Published On: Fri, Jul 26th, 2024

सुप्रीम कोर्ट का केरल और बंगाल के राज्यपालों को नोटिस: विधानसभा से पास बिल रोकने का मामला; केरल के 7, बंगाल के 8 बिल लटके


नई दिल्ली7 घंटे पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को केरल और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों के सचिवों और गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। नोटिस अलग-अलग याचिकाओं में के लिए दी गई है, लेकिन दोनों याचिकाएं विधानसभाओं से पास बिल रोकने को लेकर हैं।

पश्चिम बंगाल के राज्यपास सीवी आनंद बोस ने विधानसभा से पास 8 बिल रोक रखे हैं। इसी तरह केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सात बिलों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए रोक रखा है। इसके खिलाफ राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है।

‘संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति ने असंवैधानिक स्थिति पैदा की’

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने मामले से संबंधित पक्षों को नोटिस भेजकर तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जब भी इस तरह के मामलों की सुनवाई होती है, तो कुछ बिल पास कर दिए जाते हैं। उन्होंने तमिलनाडु में भी इसी तरह के मामले का जिक्र किया।

पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इससे राज्य की जनता प्रभावित हो रही है, जिनकी भलाई के लिए वे बिल लाए गए थे। गवर्नर का रवैया न केवल कानून और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है, बल्कि संविधान के मूल सिद्धांतों को हराने और खत्म करने की धमकी देने जैसा है।

याचिका में आगे कहा गया कि 2022 में पास बिल बिना किसी कार्रवाई के लटकाए जाने से राज्य विधानसभा की कार्रवाई असफल हो गई है। इस तरह से संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति ने ही असंवैधानिक स्थिति पैदा कर दी है। आगे कहा कि राज्यपाल की शक्तियों और कर्तव्यों का कोई भी हिस्सा उन्हें दो सालों से पेंडिंग बिलों को निपटाने से इनकार करने का अधिकार नहीं देता।

पश्चिम बंगाल सरकार की मांग- बिलों पर विचार करने की समयसीमा तय हो

पश्चिम बंगाल सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि गवर्नर ने अपने सेक्रेटरी को राज्य विधानसभा से पारित बिलों पर सहमति देने और साइन के लिए भेजी गई फाइलों पर विचार न करने के लिए कहा है। पश्चिम बंगाल ने गवर्नर को सेक्रेटरी के माध्यम से निर्देशित करने की अपील की है कि वे राज्य विधानसभा और सरकार के सभी लंबित बिलों और फाइलों को तय समय में निपटाएं।

याचिका में सरकारिया कमीशन की सिफारिशों और संविधान के आर्टिकल 200 के तहत विधानमंडल से पास और सहमति के लिए गवर्नर को भेजे बिलों पर विचार करने की अधिकतम समय सीमा निर्धारित करने का दिशानिर्देश जारी करने की मांग भी की है।

वहीं, केरल सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट केके वेणुगोपाल ने कहा कि बिल आठ महीने से पेंडिंग हैं। गवर्नर मनमाने तरीके से बिलों को लंबे समय तक रोके हुए हैं।

बीते साल नवंबर में पंजाब और तमिलनाडु सरकार ने भी इसी तरह की याचिका लगाई थी। तब सीजेआई ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि गवर्नर इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें जनता ने नहीं चुना है। ऐसे में जनहित में लाए गए बिलों में देरी करना ठीक नहीं है।

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