave a comment

XHTML: You can use these html tags: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>