मोदी बोले- कांग्रेस संविधान का शिकार करती रही: संविधान संशोधन करने का खून कांग्रेस के मुंह लगा, 6 दशक में इसे 75 बार बदला

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नई दिल्ली36 मिनट पहले
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संविधान के 75 साल पूरे होने के मौके पर शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में संविधान पर बोले। प्रधानमंत्री ने कहा- अच्छा होता कि संविधान की शक्ति पर चर्चा होती। दलगत भावना से उबरकर संविधान पर चर्चा करते। लेकिन कुछ लोगों की मजबूरियां होती हैं। मैं बोलना नहीं चाहता था, लेकिन तथ्य रखना जरूरी है।
PM बोले- कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक परिवार का उल्लेख इसलिए करता हूं कि 75 साल में से 55 साल एक ही परिवार ने राज किया है। देश को क्या-क्या हुआ है, ये जानने का अधिकार है। इस परिवार के कुविचार, कुरीति, कुनीति की परंपरा निरंतर चल रही है। हर स्तर पर इस परिवार ने संविधान को चुनौती दी है।
मोदी बोले- संविधान संशोधन करने का ऐसा खून कांग्रेस के मुंह लग गया कि वे समय-समय पर संविधान का शिकार करती रही। संविधान की आत्मा को लहुलुहान करती रही। करीब 6 दशक में 75 बार संविधान बदला गया। जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री ने बोया था, उसे खाद-पानी देने का काम एक और प्रधानमंत्री ने किया, श्रीमती इंदिरा गांधी।
1971 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। उस फैसले को संविधान बदलकर पलटा गया। उन्होंने हमारे देश की अदालत के पंख काट दिए थे। कहा था कि संसद संविधान के किसी भी आर्टिकल में जो मन आए कर सकती है और अदालत उसकी तरफ नहीं देख सकती है। ये पाप 1971 में इंदिरा गांधी ने किया था।

PM बोले- भारत का नागरिक सर्वाधिक अभिनंदन का भागी है। संविधान निर्माता इस बात पर बहुत सजग थे। ये वो नहीं मानते थे कि भारत का जन्म 1947 में हुआ। वे मानते थे कि यहां की महान परंपरा को हजारों साल की उस यात्रा के लिए वे सजग थे। भारत का लोकतंत्र, गणतांत्रिक अतीत समृद्ध रहा है, विश्व के लिए प्रेरक रहा है। तभी भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में जाना जाता है। हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र नहीं, हम लोकतंत्र की जननी हैं।
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने कहा था- सदियों के बाद हमारे देश में एक बार फिर ऐसी बैठक बुलाई गई है, ये हमारे मन में अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है। जब हम स्वतंत्र हुआ करते थे, सभाओं में विद्वान देश के अहम मामलों पर चर्चा करते थे।
डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा था- इस महान राष्ट्र के लिए गणतांत्रिक व्यवस्था नई नहीं है। हमारे यहां ये इतिहास की शुरुआत से ही है। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था- ऐसा नहीं है कि भारत को पता नहीं था कि लोकतंत्र क्या होता है। एक समय था जब भारत में कई गणतंत्र हुआ करते थे।

संविधान निर्माण में नारी शक्ति ने संविधान को सशक्त करने की भूमिका निभाई है। सक्रिय सदस्य थे। मौलिक चिंतन के आधार पर उन्होंने संविधान सभा की डिबेट को समृद्ध किया था। वे अलग-अलग बैकग्राउंड की थीं। उनके सुझावों का संविधान निर्माण में बहुत प्रभाव रहा था। दुनिया के कई देश आजाद हुए, संविधान बना, महिलाओं को अधिकार देने में दशकों बीत गए। हमारे यहां शुरुआत से ही महिलाओं को वोट का अधिकार दिया गया।
जब जी-20 हुई, उसी भावना को आगे बढ़ाते हुए विश्व के सामने विमन लीड डेवलपमेंट का विचार रखा। अब आगे जाने की जरूरत है। विमल लीड डेवलपमेंट की चर्चा को हमने अंजाम दिया। नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित करके हमारी महिला शक्ति को भारतीय लोकतंत्र में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए।
