Published On: Sun, Nov 24th, 2024

मुस्लिम बहुल रामगढ़-कुंदरकी में भगवा लहराया, अखिलेश-लालू-ममता की पॉलिटिक्स पर ताला लगा सकते हैं ये ट्रेंड


महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ शनिवार को देशभर में हुए कई उपचुनावों के भी नतीजे आए. लेकिन, इसमें सबसे अहम है राजस्थान के अलवर जिले की रामगढ़ और यूपी के मुरादाबाद जिले की कुंदरकी सीट. ये दोनों सीटें मुस्लिम बहुल हैं. फिर भी यहां भगवा लहरा गया. यानी इन दोनों सीटों पर भाजपा जीत गई है. यह कोई आम जीत नहीं बल्कि पूरे देश में बदल रहे जनमानस को दिखाने वाली जीत है. यह देश की कई क्षेत्रीय पार्टियों के लिए संकेत है कि आने वाले समय में चुनावी राजनीति तेजी से बदलने वाली है.

रामगढ़ सीट मेवात क्षेत्र में है. इस सीट पर जातिगत समीकरणों की बात करें तो यहां सबसे अधिक आबादी मेव मुसलमानों की है. हालांकि यह एक सुरक्षित सीट है. मेव मुसलमानों के अलावा यहां पंजाबी, राजपूत, बनिया, सिख और एससी आबादी भी ठीकठाक है. यहां की पूरी राजनीति हिंदू-मुस्लिम पर टिकी है. कई बार यहां भाजपा के उम्मीदवार पहले भी जीतते आए हैं. अब बात करते हैं कुंदरकी की. यह भी एक मुस्लिम बहुल सीट है. रिपोर्ट के मुताबिक यहां करीब 60 फीसदी मुस्लिम आबादी है. इस सीट पर आखिरी बार भाजपा 1993 में जीती थी.

इस जीत के क्या है मायने
मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की जीत चौकाने वाली है. इसके पीछे कई संदेश हैं. सबसे पहला यह कि अल्पसंख्यक समुदाय भी एकतरफा वोटिंग नहीं कर रहा है. उनके भीतर खासकर महिलाओं में भाजपा के लिए कहीं न कहीं एक शॉफ्ट कॉर्नर है. कई सर्वेक्षणों में दावा किया गया है कि मुस्लिम महिलाओं का एक ठीकठाक तबका अब भाजपा को वोटर करा है. इसके साथ ही समुदाय के निचले तबके को मोदी सरकार की नीतियों से काफी लाभ हुआ है. उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है. ऐसे में उनके फैसले पर किसी मौलवी या मौलावा की बात का सीधा प्रभाव होता नहीं दिख रहा है. वे अब खुद अपने फैसले लेते हैं,

अखिलेश, लालू और ममता के लिए संदेश
देश की राजनीति में अखिलेश यादव, लालू यादव और ममता बनर्जी की पहचान ऐसे नेता के रूप में हैं जो अपने-अपने राज्यों में मुस्लिम वोट बैंक पर अपना एकाधिकार समझते हैं. तीनों नेताओं के राज्यों यानी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी भी ठीकठाक है. ये तीनों भाजपा का डर दिखाकर मुस्लिम समुदाय में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश करते हैं. लेकिन, अब समय बदल गया है. यूपी-बिहार में लंबे समय से अखिलेश और लालू यादव की पार्टी सत्ता से बाहर है. इन दोनों राज्यों में भाजपा और उसकी सहयोगी दलों की सरकार है. बावजूद इसके मु्स्लिम समुदाय पूरी तरह सुरक्षित है. ऐसे में अखिलेश और लालू यादव की राजनीति के लिए यही सबसे बड़ा संकट है. वे जिस जनता को अपना कोर वोट बैंक समझ रहे थे उसके युवाओं और महिलाओं को अब उन पर भरोसा नहीं रहा है. ऐसे में अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर भाजपा की जीत आने वाले समय में अखिलेश और लालू की राजनीति पर ताला लगा सकते हैं.

बात ममता दीदी की
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अपनी सीटें बरकरार रखने में कामयाब हुई हैं, लेकिन वहां भी तस्वीर बदलने में समय नहीं लगने वाला. क्योंकि ममता बनर्जी खुद बीते कुछ महीनों से महिला सुरक्षा के मसले पर बुरी तरह घिरी हुई हैं. आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में डॉक्टर बिटिया के साथ रेप और उसकी हत्या की घटना के बाद वह वहां के संभ्रांत वर्ग के निशाने पर हैं. महिला सुरक्षा का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम राजनीति से ऊपर उठ जाता है. दूसरी तरफ ममता बनर्जी की राजनीति का केंद्र भी मुस्लिम समुदाय है. पश्चिम बंगाल में करीब 27 फीसदी मु्स्लिम आबादी है. कई सीटों पर ये बहुसंख्यक हैं. ऐसे में मुस्लिम वोटर्स में मामूली सेंधमारी से ममता की राजनीति पर संकट खड़ा हो जाएगा.

Tags: Akhilesh yadav, CM Mamata Banerjee, Lalu Yadav

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