रेलवे सेफ्टी कमिश्नर बोले- कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसा होना तय था: खामियां ही इतनी थीं; ट्रेन 15 की स्पीड से चलानी है, ड्राइवरों को पता ही नहीं था

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नई दिल्ली2 घंटे पहले
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दार्जिलिंग में 17 जून को मालगाड़ी ने कंजनजंगा एक्सप्रेस को पीछे से टक्कर मार दी थी। इस हादसे में मालगाड़ी के लोकोपायलट समेत 10 की मौत हुई थी।
रेलवे सेफ्टी कमिशनर ने पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में 17 जून को कंचनजंगा एक्सप्रेस और मालगाड़ी की टक्कर मामले की जांच पूरी कर ली है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऑटो सिग्नल क्षेत्रों में ट्रेन परिचालन प्रबंधन में कई लेवल पर खामियों, लोको पायलट और स्टेशन मास्टर को उचित परामर्श न दिए जाने से कंचनजंघा एक्सप्रेस हादसा होना तय ही था।’
रिपोर्ट के मुताबिक, हादसे के दिन वहां से गुजरने वाले अधिकतर लोको पायलटों को इसकी जानकारी ही नहीं थी कि खराब सिग्नल में ट्रेन 15 किमी प्रति घंटे की स्पीड से चलानी है। दार्जिलिंग में 17 जून को हुए हादसे में मालगाड़ी के लोकोपायलट समेत 10 लोगों की मौत हुई थी।

कमिशनर ने ट्रेनों में प्राथमिकता के साथ ऑटोमेटिक ट्रेन सुरक्षा प्रणाली (कवच) लगाने की सिफारिश भी की है। इसमें कहा गया है कि संबंधित अधिकारियों ने मालगाड़ी के लोको पायलट को गलत पेपर अथॉरिटी या टी/ए 912 जारी कर दिया। इसमें उस गति का उल्लेख नहीं था जिस पर मालगाड़ी चलानी थी।
इसके अलावा, सिग्नल खराब होने पर भी मालगाड़ी और कंचनजंगा एक्सप्रेस के अलावा 5 अन्य ट्रेनों ने प्रवेश किया। हालांकि, कंचनजंगा को छोड़कर किसी भी ट्रेन ने 15 किमी प्रतिघंटा की गति और खराब सिग्नल पर रुकने के रेलवे के नियम का पालन नहीं किया। इससे पता चलता है कि खराब सिग्नलिंग पर जारी होने वाले प्रोटोकॉल में क्या करना है इसे लेकर कोई स्पष्टता ही नहीं थी।
दावा- जब हादसा हुआ, उसके 3 घंटे पहले से सिग्नल खराब था
- न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, रानीपात्रा रेलवे स्टेशन और छत्तर हाट जंक्शन के बीच ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम सुबह 5.50 बजे से ही खराब था। कंचनजंगा एक्सप्रेस सुबह 8:27 बजे रंगापानी स्टेशन से रवाना हुई और रानीपात्रा स्टेशन से छत्तर हाट के बीच रुकी रही।
- जब सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी आती है तो स्टेशन मास्टर TA-912 रिटन अथॉरिटी जारी करता है। यह ड्राइवर को खराबी के कारण सभी रेड सिग्नल पार करने का अधिकार देता है। रानीपात्रा के स्टेशन मास्टर ने कंचनजंगा एक्सप्रेस को TA-912 जारी किया था। ट्रेन 10 मिनट यहां रुकी रही। 8:42 बजे रंगापानी से निकली मालगाड़ी 8.55 पर कंचनजंगा एक्सप्रेस से भिड़ गई।
- सूत्रों के मुताबिक, केवल जांच से ही पता चल सकता है कि क्या मालगाड़ी को खराब सिग्नल को तेज गति से पार करने के लिए TA-912 भी दिया गया था या यह लोको पायलट की गलती थी, जिसने डिफेक्टिव सिग्नल नॉर्म का उल्लंघन किया।
- यदि दूसरी कंडीशन अप्लाय होती है तो रेलवे के नियम के मुताबिक, ड्राइवर को हर डिफेक्टिव सिग्नल पर एक मिनट के लिए ट्रेन को रोकना चाहिए था। इतना ही नहीं, इस दौरान ट्रेन की स्पीड भी 10 किमी प्रति घंटे की होनी चाहिए थी।
हादसे की पांच तस्वीरें…