आज हम देख रहे हैं कि हर बड़ी योजना के केंद्र में महिलाएं होती हैं। भारत के राष्ट्रपति के पद पर एक आदिवासी महिला है, ये संयोग है। ये संविधान की भावना की अभिव्यक्ति है। इस सदन में लगातार हमारे महिला सांसदों की संख्या बढ़ रही है। आज समाज, राजनीति, शिक्षा, खेलकूद जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं का योगदान देश के लिए गौरव दिलाने वाला रहा। स्पेस टेक्नोलॉजी में उनके योगदान की सराहना हर हिंदुस्तानी गर्व से कर रहा है। इसकी प्रेरणा संविधान है।
हमारा देश बहुत तेज गति से विकास कर रहा है। भारत बहुत जल्द विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में बहुत मजबूत कदम रख रहा है। 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प है कि जब हम आजादी की शताब्दी बनाएंगे, हम विकसित भारत बनाकर रहेंगे। संकल्प से सिद्धि के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता भारत की एकता है।

हमारा संविधान भी भारत की एकता का आधार है। हमारे संविधान के निर्माण में बड़े-बड़े दिग्गज, स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षा विद् थे, मजदूर-किसान नेता थे। सबके सब भारत की एकता के प्रति संवेदनशील थे। अंबेडकरजी ने चेताया था।
कहा था- समस्या ये है कि देश में जो विविधता से भरा जनमानस है, उसे किस तरह एकमत किया जाए। कैसे एकदूसरे के साथ निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जाए। जिससे देश में एकता की भावना स्थापित हो। मुझे दुख के साथ कहना है कि आजादी के बाद विकृत मानसिकता, या स्वार्थवश सबसे बड़ा प्रहार हुआ तो देश की एकता के मूलभाव पर हुआ।
भारत की विशेषता विविधता में एकता है, लेकिन गुलामी की मानसिकता में पले-बढ़े लोगों ने, जिनके लिए 1947 में हिंदुस्तान पैदा हुआ, वे विविधता में विरोधाभास ढूंढते रहे। विविधता हमारा अमूल्य खजाना है। उसमें ये लोग ऐसे बीज ढूंढते रहे, जिससे देश की एकता को नुकसान पहुंचे।
मैं संविधान के प्रकाश में मेरी बात रखता हूं। अगर आप हमारी नीतियों को देखेंगे, पिछले 10 साल देश की जनता ने जो हमें सेवा करने का मौका दिया है। उसमें निर्णय देखिए भारत की एकता को मजबूती देने का हम निरंतर प्रयास करते रहे हैं। 370 देश की एकता में रुकावट बना था। हमने उसे जमीन में गाड़ दिया।
हमारे देश में जीएसटी को लेकर चर्चा चली। इकनॉमिक यूनिटी के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण थी। वो भी हमने किया। वन नेशन वन टैक्स लागू किया। राशन कार्ड गरीब के लिए मूल्यवान दस्तावेज रहा है। गरीब एक राज्य से दूसरे राज्य जाता था तो उसे कुछ भी नहीं मिलता था।

एकता को मजबूत करने के लिए हमने वन नेशन-वन राशन कार्ड की बात को पूरा किया। गरीब-सामान्य नागरिक को मुफ्त में इलाज मिले तो गरीबी से लड़ने की ताकत बढ़ जाती है। जहां काम करता है वहां मिल जाता है, लेकिन बाहर गया तो सुविधा नहीं मिलती। वन नेशन- वन हेल्थ कार्ड को सोचा और आयुष्मान कार्ड लाए।
हम जानते हैं कि देश के एक हिस्से में बिजली थी पर सप्लाई नहीं हो रही थी। पिछली सरकारों में विश्व के अंदर अंधेरे के कारण हेडलाइन में बदनामी होती थी। वन नेशन-वन ग्रिड को हमने पूरा किया। हमारे देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी भेदभाव की बू आती रही। हमने एकता को ध्यान में रखते हुए हमने नॉर्थ ईस्ट, या जम्मू-कश्मीर, इन्फ्रास्ट्रक्चर को सामर्थ्य देने का काम किया।
युग बदल चुका है और हम नहीं चाहते हैं कि डिजिटल क्षेत्र में हमारी स्थिति खराब हो। भारत के डिजिटल इंडिया की सक्सेस स्टोरी है कि हमने टेक्नोलॉजी को डेमोक्रेटाइज करने का काम किया। ऑप्टिकल फाइबर गांव तक ले गए।
