Published On: Sat, Jul 6th, 2024

लालू अभी क्यों करने लगे मोदी सरकार के गिरने की भविष्यवाणी? नीतीश से जुड़ी आस | – News in Hindi – हिंदी न्यूज़, समाचार, लेटेस्ट-ब्रेकिंग न्यूज़ इन हिंदी


भोजपुरी की एक कहावत है- खेलेब ना खेलाएब, खेलवे बिगाड़ देब. भाषिक फेर-बदल के साथ देश के दूसरे आंचलों में भी यकीनन इस भाव के मुहावरे जरूर होंगे. इसका सपाट अर्थ यही हुआ कि बना नहीं सकते, पर बिगाड़ने से पीछे नहीं हटेंगे. बिहार में यही मुहावरा चरितार्थ किया है भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे ने… इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट काट दिया तो इससे उनके भीतर भरा गुस्सा अब लावा बन कर बाहर आ रहा है.

नीतीश की बैशाखी पर मोदी सरकार

अश्विनी चौबे को यह अच्छी तरह पता है कि केंद्र में भाजपा को अपने नेता नरेंद्र मोदी का मान बचाए रखने के लिए एक-दो सांसदों वाली पार्टियों की भी कितनी जरूरत है. भाजपा की मजबूरी का आलम यह कि अपनी पार्टी के इकलौते सांसद को भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह देने की मजबूरी है. ऐसे में बिहार में भाजपा के बराबर 12 संसदीय सीटों पर जीतने वाले पुराने साथी दल जेडीयू की इच्छा जानते हुए भी चौबे जी ने नीतीश को बिदकाने का पूरा बंदोबस्त कर दिया. यह तो खैरियत है कि साथ-सहयोग की सारी बतकही भाजपा और जेडीयू का शीर्ष नेतृत्व ही करता है. मोदी, शाह और नड्डा जैसे नेता अगर भाजपा की रणनीति बनाते हैं तो जेडीयू में नीतीश कुमार के अलावा यह काम दूसरा कोई नहीं करता. अगर अश्विनी चौबे जैसे नेताओं की सलाह पर भाजपा चलती तो उनके हाल में आए बयान के बाद जेडीयू का तलाक लेना तय था.

बिदक कर साथ छोड़ते रहे हैं नीतीश

जेडीयू के लिए भाजपा का साथ छोड़ना कोई नई बात नहीं है. वर्ष 2013 में नीतीश कुमार की नाराजगी का खामियाजा 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा भोग चुकी है. 2022 में भी भाजपा को इसका एहसास नीतीश कुमार करा चुके हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में जब 43 विधायकों वाले नीतीश कुमार को भाजपा ने बड़ी पार्टी होने के बावजूद अगर सीएम की कुर्सी पर बिठाया तो यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की समझदारी थी. पर, भाजपा के प्रदेश स्तर के नेताओं ने नीतीश को यह एहसास कराना शुरू कर दिया कि वे भाजपा की कृपा पर मुख्यमंत्री बने हुए हैं. उसका परिणाम पार्टी को 2022 में भोगना पड़ा.

बेमन से ही सही, नीतीश कुमार को लालू प्रसाद यादव की पार्टी से हाथ मिलाना पड़ा. भाजपा हाथ मलती रह गई. यह तो भला हो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का, जिसने नीतीश को मना-समझा कर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस साल फिर से साथी बना लिया.

इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश अगर भाजपा के साथ नहीं होते तो लोकसभा चुनाव का परिणाम बिहार में कैसा होता. भाजपा से एक सीट कम पर लड़ कर जेडीयू बराबरी पर खड़ा हो गया. 17 पर लड़ कर भाजपा ने 12 जीतीं तो जेडीयू ने 16 में 12 सीटें जीतीं.

