यहां बना है कुत्ते का मंदिर, सुबह-शाम होती है आरती, मन्नत लेकर दूर-दूर से आते हैं भक्त!

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जयपुर से 80 किमी दूर सांभर झील किनारे एक अनोखा मंदिर चर्चा का विषय बना हुआ है. ये मंदिर किसी देवी-देवता का नहीं, बल्कि कुत्ते का है.यहां कुत्ते की समाधि पर सिंदूर-चांदी से सजावट, आरती और भोग लगता है. महिला पुजा…और पढ़ें

लोगों की आस्था का केंद्र बना ये अनोखा मंदिर (इमेज- फाइल फोटो)
राजधानी जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर नमक नगरी सांभर में एक ऐसा मंदिर है, जो अपनी अनोखी परंपरा के लिए देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है. सांभर झील के किनारे, शहर से 7 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर में न कोई भव्य मूर्ति है, न ही सोने-चांदी का वैभव बल्कि यहां एक प्रतीकात्मक कुत्ते की समाधि की पूजा होती है. इस मंदिर में कुत्ते को देवता की तरह पूजा जाता है, आरती की जाती है, अगरबत्ती जलाई जाती है और भोग लगाया जाता है. मंदिर की देखरेख 72 वर्षीय महिला पुजारी संतोष देवी करती हैं, जो इस अनोखी परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं. यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है, जिसके कारण दूर-दूर से भक्त मन्नतें लेकर यहां पहुंचते हैं.
सांभर से फुलेरा जाने वाले सड़क मार्ग पर स्थित यह मंदिर साधारण चबूतरे-नुमा संरचना के रूप में है, जहां कोई वास्तविक कुत्ते की मूर्ति नहीं है. इसके बजाय, एक प्रतीकात्मक मूर्ति को सिंदूर और चमकदार चांदी की पन्नी से सजाया जाता है. मंदिर के बगल में लोक देवता पीथा बाबा महाराज का मंदिर भी स्थित है, जिनके साथ इस कुत्ते की कहानी जुड़ी है. स्थानीय मान्यता के अनुसार, करीब 200 साल पहले संत पीथा राम अपनी शादी का सामान खरीदने सांभर की मंडी आए थे. उनके साथ उनका वफादार कुत्ता और एक मुस्लिम धर्म भाई भी था. सामान खरीदकर पीथा राम बैलगाड़ी से गांव लौट रहे थे, जब सांभर झील के किनारे डकैतों ने उन पर हमला कर दिया और सारा सामान लूट लिया. इस हमले में पीथा राम की मृत्यु हो गई लेकिन उनके वफादार कुत्ते ने भागकर उनके धर्म भाई को इसकी सूचना दी. इस वफादारी की कहानी ने लोगों के दिलों को छू लिया और तब से इस कुत्ते की समाधि को पूजनीय माना जाने लगा.
भक्ति की असली मिसाल
मंदिर की पुजारी संतोष देवी बताती हैं कि यह कुत्ता पीथा बाबा का सच्चा साथी था, जिसने अपनी जान देकर स्वामी भक्ति का उदाहरण पेश किया. इसलिए पीथा बाबा के मंदिर में आने वाले भक्त इस कुत्ते की समाधि पर भी माथा टेकते हैं और मन्नत मांगते हैं. भक्तों का मानना है कि यहां पूजा करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, चाहे वह स्वास्थ्य, धन, या पारिवारिक सुख की कामना हो. मंदिर में अगरबत्ती जलाने और परिक्रमा करने की परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है.
झील भी है खास
सांभर झील, जो भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है, न केवल नमक उत्पादन और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इस तरह की अनोखी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए भी जानी जाती है. यह झील पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. महाभारत में इसका उल्लेख देवयानी तीर्थ सरोवर के रूप में मिलता है और स्थानीय किंवदंती के अनुसार शाकंभरी माता के श्राप से यहां का सोना-चांदी नमक में बदल गया. इस झील के किनारे शाकंभरी माता का प्राचीन मंदिर भी स्थित है, जो चौहान वंश की कुलदेवी का शक्तिपीठ माना जाता है. यह कुत्ते का मंदिर भारत में अपनी तरह का एकमात्र नहीं है. कर्नाटक के चन्नापटना, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और झांसी में भी कुत्तों को समर्पित मंदिर हैं, जहां उनकी वफादारी और चमत्कारों के लिए पूजा होती है. लेकिन सांभर का यह मंदिर अपनी सादगी और महिला पुजारी की देखरेख के कारण विशेष है. सामाजिक कार्यकर्ता अनिता शर्मा कहती हैं, “यह मंदिर वफादारी और भक्ति का प्रतीक है. यह हमें सिखाता है कि प्रेम और समर्पण किसी भी प्राणी में हो सकता है.”

न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.
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