मातृ भाषा की अहमियत पहचानी है। हमने न्यू एजुकेशन पॉलिसी में इसे बहुत बल दिया है। गरीब का बच्चा भी अपनी भाषा में डॉक्टर इंजीनियर बन सकता है। हमने क्लासिकल लैंग्वेज की दिशा में भी लोगों का सम्मान किया। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का अभियान शुरू किया। नई पीढ़ी को संस्कारित करने का काम चल रहा है।
संविधान के 25 साल पूरे हुए, इमरजेंसी आई जरा संविधान यात्रा पर नजर डालें कि 25 साल पूरे हो रहे थे, उसी वक्त हमारे देश में संविधान को नोच दिया गया। इमरजेंसी आई, संवैधानिक व्यवस्थाओं को खत्म कर दिया। देश को जेलखाना बना दिया, अधिकारों को लूट लिया, प्रेस की स्वतंत्रता को ताले लगा दिए। कांग्रेस के माथे पर ये जो पाप है, वो कभी भी धुलने वाला नहीं है। जब लोकतंत्र की चर्चा होगी, ये पाप धुलने वाला नहीं है।
50 साल हुए, तब क्या भुला दिया गया था। अटलजी की सरकार थी। 2000 में 26 नवंबर को संविधान का 50वां वर्ष मनाया गया था। उन्होंने पीएम होने के नाते विशेष संदेश दिया था। उसमें एकता, साझेदारी पर बल देते हुए संविधान की भावना को जीने और जनता को जगाने का काम किया था।
इस साल के पूरा होते ही मुझे भी संविधान की प्रक्रिया से मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला। मेरे कार्यकाल में संविधान के 60 साल हुए। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ, जब संविधान के ग्रंथ को हाथी पर बनाई हुई विशेष व्यवस्था में रखा गया। संविधान गौरव यात्रा निकाली, राज्य का मुख्यमंत्री हाथी के बगल पैदल चल रहा था। ये सौभाग्य भी मुझे मिला।

अच्छा होता संविधान की शक्ति पर चर्चा होती आज 75 साल हुए, हमें अवसर मिला। इस विशेष सत्र में अच्छा होता कि संविधान की शक्ति पर चर्चा होती। हर किसी की मजबूरियां होती है, दुख प्रकट करता है। कईयों ने अपना दुख प्रकट किया। दलगत भावना से उबरकर संविधान पर चर्चा करते।
संविधान की भावना है कि मेरे जैसे अनेक लोग, जो यहां पहुंच नहीं पाते। ये संविधान था जिसके कारण हम पहुंच पाए। हमारा कोई बैकग्राउंड नहीं था कैसे आते। ये संविधान था, जो जनता के आशीर्वाद से ये दायित्व मिला। देश ने इतना स्नेह दिया कि 3 बार हमें मौका दिया। संविधान के बिना संभव नहीं था।
कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी उतार-चढ़ाव आए, कठिनाइयां आईं, रुकावटें आईं, जनता को नमन है कि वो संविधान के साथ खड़ी रही। किसी की व्यक्तिगत आलोचना करना नहीं चाहता। तथ्यों को रखना जरूरी है। कांग्रेस के एक परिवार ने संविधान को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक परिवार का उल्लेख इसलिए करता हूं कि 75 साल में से 55 साल एक ही परिवार ने राज किया है। देश को क्या-क्या हुआ है, ये जानने का अधिकार है।
इस परिवार के कुविचार, कुरीति, कुनीति की परंपरा निरंतर चल रही है। हर स्तर पर इस परिवार ने संविधान को चुनौती दी है। 1947 से 1952 इस देश में इलेक्टेड गवर्नमेंट नहीं थी। अस्थाई व्यवस्था थी, चुनाव नहीं हुए थे और जब तक चुनाव ना हो तब तक एक खाका खड़ा किया गया था।
नेहरू ने कहा- संविधान रास्ते में आए तो परिवर्तन करना चाहिए 1952 से पहले राज्यसभा भी नहीं थी। राज्यों में भी चुनाव नहीं थे। कोई जनादेश नहीं था। अभी-अभी तो संविधान निर्माताओं ने इतना मंथन किया था। 1951 इन्होंने ऑर्डिनेंस लाकर संविधान को बदला। अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला कर दिया गया। संविधान निर्माताओं की नहीं चलने दी।
अपने मन की चीजें, जो संविधान सभा के भीतर नहीं करवा पाए, पिछले दरवाजे से किया, चुनी हुई सरकार के प्रधानमंत्री नहीं थे। उन्होंने पाप किया। उसी दौरान प्रधानमंत्री नेहरूजी ने मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी- अगर संविधान हमारे रास्ते के बीच में आ जाए तो हर हाल में संविधान में परिवर्तन करना चाहिए।