कंचनजंगा एक्सप्रेस के सबसे पीछे की बोगी मालगाड़ी के इंजन पर चढ़कर हवा में लटक गई।

मालगाड़ी के इंजन से पैसेंजर ट्रेन के पांच डिब्बों को नुकसान पहुंचा था।

मालगाड़ी पोर्ट पर इस्तेमाल होने वाले भारी वैगन बॉक्स लेकर जा रही थी।

हादसे में एक डिब्बा चकनाचूर हो गया। इसी में जान-माल का नुकसान हुआ।

सेना, NDRF, SDRF, स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों ने 5 घंटे बाद रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा किया।
4 रातों से सोया नहीं था मालगाड़ी का लोको पायलट
कंचनजंगा ट्रेन दुर्घटना के बाद से रेलवे बोर्ड ने भी दावा किया था कि लोको पायलट ने रंगापानी स्टेशन से टीए 912 अथॉरिटी पास लेने के बाद मालगाड़ी को खराब सिग्नलों के बीच तय लिमिट से ज्यादा गति से निकाला, इसलिए हादसा हुआ।
इस पर ऑल इंडिया रनिंग लोको स्टाफ एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एसएस ठाकुर ने दैनिक भास्कर को बताया कि सिग्नल फेल होने पर जिस वैकल्पिक फार्म टीए 912 के जरिए ट्रेनें चलाई जाती हैं, उससे जुड़ा नियम ये भी है कि जब तक आगे वाली ट्रेन अगला स्टेशन पार न कर ले, तब तक दूसरी ट्रेन को पिछले स्टेशन से आगे नहीं बढ़ाते हैं।
रंगापानी स्टेशन पर यही गलती हुई। यहां के स्टेशन मास्टर ने कंचनजंगा के आगे बढ़ने के 15 मिनट बाद ही मालगाड़ी को टीए 912 पेपर दे दिया था। जबकि उस वक्त कंचनजंगा एक्सप्रेस कुछ किमी आगे ट्रैक पर खड़ी थी। स्टेशन मास्टर की इस गलती की भी जांच होनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जिस लोको पायलट पर हादसे का दोष मढ़ा जा रहा है, वो लगातार 4 रातों से सोया नहीं था। जबकि नियम अधिकतम लगातार 2 रात ड्यूटी का है। सिग्नल खराब होने की स्थिति में लोको पायलट्स को गाड़ी कैसे चलानी है, इसकी पर्याप्त ट्रेनिंग नॉर्थ-ईस्ट जोन के लोको स्टाफ को आज तक नहीं दी गई है।
मालागाड़ी की रफ्तार 78 किमी प्रति घंटा थी
ठाकुर ने आगे कहा कि लोको पायलटों को दोषी बताने की परंपरा पुरानी है। ओडिशा में हुए कोरोमंडल रेल हादसे के बाद कहा गया कि लोको पायलट और को-पायलट मोबाइल पर क्रिकेट देख रहे थे, इसी वजह से वो सिग्नल नहीं देख पाए। जबकि, कमिश्नर सेफ्टी की जांच में पता चला कि हादसे के दो घंटे पहले से दोनों के फोन स्विच ऑफ थे।
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के मुख्य सुरक्षा आयुक्त जनक कुमार गर्ग ने दावा किया कि स्पीडोमीटर की शुरुआती जांच में पता चला है कि हादसे के वक्त मालगाड़ी की रफ्तार 78 किमी प्रति घंटा थी।
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पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी का रंगापानी हाल्ट। यहां सोमवार सुबह 8.55 बजे अगरतला से सियालदह जाने वाली कंजनजंगा एक्सप्रेस खड़ी थी। तभी उसमें सवार यात्रियों को बहुत तेज झटका लगा और धमाके जैसी आवाज सुनाई दी। दरअसल, कंजनजंगा एक्सप्रेस को एक मालगाड़ी ने पीछे से टक्कर मारी थी। पूरी खबर पढ़ें…