वो गांव, जहां रहते हैं कई हिंदू परिवार, लेकिन पहली बार हुआ दाह संस्कार, ऐसे होता था अंतिम संस्कार!

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ब्यावर के ग्राम मकरेड़ा के चीतों का बाड़िया में पहली बार किसी का दाह संस्कार किया गया. गांव में कई हिंदू परिवार रहते हैं लेकिन रिवाजों के आधार पर यहां मिट्टी दाग देने की परंपरा थी. पहली बार किसी का दाह संस्कार कि…और पढ़ें

अंतिम यात्रा में पुलिस को भी होना पड़ा शरीक (इमेज- फाइल फोटो)
राजस्थान के ब्यावर जिले के मकरेड़ा गांव के चीतों का बाड़िया में एक मृत्यु ने परंपरा और व्यक्तिगत इच्छा के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर दी. गुरुवार, 29 मई 2025 को एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद जहां गांव की परंपरा मृतक को दफनाने (मिट्टी दाग) की थी, वहीं मृतक के पुत्र ने दाह संस्कार (अग्नि द्वारा अंतिम संस्कार) करने की इच्छा जताई. इस विवाद को सुलझाने के लिए स्थानीय प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की और श्मशान भूमि चिह्नित कर परिवार की इच्छा के अनुरूप अंतिम संस्कार करवाया. इस घटना ने न केवल स्थानीय समुदाय में चर्चा छेड़ दी बल्कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन की जरूरत को भी उजागर किया.
जानकारी के अनुसार, चीतों का बाड़िया में मृत्यु के बाद परिवार और समुदाय के बीच अंतिम संस्कार की विधि को लेकर मतभेद उभर आए. गांव में लंबे समय से मिट्टी दाग देने की परंपरा रही है, जिसमें मृतक के शव को नमक और अन्य सामग्री के साथ दफनाया जाता है, ताकि आत्मा को अगले जन्म की यात्रा में आसानी हो. यह प्रथा विशेष रूप से कुछ समुदायों में प्रचलित है, जहां मृतक के साथ पंचरत्नी, फूल और अन्य सामग्री दफनाई जाती है. हालांकि, मृतक के पुत्र ने हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में शामिल दाह संस्कार को प्राथमिकता दी, जिसमें शव को अग्नि के हवाले किया जाता है ताकि आत्मा शरीर के मोह से मुक्त हो सके.
प्रशासन को आना पड़ा बीच में
इस टकराव की सूचना मिलते ही स्थानीय विधायक शंकर सिंह रावत, तहसीलदार हनुत सिंह रावत, डीएसपी राजेश कसाना और सदर थाना प्रभारी गजराज मय जाब्ता मौके पर पहुंचे. प्रशासन ने स्थिति को संभाला और श्मशान भूमि की कमी को देखते हुए तत्काल एक उपयुक्त स्थान चिह्नित किया. तहसील प्रशासन ने परिवार की इच्छा को प्राथमिकता देते हुए दाह संस्कार की व्यवस्था की, जिसमें प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद रहे.
मिट्टी दागने की थी परंपरा
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार (अंत्येष्टि) सोलह संस्कारों में से एक है, जिसका उद्देश्य आत्मा को पंचतत्वों में विलीन करना और उसे मोक्ष की ओर अग्रसर करना है. गरुड़ पुराण के अनुसार, दाह संस्कार से आत्मा शरीर के मोह से मुक्त होती है जबकि बच्चों और साधु-संतों को दफनाने की प्रथा है क्योंकि उनकी आत्मा में मोह-माया का बंधन कम होता है. मकरेड़ा के इस मामले में मिट्टी दाग की परंपरा संभवतः स्थानीय सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ी थी लेकिन मृतक के पुत्र की इच्छा ने आधुनिक हिंदू रीति-रिवाजों को प्राथमिकता दी.
समाज में हुई तकरार
इस घटना ने स्थानीय समुदाय में कई सवाल खड़े किए हैं. सामाजिक कार्यकर्ता रमेश मीणा ने कहा, “परंपराएं हमारी पहचान हैं लेकिन व्यक्तिगत इच्छा और धार्मिक मान्यताओं का भी सम्मान जरूरी है. प्रशासन ने इस मामले में संवेदनशीलता दिखाई.” दूसरी ओर, कुछ ग्रामीणों का मानना है कि मिट्टी दाग की प्रथा को बनाए रखने के लिए श्मशान भूमि के साथ-साथ दफन स्थल भी चिह्नित किए जाने चाहिए. हाल के वर्षों में, राजस्थान में परंपरागत और आधुनिक अंतिम संस्कार प्रथाओं के बीच टकराव के कई मामले सामने आए हैं. प्रशासन की इस त्वरित कार्रवाई ने न केवल परिवार को उनकी इच्छा के अनुसार अंतिम संस्कार करने का अवसर दिया बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में श्मशान सुविधाओं की कमी को भी उजागर किया. विधायक शंकर सिंह रावत ने आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचने के लिए क्षेत्र में श्मशान भूमि की व्यवस्था को और मजबूत किया जाएगा. यह घटना परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करती है, साथ ही प्रशासन की संवेदनशीलता को भी दर्शाती है.

न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.
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