1951 में ये पाप किया गया। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि गलत हो रहा है। स्पीकर ने भी कहा, आचार्य कृपलानी, जेपी जैसे महान लोगों ने भी रोकने को कहा। पंडितजी का अपना संविधान चलता था। उन्होंने सलाह नहीं मानी।
संशोधन का खून कांग्रेस के मुंह लग चुका था, 6 दशक में 75 बार बदलाव हुए
संविधान संशोधन करने का ऐसा खून कांग्रेस के मुंह लग गया कि वे समय-समय पर संविधान का शिकार करती रही। संविधान की आत्मा को लहुलुहान करती रही। करीब 6 दशक में 75 बार संविधान बदला गया। जो बीज देश के पहले प्रधानमंत्री ने बोया था, उसे खाद-पानी देने का काम एक और प्रधानमंत्री ने किया, श्रीमती इंदिरा गांधी।
1971 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। उस फैसले को संविधान बदलकर पलटा गया। उन्होंने हमारे देश की अदालत के पंख काट दिए थे। कहा था कि संसद संविधान के किसी भी आर्टिकल में जो मन आए कर सकती है और अदालत उसकी तरफ नहीं देख सकती है। ये पाप 1971 में इंदिरा गांधी ने किया था।

इंदिराजी ने कुर्सी के लिए गुस्से में देश पर इमरजेंसी थोप दी इस बदलाव ने इंदिराजी की सरकार को मौलिक अधिकारों को छीनने का और न्यायपालिका पर नियंत्रण करने का अधिकार दिया था। इंदिराजी के चुनाव को गलत नीति के कारण अदालत ने खारिज कर दिया। उनको एमपी पद छोड़ने की नौबत आई तो उन्होंने गुस्से में देश में इमरजेंसी थोप दी, अपनी कुर्सी बचाने के लिए।
उन्होंने 1975 में 39 बार संशोधन किया। उसमें राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अध्यक्ष इनके चुनाव के खिलाफ कोई कोर्ट में जा ही नहीं सकता, ऐसा काम किया। पीछे का भी बदलाव कर दिया।
इमरजेंसी में लोगों के अधिकार छीने गए, हजारों लोगों को जेलों में डाल दिया गया। न्यायपालिका का गला घोंटा गया, अखबारों की स्वतंत्रता पर ताले लगा दिए। जस्टिस एचआर खन्ना ने उनके चुनाव में खिलाफ जजमेंट दिया, इतना गुस्सा भरा था कि जस्टिस खन्ना सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने थे, उन्हें चीफ जस्टिस नहीं बनने दिया।
नेहरूजी ने शुरू किया, इंदिराजी ने आगे बढ़ाया, राजीवजी ने खाद-पानी दिया यहां भी ऐसे कई दल हैं, जिनके मुखिया जेल में थे। मजबूरी है कि आज ये वहां बैठे हैं। देश पर जुल्म-तांडव चल रहा था। कई लोग जेलों में मृत समान हो गए थे, निर्दयी सरकार संविधान को चूर-चूर करती रही। ये परंपरा यहां नहीं रुकी। नेहरूजी ने शुरू किया, इंदिराजी ने आगे बढ़ाया, राजीवजी ने खाद-पानी दी। उनके मुंह लहू लग गया था। अगली पीढ़ी भी इसी खिलवाड़ में जुटी है।
सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानों का जजमेंट दिया था। राजीव गांधी ने शाहबानो की उस भावना को सुप्रीम कोर्ट की भावना को नकार दिया। वोट बैंक की भावना के आगे संविधान की भावना को नकार दिया। वृद्ध महिला का साथ देने की बजाय कट्टरपंथियों का साथ दिया। संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलट दिया गया।

मनमोहन सिंह की सरकार में कैबिनेट का निर्णय फाड़ दिया गया
एक किताब में लिखा है- मुझे यह स्वीकार करना होगा, पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र है। सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है। ये मनमोहन सिंह ने कहा है। इतिहास में पहली बार संविधान को ऐसी गहरी चोट पहुंचा दी गई। संविधान निर्माताओं ने चुनी हुई सरकार और पीएम की कल्पना बनाई। इन्होंने प्रधानमंत्री के ऊपर एक गैर संवैधानिक एडवाइजरी काउंसिल भी बैठा दी। पीएमओ के बराबर अघोषित दर्जा दे दिया गया।
एक और पीढ़ी आगे चले, उसने क्या किया। भारत के संविधान के तहत देश की जनता सरकार चुनती है। सरकार का मुखिया कैबिनेट बनाता है। इस कैबिनेट जो फैसला लिया, संविधान का अपमान करने वाले अहंकार से भरे लोगों ने पत्रकारों के सामने कैबिनेट के निर्णय को फाड़ दिया। संविधान को हर मौके पर खिलवाड़ करना, उसे न मानना, ये जिनकी आदत हो गई थी। दुर्भाग्य देखिए एक अहंकारी व्यक्ति कैबिनेट का फैसला फाड़ दे और कैबिनेट अपना फैसला बदल दे। ये कौन सी व्यवस्था है।