अश्विनी भाजपा का नेतृत्व चाहते हैं

अश्विनी चौबे का मानना है कि बिहार में एनडीए तो रहे, लेकिन विधानसभा का चुनाव भाजपा के नेतृत्व में हो. सरकार भी भाजपा के नेतृत्व में ही बननी चाहिए. बिहार में नीतीश ने जब-जब एनडीए या महागठबंधन की सरकार बनाई, नेतृत्व अपने पास रखने की उनकी पहली शर्त रही है. न सिर्फ वे नेतृत्व करते रहे हैं, बल्कि कामकाज में उन्हें सहयोगियों की दखलंदाजी भी बर्दाश्त नहीं होती. आरजेडी के साथ रहे और उसकी दखलंदाजी बढ़ी तो नीतीश को साथ छोड़ते भी देर नहीं लगी. भाजपा का साथ भी उन्होंने 2022 में इसीलिए छोड़ा कि उनके कामकाज पर सवाल उठाए जाने लगे.

प्रदेश स्तर से इतर है चौबे का बयान

भाजपा में फिलवक्त पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सम्राट चौधरी का कद अश्विनी चौबे से बड़ा है. डेप्युटी सीएम होने के नाते विजय कुमार सिन्हा भी अश्विनी चौबे पर भारी हैं. उनके कुछ कहने में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की सहमति हो सकती है. दोनों कह चुके हैं कि 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा तो अश्विनी चौबे को कैंची की तरह अनायास इस मुद्दे पर जुबान चलाने का क्या औचित्य है! हां, उन पर बना खेल बिगाड़ने का तोहमत जरूर लग गया है. वैसे ही भाजपा और जेडीयू में बेहतर सामंजस्य न बन पाने के कारण लोकसभा चुनाव में एनडीए को अपनी नौ सीटें गंवानी पड़ी हैं. विधानसभा चुनाव के पहले ऐसी बातें होती रहीं तो उसके नतीजे का भी अनुमान लगा लेना चाहिए.

लालू को नीतीश के बिदकने की आस

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा और जेडीयू के बीच जिस तरह समन्वय-सामंजस्य का अभाव दिखा, वैसे में अश्विनी चौबे के बयान से निश्चित ही नीतीश बिदकेंगे. उनके बिदकने का अर्थ यही हुआ कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार को समर्थन दे रहे रहा जेडीयू पैर खींच सकता है. ऐसा हुआ तो मोदी सरकार गिर जाएगी.

लालू यादव ने तो इसका समय भी तय कर दिया है. आरजेडी के स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने भविष्यवाणी कर दी कि मोदी सरकार अगस्त में गिर जाएगी. जाहिर है कि मोदी सरकार गिरेगी तो बिहार में भी इसका असर होगा. यानी नीतीश कुमार फिर पाला बदल सकते हं. वैसे भी भाजपा को केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद से ही इंडिया ब्लाक के नेता लगातार नीतीश पर डोरे डालते रहे हैं. इन नेताओं को अब भी उम्मीद है कि नीतीश को जिस तरह बिदकाने की कोशिश हो रही है, अगर उस पर अंकुश नहीं लगा तो उनका पाला बदलना कोई नई बात नहीं होगी.

लालू पहले भी मौके का लाभ लेते रहे

लालू यादव पहले भी भाजपा-जेडीयू की कटपट का लाभ उठाते रहे हैं. अगर नीतीश कुमार ने 2005 से साथी रहे भाजपा को दो मौकों पर गच्चा दिया तो इसका लाभ लालू यादव की पार्टी आरजेडी को ही मिला. पहली बार 2013 में भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को पीएम का चेहरा बनाए जाने से नीतीश बिदके थे और साथ छोड़ दिया था. 2014 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने अकेले लड़ा. उल्लेखनीय कामयाबी नहीं मिली तो 201 में लालू ने नीतीश को अपने साथ जोड़ लिया. विधानसभा चुनाव में लालू-नीतीश की पार्टियों ने सरकार बना ली थी.

दूसरी बार लालू ने 2022 में नीतीश को पटाया. तब भाजपा हाथ मलती रह गई और बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गई. बड़े जुगत से इस साल भाजपा ने नीतीश को अपने साथ जोड़ा है. ऐसे में अश्विनी चौबे का बयान भाजपा और जेडीयू के बीच दरार डालने का कारण बन सकता है. ऐसा हुआ तो केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका होगा. शायद इसी आशंका को भांपते हुए लालू ने अगस्त में मोदी सरकार के पराभव की घोषणा कर दी है.

ब्लॉगर के बारे में

ओमप्रकाश अश्क

प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने बांधे रखा. अब रांची में रह कर लेखन सृजन कर रहे हैं.

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