लाहौर समझौता… पाक का ऑपरेशन बद्र, मुशर्रफ के चलते गई हजारों सैनिकों की जान!

Operation Badr: दुनिया को दिखाने के लिए पाकिस्तान ने भले ही शांति और स्थिरता के मुद्दे पर सहमति जताते हुए 21 फरवरी 1999 को लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन असल में उसके जहन में एक बेहद खतरनाक मंसूबा पल रहा था. इस खतरनाक मंसूबे का नाम था ऑपरेशन बद्र, जो तत्कालीन पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के दिमाग की उपज थी. यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि लाहौर समझौते में हस्ताक्षर होने के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ नियंत्रण रेखा पर पहुंच गए थे.
दरअसल, उस समय नियंत्रण रेखा पर जनरल मुशर्रफ के पहुंचने की वजह सिर्फ-सिर्फ ऑपरेशन बद्र को अंजाम देने के लिए निकले पाकिस्तानी सेना के सैनिकों से मुलाकात थी. जनरल मुशर्रफ ने इस ऑपरेशन की शुरूआत जमात-ए-इस्लामी की मदद से लाहौर में दंगे फैलाकर की थी. जिहादी तत्त्वों के साथ मिलकर पाकिस्तान के तमाम शहरों पर दंगा भड़काने का मकसद यह असहसास दिलाना था कि भारत-पाकिस्तान सरकार के बीच हुए लाहौर समझौते का पाकिस्तानी सेना से कोई लेना देना नहीं है.
ऑपरेशन बद्र की अगली कड़ी में पाकिस्तानी सेना ने जिहादी तत्वों और अपने हमदर्दों के साथ मिलकर जम्मू और कश्मीर में हिंसा भड़काना शुरू कर दी. उस दौरान, इस बात के सबूत के तौर पर इंडियन आर्मी इंटेलिजेंस ने कई ऐसे रेडियो मैसेज पकड़े थे, जिसमें जम्मू और कश्मीर के फैले जिहादी तत्वों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं के बीच बातचीत का ब्यौरा था. पाकिस्तानी सेना के इशारे पर राजौरी जिला के बेला तिलाला में 20 फरवरी 1999 को बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम दिया गया.
3 महीने, 618 आतंकी हमले और 487 की गई जान
बेला तिलाला की इस आतंकी वारदात में एक बारात में शामिल हिन्दुओं की बेहरमी से हत्या कर दी गई. इसके बाद, मोरा पुट्टा में चार अन्य लोगों को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया. पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने इन घटनाओं का जिक्र अपनी किताब ‘कारगिल-एक अभूतपूर्व विजय’ में करते हुए लिखा है कि 1999 में फरवरी से अप्रैल के बीच जम्मू और कश्मीर में हिंसा की 618 आतंकी वारदातें हुई, जिनमें 487 नागरिक, सुरक्षा बल के जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
साजिशन जम्मू और कश्मीर में शुरू की गई हिंसा
पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक के अनुसार, इन तीन महीनों में हुई इन वारदातों की संख्या बीते वर्ष इसी समयावधि में हुई आतंकी वारदातों की तुलना में बहुत अधिक थीं. सैन्य विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान सेना के इशारे पर ये सभी आतंकी वारदातें सिर्फ भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों को उलझाए रखने के मसकद से की जा रही थीं. शायद इसी समयावधि के दौरान, घुसपैठिए के भेष में आई पाकिस्तानी सेना ने कारगिल की चोटियों में अपने पैर पसारे थे.
और ऑपरेशन बद्र ने ले लिया कारगिल युद्ध का रूप
दरअसल, पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन बद्र के तहत अपने सैनिकों को कारगिल की चोटिंयों तक पहुंचाया था. वहीं 3 मई 1999 को भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना के इन नापाक इरादों के बाबत पता चल गया. और इसके बाद, कारगिल युद्ध की शुरूआत हो गई. दो महीने, तीन सप्ताह और दो दिन इस युद्ध को भारतीय सेना के जांबाजों ने 26 जुलाई 1999 तक अंजाम तक पहुंचा दिया और पाकिस्तान से आए हर दुश्मन को चुन चुन कर उनके अंजाम तक पहुंचा दिया गया. और इस तरह इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के जनरल मुशर्रफ की एक जिद की वजह से पाक सेना के चार हजार से अधिक जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
फरवरी से अप्रैल के बीच की कुछ बड़ी आतंकी वारदातें
- 27 फरवरी 1999: कुपवाड़ा की एक पुलिस चौकी से पाँच पुलिस कर्मियों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई. इसी दिन, अनंतनाग के कोकरनाग इलाके में आतंकियों ने सैनिकों से भरी बस को निशाना बनाया, जिसमें पांच जवानों की शहादत हुई.
- 16 मार्च 1999: गंदरेवल में आधा दर्जन आतंकियों ने पुलिस छावनी पर धावा बोल दिया. इस हमले में तीन पुलिसकर्मी की शहादत हुई और कई घायल हो गए.
- 28 मार्च 1999 : पूँछ में विदेशी आतंकियों ने एक घर में घुसकर पहले पिता-पुत्र की नाक और कान काट कर हत्या कर दी. इसी दिन, अनंतनाग में आतंकियों ने भीड़भाड़ वाले इलाके में ग्रेनेड से हमला कर दिया. इस हमले में नौ महिलाओं सहित 28 लोगों को जख्मी हो गए थे.
- 20 अप्रैल 1999 : राजौरी के बाजार में हुए आईईडी ब्लास्ट में पांच लोगों की जान चली गई और 19 लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए.
- 29 अप्रैल 1999: कुपवाडा के क्रेशिपोरा गांव में आतंकियों ने 9 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी.
Tags: Kargil war, Know your Army
FIRST PUBLISHED : July 11, 2024, 07:32 IST