बहुत कम लोग जानते होंगे, 370 का पता होगा, 35-A का कम को पता है। संसद में आए बिना संसद को ही अस्वीकार कर दिया गया। संविधान का पहला पुत्र संसद है, उसका भी गला घोंटने का काम किया। 35-A को थोप दिया, ये न होता तो जम्मू-कश्मीर की हालत ऐसी नहीं होती। राष्ट्रपति के आदेश पर यह काम हुआ और देश को अंधेरे में रखा, क्योंकि पेट में पाप था, जनता से छिपाना चाहते थे।

अंबेडकरजी के प्रति भी इनके मन में कितनी कटुता थी अंबेडकर के प्रति आज सम्मान का भाव सबको है। हम लोगों के लिए विशेष है, क्योंकि सारे रास्ते वहीं से मिले। अंबेडकरजी के प्रति भी इनके मन में कितनी कटुता थी। जब अटलजी की सरकार थी, तब अंबेडकरजी का महापरिनिर्माण पर मेमोरियल का निर्माण होना था, इन्होंने नहीं बनने दिया। हमने बनवाया। दिल्ली में अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर का फैसला 1992 में लिया गया। 2015 में हमने इसे पूरा किया।
अंबेडकर के सवा सौ साल हमने 120 देशों में मनाया। शताब्दी पर अकेली मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार थी। सुंदर लाल पटवा सीएम थे, महू में जहां अंबेडकर का जन्म हुआ, उसे स्मारक बनाने का काम उन्होंने किया। हमारे देश में अंबेडकर दिव्य दृष्टा थे, समाज के दबे-कुचले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध थे।
तब हमारे देश मे आरक्षण की व्यवस्था हुई। वोट बैंक की राजनीति वालों ने तुष्टिकरण, धर्म के नाम पर आरक्षण के भीतर तोड़फोड़ की। इसका नुकसान एससी,एसटी और ओबीसी को हुआ। नेहरूजी से राजीव गांधी तक कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने आरक्षण का विरोध किया। लंबी-लंबी चिट्ठियां नेहरूजी ने लिखीं।
सदन में आरक्षण के खिलाफ इन लोगों ने लंबे भाषण दिए। इन्होंने उसके खिलाफ झंडा ऊंचा किया। दशकों तक मंडल कमीशन की रिपोर्ट को डिब्बे में डाला। जब कांग्रेस गई तब ओबीसी को आरक्षण मिला। ये कांग्रेस का पाप है, उस वक्त मिला होता तो देश के अनेक पदों पर उस समाज के लोग सेवा करते।
संविधान निर्माता धर्म के आधार पर आरक्षण के खिलाफ थे जब संविधान निर्माण चल रहा था, तब निर्माताओं ने धर्म के आधार पर आरक्षण हो या ना हो, इस विषय पर घंटो-दिनों गहन चर्चा की। सबका मत बना कि भारत जैसे देश की एकता-अखंडता के लिए धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं हो सकता है। सत्ता सुख के लिए, सत्ता की भूख के लिए, वोट बैंक के लिए धर्म के आधार पर आरक्षण का नया खेल खेला है। कुछ जगह दे भी दिया। अब सुप्रीम कोर्ट से झटके लग रहे हैं।
ज्वलंत विषय समान नागरिक संहिता, ये विषय भी संविधान सभा के ध्यान में था। उसने UCC पर गहन चर्चा की, उन्होंने फैसला किया कि अच्छा होगा, जो सरकार चुनकर आए, वो उस पर फैसला करे। अंबेडकर ने धार्मिक आधार पर बने पर्सनल लॉ को खत्म करने की वकालत की थी। उस समय एएम मुंशी ने कहा था कि समान नागरिक संहिता को राष्ट्रीय एकता और आधुनिकता के लिए अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा कि देश में UCC लाना चाहिए। सरकारों को आदेश दिए हैं। उसे ध्यान में रखते हुए हम पूरी ताकत से लगे हैं- सेकुलर सिविल कोड के लिए। आज कांग्रेस के लोग सुप्रीम कोर्ट का भी निरादर कर रहे हैं, क्योंकि उनकी राजनीति को सूट नहीं कर रहा। उनके लिए संविधान राजनीति, खेल खेलने, डराने का हथियार है।

