मनमोहन सिंह की यादें VIDEOS में: संसद में बोले थे- हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी…. आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- इतिहास मेरे प्रति उदार होगा

नई दिल्ली6 मिनट पहले
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अक्टूबर 2022 में कांग्रेस प्रेसिडेंशिल इलेक्शन में भाग लेने कांग्रेस हेडक्वॉर्टर पहुंचे डॉ. मनमोहन सिंह।
हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी… 27 अगस्त 2012 को संसद में यह शेर पढ़ने वाले मनमोहन हमेशा के लिए खामोश हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री पद्म विभूषण डॉ. मनमोहन सिंह ने 26 दिसंबर को दिल्ली AIIMS में अंतिम सांस ली।
हमेशा आसमानी पगड़ी पहनने वाले मनमोहन ने 22 मई, 2004 को भारत के 14वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहा गया, लेकिन मनमोहन ने न सिर्फ 5 साल का कार्यकाल पूरा किया, बल्कि अगली बार भी सरकार में वापसी की।
एक मंझे हुए अर्थशास्त्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह जब राजनेता बने, तो उनकी शख्सियत के कई अनदेखे पहलू सामने आए। नीचे पढ़ें और देखें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से जुड़े खास मोमेंट्स। आप इनका वीडियो देखने के लिए ऊपर लगी इमेज पर क्लिक कर सकते हैं।
पहला किस्सा- 23 मार्च 2011: संसद में सुषमा स्वराज से शेरो-शायरी से नोकझोंक

लोकसभा में वोट के बदले नोट विषय पर विषय पर चर्चा हो रही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह विपक्ष पर सवालों पर जबाव दे रहे थे।
इस दौरान नेता विपक्ष सुषमा ने उन पर कटाक्ष करते हुए कहा था- तू इधर उधर की न बात कर, ये बता के कारवां क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।
इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा था- ‘माना के तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक तो देख मेरा इंतजार तो देख।’
मनमोहन सिंह के इस जवाब पर सत्ता पक्ष ने काफी देर तक मेज थपथपाई थी, वहीं विपक्ष खामोख बैठा रहा था।
दूसरा किस्सा- 27 अगस्त 2012: संसद के बाहर बोले- हजारों जवाबों से अच्छी मेरी खामोशी…
संसद का सत्र चल रहा था। मनमोहन सरकार पर कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार का आरोप लगा। तब मनमोहन सिंह ने कहा कि कोयला ब्लाक आवंटन को लेकर कैग की रिपोर्ट में अनियमितताओं के जो आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं।
उन्होंने लोकसभा में बयान देने के बाद संसद भवन के बाहर मीडिया में भी बयान दिया। उन्होंने उनकी ‘खामोशी’ पर ताना कहने वालों को जवाब देते हुए शेर पढ़ा, ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी’…
तीसरा किस्सा- 27 सितंबर 2013: अमेरिकी प्रेसिडेंट बराक ओबामा से मुलाकात

साल 2010, टोरंटो में जी-20 शिखर सम्मेलन था। इसमें मनमोहन सिंह के साथ द्विपक्षीय बैठक से पहले ओबामा ने उनकी तारीफ की थी। ओबामा ने कहा था- मैं आपको बता सकता हूं कि यहां जी-20 में जब प्रधानमंत्री बोलते हैं, तो लोग सुनते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें आर्थिक मुद्दों की गहरी जानकारी है। भारत के विश्व शक्ति के रूप में उभरने की बारीकियां पता हैं।
इसके बाद 27 सितंबर 2013 को वाशिंगटन के व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में मनमोहन सिंह और अमेरिकी के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा की मुलाकात हुई थी। इस बारे में बराक ओबामा ने कहा था- सभी क्षेत्रों में प्रधानमंत्री सिंह एक शानदार पार्टनर हैं।
जब बराक ओबामा ने अपने राजनीतिक सफर पर ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ किताब लिखी थी तो इसमें उन्होंने नवंबर 2010 की उनकी भारत की यात्रा का करीब 1400 शब्दों में जिक्र किया था। इस दौरान मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे।
ओबामा ने लिखा था- मनमोहन सिंह एक ऐसे बुजुर्ग सिख नेता थे, जिनका कोई राष्ट्रीय राजनीतिक आधार नहीं था। ऐसे नेता से उन्हें अपने 40 साल के बेटे राहुल के लिए कोई सियासी खतरा नहीं दिखा, क्योंकि तब वो उन्हें बड़ी भूमिका के लिए तैयार कर रही थीं।
चौथा किस्सा- सितंबर 2013: मनमोहन सिंह ने पूछा- क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए?
जुलाई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अदालत से किसी केस में दोषी करार दिए जाने पर सांसदों-विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाएगी। कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए तब की UPA-2.0 सरकार एक अध्यादेश लाई थी। तब विपक्षी पार्टी भाजपा ने सरकार पर भ्रष्टाचारियों को बचाने के आरोप लगाए थे। तमाम हंगामे के बीच अध्यादेश की अच्छाई बताने के लिए कांग्रेस ने 27 सितंबर को दिल्ली के प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई।
अजय माकन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तभी उस समय के कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी वहां आते हैं। इसके बाद मीडिया से बात करते हुए राहुल ने कहा इस अध्यादेश का खुलकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि मेरी राय में यह अध्यादेश बकवास है। इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।
उस समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया बताते हैं कि उस समय मनमोहन सिंह अमेरिका में थे। वे राहुल के बयान से काफी नाराज हुए थे। अहलूवालिया अपनी किताब ‘बेकस्टेज : द स्टोरी बिहाइंड इंडियाज हाई ग्रोथ ईयर्स’ लिखते हैं कि मनमोहन सिंह ने मुझसे पूछा था कि क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए। इस पर मैंने जवाब दिया कि मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर इस्तीफा देना उचित होगा। बाद में राहुल गांधी ने अध्यादेश पर अपना पक्ष रखते हुए मनमोहन सिंह को चिट्ठी भी लिखी थी। इसके बाद अक्टूबर, 2013 में उस अध्यादेश को वापस ले लिया गया।
पांचवा किस्सा- 3 जनवरी 2014: बतौर पीएम आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस

मनमोहन सिंह ने 2014 में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अमेरिका के साथ परमाणु क़रार की घोषणा की। यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। इस दौरान उनके सामने 100 से ज्यादा पत्रकार-संपादक बैठे थे। UPA सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी और सारे सवाल उसी के जुड़े थे।
उस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सिंह ने 62 अनस्क्रिप्टेड सवालों के जवाब दिए थे। तब मनमोहन सिंह ने खुद की आलोचना को लेकर कहा था कि उन्हें ‘कमजोर प्रधानमंत्री’ कहा जाता है लेकिन ‘मीडिया की तुलना में इतिहास उनके प्रति अधिक उदार रहेगा।’