Published On: Fri, Jun 13th, 2025

वर्मी कंपोस्ट ने भीलवाड़ा के किसान की बदली किस्मत, अब खाद बेचकर कर रहे हैं तगड़ी कमाई


भीलवाड़ा. आमतौर पर जब पारंपरिक खेती में मुनाफा नहीं होता, तो किसान खेती छोड़ने या रोजगार बदलने का विचार करते हैं. लेकिन भीलवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव के युवा किसान सुशील उपाध्याय ने न केवल खेती से जुड़ाव बनाए रखा, बल्कि अपनी मेहनत, लगन और नवाचार से जैविक खेती को एक नई दिशा दी. सुशील का परिवार पारंपरिक खेती करता आ रहा था, मगर वर्षों की मेहनत के बाद भी उन्हें मुनाफा नहीं मिल रहा था. इसी दौरान उन्होंने जैविक खेती की ओर रुख किया. शुरुआत खीरा और ककड़ी जैसे नकदी फसलों से की, लेकिन जैविक खेती में रासायनिक खाद की जगह प्राकृतिक खाद की जरूरत महसूस हुई. यहीं से उन्हें वर्मी कंपोस्ट यानी केंचुआ खाद की प्रेरणा मिली.

सुशील ने अपने खेत में 30 वर्मी कंपोस्ट बेड तैयार किए, जिस पर लगभग 4 लाख रुपये का निवेश किया. हर बेड में करीब तीन महीने में खाद तैयार हो जाती है. यह खाद वह अपनी फसलों में उपयोग करते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी हुई. इसके अलावा, इस जैविक खाद की बाजार में भी अच्छी मांग है. सुशील अब तक लाखों रुपये की खाद बेच चुके हैं, जिसे आस-पास के ग्रीनहाउस में खेती करने वाले किसान पसंद कर रहे हैं.

4 लाख में बनाए 30 बेड

सुशील उपाध्याय बताते हैं कि उनका परिवार पहले पारंपरिक खेती करता था, लेकिन उसमें मुनाफा नहीं हो रहा था. इसके बाद उन्होंने जैविक खेती करने की सोची और खीरा-ककड़ी की फसल लगाई. इसमें खाद की जरूरत भी अच्छी खासी पड़ती थी. पिछले साल से उन्होंने वर्मी कंपोस्ट बनाना शुरू किया और अपनी फसल में खुद की बनाई केंचुआ खाद इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. केंचुआ खाद को खेत में ही तैयार करने के लिए 30 बेड बनाए, जिनमें लगभग 4 लाख रुपये का खर्च हुआ. इन बेड में तीन महीने में केंचुआ खाद बनकर तैयार हो जाती है. इस खाद को अपनी फसलों में इस्तेमाल करने के साथ-साथ लोगों की मांग के अनुसार बेचते भी हैं. उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने डेढ़ लाख रुपये कीमत का केंचुआ खाद तैयार किया है, जिसे आस-पास के ग्रीनहाउस में खेती करने वाले किसान खरीद कर ले जाते हैं. खेती के साथ इन सभी सामाजिक कार्यों को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा जिला स्तर पर उन्हें सम्मानित भी किया गया है.

केंचुआ खाद बनाने की दे रहे हैं ट्रेनिंग

प्रगतिशील किसान सुशील उपाध्याय क्षेत्र के किसानों को जैविक खेती के फायदे बताने के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता का केंचुआ खाद तैयार करना भी सिखा रहे हैं. फिर इस खाद को किस तरह फसल में उपयोग करना है, यह भी बता रहे हैं. उन्होने बताया कि केंचुआ खाद पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है. यह केंचुआ कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है. वर्मी कंपोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते हैं. साथ ही वातावरण प्रदूषित नहीं होता है. बेड पर केंचुए को डालने के बाद उसके ऊपर गोबर और कचरे को डाला जाता है. तीन महीने में केंचुआ खाद तैयार हो जाती है.

कृषि विभाग ने भी किया है सम्मानित

सुशील उपाध्याय मानते हैं कि वर्मी कंपोस्ट हर किसान के लिए वरदान है. यह खाद पोषक तत्वों से भरपूर होती है और जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है. इसमें कोई रासायनिक अवशेष नहीं होता, जिससे न तो पर्यावरण को नुकसान होता है और न ही मक्खी-मच्छरों जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. सुशील की इस पहल को कृषि विभाग ने भी सराहा है. जिला स्तर पर उन्हें सम्मानित किया गया है, जिससे अन्य किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है. सुशील ना सिर्फ अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, जैविक उत्पादन और ग्रामीण क्षेत्र के विकास में भी योगदान दे रहे हैं.

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