कांग्रेस को अपनी पार्टी का संविधान स्वीकार नहीं, इसलिए नेहरू PM बने कांग्रेस के रगों में सत्ता और परिवारवाद घुसा है। 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल के नाम पर सहमति दी थी। नेहरूजी के साथ एक भी कमेटी नहीं थी। सरदार साहब ही प्रधानमंत्री बनते, लेकिन लोकतंत्र में श्रद्धा नहीं, संविधान में आस्था नहीं, ये बैठ गए। जो अपनी पार्टी के संविधान को नहीं मानते, वो कैसे देश के संविधान को मान सकते हैं।
जो लोग संविधान में लोगों के नाम ढूंढते हैं, कांग्रेस के एक अध्यक्ष हुआ करते थे अति पिछड़े समाज के थे। उनके अध्यक्ष सीताराम केसरी का कैसा अपमान किया था। कैसे बाथरूम में बंद कर दिया था। उठाकर फुटपाथ पर फेंक दिया। अपनी पार्टी के संविधान को ना मानना, लोकतंत्र को ना मानना, पूरी कांग्रेस पार्टी पर एक परिवार ने कब्जा कर लिया है। लोकतंत्र को नकार दिया।

अटल जी ने संविधान की भावना के लिए 13 दिन में इस्तीफा दे दिया 1996 में सबसे बड़े दल के रूप में भाजपा जीतकर आई। राष्ट्रपति ने संविधान के तहत भाजपा को पीएम की शपथ के लिए बुलाया। 13 दिन सरकार चली। अगर हमें संविधान की आत्मा के प्रति भावना ना होती तो हम भी ये बांटो, ये दे-दो, ये पद दे दो। हम भी सत्ता सुख भोग सकते थे। अटलजी ने सौदेबाजी नहीं संविधान का रास्ता दिया। 13 दिन बाद इस्तीफा दे दिया।
1998 में एनडीए की सरकार चल रही थी, कुछ लोगों को हम नहीं तो कोई नहीं का मन था। खरीद-फरोख्त तब भी हो सकती थी, बाजार में माल तब भी बिकता था। अटलजी की सरकार ने एक वोट से हारना पसंद किया, लेकिन असंवैधानिक कृत्य नहीं किया। हमारा यह इतिहास है, ये हमारे संस्कार हैं।
दूसरी तरफ अदालत ने भी जिस पर ठप्पा मार दिया, कैश फॉर वोट का कांड एक लघुमति सरकार को बचाने के लिए संसद में नोटों के ढेर साक्ष्य के तौर पर रखे गए। सरकार बचाने के लिए भारत के लोकतंत्र की भावना को बाजार बना दिया। वोट खरीदे गए। 90 के दशक में कई सांसदों को रिश्वत देने का पाप किया। ये संविधान की भावना थी।
हमने भी संविधान में संशोधन किए, लेकिन लोगों के कल्याण के लिए
- हमने भी संविधान संशोधन किए हैं। देश की एकता के लिए, अखंडता के लिए, उज्ज्वल भविष्य के लिए, संविधान की भावना के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ किए। देश का ओबीसी समाज तीन-तीन दशक से ओबीसी कमीशन के संवैधानिक दर्जे की मांग कर रहा था। उसे दर्जा देने के लिए हमने संविधान संशोधन किया है।
- देश में एक बहुत बड़ा वर्ग था, वो किसी भी जाति में क्यों ना जन्मा हो लेकिन गरीबी के कारण अवसर नहीं पा सकता था। उसमें असंतोष की ज्वाला थी, कोई निर्णय नहीं कर रहा था। हमने सामान्य जन के गरीब परिवार के 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए संशोधन किया। देश में किसी ने विरोध नहीं किया। सबने सहयोग किया था, तब यह हुआ।
- महिलाओं को शक्ति देने के लिए, जब देश महिला आरक्षण के लिए आगे बढ़ रहा था, बिल पेश हो रहा था, तब उन्हीं का एक साथी दल वेल में आता है। कागज छीन लेता है और कागज फाड़ देता है। 40 साल तक मामला अटका रहता है और वो आज उनके मार्गदर्शक हैं। हमने संविधान संशोधन किया, हमने देश की एकता के लिए किया।
- अंबेडकर का संविधान 370 की दीवार के कारण जम्मू-कश्मीर की तरफ देख भी नहीं सकता था। उन्हें श्रद्धांजलि भी देनी थी, हमने संशोधन डंके की चोट पर किया और 370 को हटाया। सुप्रीम कोर्ट ने भी अब उस पर मुहर लगा दी है।
- जब विभाजन हुआ गांधी समेत वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि पड़ोस के देशों में अल्पसंख्यक संकट में आएंगे तो भारत चिंता करेगा। गांधीजी का वचन था। जो उनके नाम पर सत्ता में चढ़ जाते थे, उन्होंने नहीं किया। हमने CAA लाकर उस वचन को पूरा किया, मुंह नहीे छिपाते हम।
कांग्रेस के साथियों को एक शब्द प्रिय है- जुमला यहां संविधान पर कई भाषण हुए। कई विषय उठाए गए। हर एक की मजबूरी होगी। हमारा संविधान सबसे ज्यादा जिस बात को लेकर संवेदनशील रहा, वो है भारत के लोग। संविधान उनके लिए है। उनके हितों के लिए, उनकी गरिमा के लिए है। कल्याणकारी राज्य का मतलब है, जहां नागरिकों को गरिमामय जीवन की गारंटी मिले।
