Published On: Thu, Nov 7th, 2024

मिथिला में 10 दिवसीय सामा चकेवा लोक पर्व शुरू: पारंपरिक लोकप्रिय गीतों से गुलजार हो रही गांव की गलियां, भाई के दीर्घायु की कामना – Darbhanga News


सामा खेलेय गेलिये, हो भईया चकेवा लय गेल चोर.., सामा खेलब गे बहिना भैया जिवथ हजार… आदी लोक गीतों का बोल मिथिलांचल के ग्रामीण क्षेत्रों में गूंजने लगे हैं। वैसे तो बदलते समय के साथ समाज में कई पुरानी परंपरा है विलुप्त होती जा रही है, लेकिन कुछ ऐसी लो

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उनके बीच उत्साह देखने को मिलता है। महिलाएं सामा चकेवा से फिर अगले वर्ष आने का आग्रह करती है। गीत गाते हुए कहती है साम चक साम चक अबिह हे… ।

मिट्टी की विभिन्न प्रतिमाएं बनाई जाती।

मिट्टी की विभिन्न प्रतिमाएं बनाई जाती।

खेत से दिन में मिट्टी लेकर घर लौटती हैं

खरना के दिन युवतियां अपने भाई के साथ खेत से दिन में मिट्टी लेकर घर लौटती हैं। इसके बाद महिलाएं इस मिट्टी से खदनचिरैया, सतभैया, ढोलकिया, भवरा-भंवरी, वृंदावन, कच्छबचिया, चुगला, कुत्ता आदि मिट्टी की प्रतिमाओं को बनाकर सजाने में जुट जाती है।

वही सामा चकेवा बाजार से भाई खरीद कर लाता है। इसके बाद 10 दिनों तक शाम से देर रात तक छोटे बच्चे और युवतियां पारंपरिक और लोकप्रिय लोकगीतों को गाकर भाई के दीर्घायु होने की कामना करती है। रात का खाना खाने के बाद महिलाओं और बच्चों की टोली गली और नुक्कड़ के सार्वजनिक स्थलों पर बैठकर लोकगीत गुनगुनाते हुए पारंपरिक तरीके से लोग पर्व को मानती है। पूर्णिमा के दिन पूरी निष्ठा विधि विधान व भरे दिल से लोग सामा चकेवा की विदाई करते हैं।

संस्कृति को जीवंत रखने की पुरानी परंपरा में खासकर महिलाएं उत्सुक व अग्रसर रहती है। इसी परंपरा के तहत प्रचलित भाई बहन के अटूट स्नेह व प्रेम पर आधारित सामा चकेवा पर्व की तैयारी की जाती है। बुधवार को दिनभर महिलाएं व बालिकाएं सामा चकेवा खदनचिरैया, सतभैया, ढोलकिया,भवरा- भंवरी, वृंदावन, कच्छबचिया, चुगला, कुत्ता आदि की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसे सजाने में जुटी रही।

सामा चकेवा लोक पर्व की समाप्ति विसर्जन के साथ होगी

दरभंगा के रतनपुर में सामा चकेवा खेल रही निशा कुमारी, प्रियंका कुमारी, अंजू कुमारी, प्रियम कुमारी, चुलबुल कुमारी आदि ने बताया कि पूर्णिमा के दिन सामा चकेवा लोक पर्व की समाप्ति विसर्जन के साथ होगी। उसी दिन सामा चकेवा के साथ बनाए गए खदनचिरैया, सतभैया, ढोलकिया, भवरा-भंवरी, वृंदावन, कच्छबचिया, कुत्ता आदि के मूर्ति को भाई से दो टुकड़ों में तुर्वाकर सुनसान खेत में गाना गाते हुए पहुंचती हैं। फिर वहां चूड़ा दही का प्रसाद सामा चकेवा को चढ़ाकर पूजा की जाती है।

प्रसाद सभी के बीच बांटा जाता है। सभी प्रतिमाओं के टूटे हुए टुकड़ों को खेत में विसर्जित कर दिया जाता है और सामा चकेवा को लेकर महिलाएं घर लौट जाती हैं।

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