कांग्रेस के साथियों को एक शब्द प्रिय है। वो शब्द है जुमला, हमारे कांग्रेस के साथी को दिन-रात जुमला याद रहता है। देश को पता है कि हिंदुस्तान में अगर सबसे बड़ा जुमला कोई था और वो 4-4 पीढ़ी ने चलाया, वो था गरीबी हटाए। ये ऐसा जुमला था कि उनकी राजनीति की रोटी सिंकती थी, लेकिन गरीब का हाल ठीक नहीं होता था।
आजादी के इतने सालों बाद एक गरिमा से जीने वाले परिवार को शौचालय भी नहीं मिलना चाहिए। आपको ये काम करने की फुरसत नहीं मिली। हमने इस काम को हाथ में लिया और जी-जान से जुटे रहे। हम अड़े रहे और आगे बढ़ते चले गए और सपना साकार हुआ। माताएं-बहनें खुले में शौच जा रहीं थीं और आपको पीड़ा नहीं हुई। आपने गरीब को टीवी-अखबारों में देखा आपको पता नहीं था, वरना ऐसा जुर्म नहीं करते।

हमने घर-घर सिलेंडर पहुंचाया, आयुष्मान योजना लाए 80 फीसदी जनता पीने के पानी के लिए तरसती रही, संविधान ने रोका था क्या। ये काम भी हमने बड़े समर्पण भाव से आगे बढ़ाया है। करोड़ों माताएं चूल्हें में खाना पकाती थीं। धुंए से आंखे लाल होती थीं, स्वास्थ्य खत्म हो जाता था। 2013 तक चर्चा चलती थी 9 सिलेंडर देंगे या 6 देंगे। हमने हर घर तक सिलेंडर पहुंचा दिया।
गरीब परिवारों के लिए हमने आयुष्मान योजना लागू की। आज 70 साल के ऊपर के बुजुर्गों को मुफ्त इलाज मिलता है। जरूरतमंदों को राशन देने का मजाक उड़ा रहे हैं। जो गरीबी से निकलकर आया है, उसे पता होता है कि अस्पताल में एक मरीज को स्वस्थ होने के बाद डॉक्टर कहता है कि घर जाओ पर महीने भर ध्यान रखो। गरीब फिर गरीब ना बने इसलिए मुफ्त राशन दे रहे हैं।
गरीब के नाम पर बैंको का राष्ट्रीयकरण किया, 50 करोड़ खाते हमने खुलवाए
- गरीब के नाम पर बैंको का राष्ट्रीयकरण किया गया। 2014 तक 50 करोड़ नागरिक ऐसे थे, जिन्होंने बैंक का दरवाजा तक नहीं देखा था। गरीब को बैंक में प्रवेश तक नहीं था। आज 50 करोड़ गरीब खाते खोलकर बैंक के दरवाजे खोल दिए। एक प्रधानमंत्री कहते थे कि दिल्ली से 1 रुपया निकलता है तो 15 पैसा पहुंचता है। आज दिल्ली से एक रुपया निकलता है और 100 पैसे पहुंचते हैं।
- जिन्हें बैंक जाने की इजाजत नहीं थी, आज बिना गारंटी वो बैंक से लोन ले सकता है। ये ताकत हमने गरीब को दी है। गरीबी हटाओ का जुमला, जुमला बनकर रह गया था। हमारा संकल्प है गरीबी से मुक्ति। हम दिनरात एक करके लगे हैं, जिन्हें कोई नहीं पूछता, उन्हें मोदी पूजता है।
- दिव्यांग की व्हीलचेयर ट्रेन तक जाए, यह व्यवस्था हमने की। भाषा के नाम पर झगड़ा सिखा दिया था, लेकिन हमारे दिव्यांगों के साथ कितना अन्याय किया। साइन लैंग्वेज की व्यवस्था ऐसी थी आसाम में दूसरी, यूपी में दूसरी। 7 दशक बाद भी उन्हें याद नहीं आई। कॉमन साइन लैंग्वेज बनाने का काम हमने किया। उनके कल्याण के लिए वेलफेयर फंड बनाने का काम हमने किया।
- रेहड़ी-पटरी वालों को हर कोई जानता है। उसे 12-12 घंटे काम करे, किसी से ब्याज से पैसा ले, किसी से सामान ले। शाम को ब्याज वाले पैसा ले जाएं। हमारी सरकार ने रेहणी वालों के लिए बिना गारंटी लोन देने का काम किया। हममे से कोई ऐसा नहीं होगा, जिसे विश्वकर्मा की जरूरत ना मिले। उनके लिए कभी नहीं सोचा गया। बैंक से लोन की, ट्रेनिंग, उपकरण की व्यवस्था की।
- ट्रांसजेंडर को समाज ने दुत्कार दिया। हमारी सरकार ने हक दिए। उन्हें गौरवपूर्ण जीवन मिले, अधिकार मिलें, इसके लिए काम किया। गुजरात में उमरगांव से अंबाजी का बेल्ट आदिवासियों का था। कांग्रेस सरकार में वहां साइंस साइड स्कूल नहीं थे। मेरी सरकार बनी तो ऐसे स्कूल बने। राजनीति की चर्चा करना, संविधान के अनुरूप काम ना करना सत्ता की भूख वालों का काम है। पीएम जन-मन योजना बनी। आदिवासी समूहों को ढूंढकर उनके लिए योजना के द्वारा विकास किया।
- हमारे देश में 60 साल के दौरान बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट बोल दिया गया। वहां किसी का ट्रांसफर हो तो पनिश्मेंट पोस्टिंग मानता था। हमने उन्हें इंस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट की योजना बनाई। वे आज नेशनल एवरेज के बराबर होने लगे हैं। हमने 500 ब्लॉक को इंस्पिरेशनल ब्लॉक बनाकर डेवलपमेंट पर काम किया।
- जो लोग बड़ी-बड़ी कथाएं सुनाते हैं, आदिवासी समाज 1947 के बाद आया है क्या। आजादी के कई दशकों बाद भी इतना बड़ा आदिवासी समूह के लिए अलग मंत्रालय नहीं था। अटलजी की पहली बार सरकार आई, उन्होंने यह मंत्रालय बनाया।
- मछुआरा समाज अभी आया है क्या। क्या उनकी नजर नहीं गई थी। पहली बार हमारी सरकार ने अलग मंत्रालय बनाया। छोटा किसान उसके जीवन में सहकारिता मायने रखती है, उस क्षेत्र को बल देने पर हमने फोकस किया। अलग सहकारिता मंत्रालय बनाया।
- नौजवान है, पूरा विश्व आज वर्कफोर्स के लिए तरस रहा है। हमने अलग स्किल मंत्रालय बनाया ताकि दुनिया की जरूरत के लिए नौजवान तैयार हो और आगे बढ़े। नॉर्थ ईस्ट की परवाह नहीं की गई। अटल सरकार ने पहली बार मंत्रालय बनाया। आज भी दुनिया के देशों में लैंड रिकार्ड का संकट है। हमने हर सामान्य आदमी के अपने लैंड का रिकॉर्ड रखने के लिए स्वामित्व योजना बनाई।
सबका साथ-सबका विकास नारा नहीं, हमारा कर्म है पिछले 10 साल में हमने जो प्रयास किया, गरीब को मजबूती देने का काम किया। आज इतने कम समय में मेरे देश के 25 करोड़ गरीब साथी गरीबी को परास्त करने में सफल हुए। जब सबका साथ-सबका विकास की बात करते हैं, वो नारा नहीं है, हमारा कर्म है। बिना भेदभाव के हम काम कर रहे हैं। जिसके लिए योजना बनी, उसका 100 फीसदी लाभ लाभार्थी को मिलना चाहिए। ये सच्चा सेकुलरिज्म सैचुरेशन में है।
आने वाले दशकों में हमारा लोकतंत्र, राजनीति की दिशा पर हमें मंथन करना चाहिए। कुछ दलों के राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता की भूख है। सभी दलों से पूछता हूं कि देश में योग्य नेतृत्व को अवसर मिलना चाहिए कि नहीं। जिनके घर में राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है, उसे मौका मिलना चाहिए कि नहीं। परिवारवाद से मुक्ति के लिए अभियान चलाना हमारी जिम्मेदारी है कि नहीं।
देश के नौजवानों को आकर्षित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों को कोशिश करना चाहिए। एक लाख ऐसे नौजवानों को राजनीति में लाना है, जिनका पारिवारिक बैकग्राउंड राजनीतिक नहीं है। देश को नई ऊर्जा, नए सपनों को लेकर आने वाले युवाओं की जरूरत है।
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राहुल ने कहा- यह देश संविधान से चलेगा मनु स्मृति से नहीं

राहुल गांधी ने संसद में संविधान और मनु स्मृति की कॉपी लहराई।
इससे पहले शुक्रवार को राजनाथ सिंह और प्रियंका गांधी ने चर्चा की शुरुआत की थी। आज सदन में राहुल गांधी ने भी संविधान पर अपनी बात रखी। राहुल ने कहा- यह देश संविधान से चलेगा मनु स्मृति से नहीं। जिस तरह द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा काटा था, वैसे ही भाजपा सरकार युवाओं से अवसर छीनकर उनकी प्रतिभाओं का अंगूठा काट रही है। पूरी खबर पढ़ें…
प्रियंका बोलीं- नेहरू ने क्या किया उसे छोड़िए; आज का राजा भेष बदलता है, पर आलोचना नहीं सुनता

प्रियंका ने संसद में पहली बार स्पीच दी। उन्होंने कहा- प्रधानमंत्री सदन में संविधान की किताब को माथे से लगाते हैं। संभल-हाथरस-मणिपुर में जब न्याय की बात उठती है तो माथे पर शिकन तक नहीं आती। पंडित नेहरू का नाम पुस्तकों से, भाषणों से हटाया जा सकता है, लेकिन जो उनकी भूमिका आजादी और देश निर्माण के लिए रही, उनका नाम कभी नहीं मिटाया जा सकता है। पूरी खबर पढ़ें…